Tuesday 14 November 2017

जैसे हुड्डा वैसे खट्टर


हरियाणा ही नहीं अपितु देश के सबसे ईमानदार कहे जाने वाले आईएएस अधिकारी अशोक खेमका को फिर स्थानांतरित किया जाना राजनीतिक बिरादरी की सोच में एकरूपता का प्रमाण है। 26 वर्ष के सेवाकाल में 51 वीं बार हुआ उनका स्थानांतरण एक तरह से मानसिक प्रताडऩा ही है। पूर्ववर्ती हुड्डा सरकार के भ्रष्टाचार का चि_ा खोलने पर श्री खेमका का जल्दी-जल्दी स्थानान्तरण किये जाने को भाजपा ने जोरदार मुद्दा बनाते हुए उन्हें ईमानदारी का प्रतीक चिन्ह बनाकर कांग्रेस सरकार के विरुद्ध प्रचार का जरिया बनाया था। हरियाणा में कांग्रेस की जबरदस्त पराजय के लिए खेमका प्रकरण भी काफी हद तक जि़म्मेदार माना जा सकता है। उम्मीद की जाती थी कि भाजपा की सरकार बनने के बाद उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का उचित सम्मान होगा किन्तु खट्टर सरकार ने भी श्री खेमका के प्रति सौतेला व्यवहार जारी रखा। उन्हें मुख्य धारा से अलग माने जाने वाले विभागों में पदस्थ तो किया ही जाता रहा, ऊपर से उन पर तबादला रूपी तलवार भी लटकाई जाती रही। किसी अधिकारी की सेवाएं किस विभाग में , कहाँ और कब तक ली जावें ये सरकार का अधिकार होता है लेकिन अच्छा कार्य करने वालों को बजाय पुरस्कृत करने के, परेशान करने की संस्कृति सभी राजनीतिक दलों में एक जैसी पनप चुकी है। श्री खेमका को जब चाहे यहां से वहां किया जाना ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि सरकार चलाने के मामले में क्या कांग्रेस और क्या भाजपा सभी एक जैसे हैं। अशोक खेमका से सत्ता में बैठे लोगों को खुन्नस की वजह केवल इतनी ही है कि वे समझौतावादी नहीं हैं। उन्हें जिस विभाग में भेजा जाता है वे उसमें व्याप्त गड़बडिय़ों को दुरुस्त करने में जुट जाते हैं जिसकी वजह से उन्हें सत्ताधारियों का कोपभाजन बनना पड़ता है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर रास्वसंघ के प्रचारक रहे हैं। इस वजह से उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे पार्टी विथ डिफरेंस के दावे को सच साबित कर दिखाएंगे लेकिन श्री खेमका के तबादलों का सिलसिला जारी रहना और उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से वंचित रखना इस बात को स्थापित सत्य बनाने के लिए पर्याप्त है कि सत्ता में आते ही सब एक जैसे हो जाते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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