Thursday 30 November 2017

जनेऊधारी : गनीमत है वामन अवतार नहीं कहा


राहुल गांधी के धर्म और जाति के बारे में सदैव रहस्य बना रहता है। धार्मिक आयोजनों में भी उनकी मौजूदगी शायद ही रहती हो। मन्दिर जाने वालों पर भी वे कटाक्ष करते रहे हैं। लेकिन उप्र विधानसभा चुनाव के प्रचार की शुरुवात अयोध्या की हनुमान गढ़ी  से कर राहुल ने बता दिया कि वे भी अन्य राजनेताओं की तरह से ही हैं। यद्यपि उस चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया तथा वह दहाई का आंकड़ा तक न छू सकी। चूंकि राहुल अभी भी राजनीति के प्रशिक्षु माने जाते हैं जिनकी हर गतिविधि पर्दे के पीछे बैठे पेशेवर रिंग मास्टरों द्वारा निर्देशित रहती है इसलिए वे खुद भी नहीं जानते कि वे क्या और क्यों कर रहे हैं? उनके भाषणों की विषयवस्तु भी अन्य कोई तैयार करता है। भले ही वे अपनी माँ सोनिया गांधी की तरह लिखा-लिखाया न पढ़ते हों किन्तु उनके भाषणों में स्वाभाविकता का नितांत अभाव होता है। गुजरात चुनाव की शुरुवात में वे द्वारिकाधीश के दर्शन करने गए और तबसे आये दिन वे किसी न किसी हिन्दू मन्दिर में दर्शन करने पहुंच जाते हैं जिससे कि कांग्रेस और गांधी परिवार के दामन से हिन्दू विरोधी होने का दाग मिटाया जा सके। इसी क्रम में गत दिवस श्री गांधी सोमनाथ मन्दिर भी गए। इसमें अटपटा कुछ भी नहीं था यदि वहां की उस आगंतुक पुस्तिका में उनका नाम न होता जो गैर हिंदुओं के लिये रखी गई है। उनके साथ ही कांग्रेस सांसद अहमद पटैल का नाम भी लिखा गया। ज्योंही इसकी खबर उड़ी त्योंही राहुल के धर्म को लेकर टीका-टिप्पणी शुरू हो गई। इसके बाद सोमनाथ मन्दिर का प्रवास तो एक तरफ धरा रह गया और बात जाति-धर्म पर आकर टिक गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में सरदार पटैल की भूमिका की प्रशंसा करते हुए पं. नेहरू द्वारा उसमें लगाए अड़ंगे की चर्चा उछालकर राहुल को घेरने का दांव चला वहीं भाजपा प्रवक्ता गैर हिंदुओं वाली आगन्तुक पुस्तिका में राहुल की प्रविष्टि  को लेकर आक्रामक हो उठे। इस अप्रत्याशित हमले से तिलमिलाई कांग्रेस ने राहुल को हिन्दू साबित करने की रणनीति के तहत रणदीप सुरजेवाला से बयान दिलवा दिया कि राहुल न केवल ब्राह्मण अपितु जनेऊधारी ब्राह्मण हैं। इसके लिए पिता की अंत्येष्टि के समय कुर्ते के ऊपर जनेऊ पहने उनकी फोटो भी सार्वजनिक कर दी गई। कांग्रेस ने ये कदम क्या सोचकर उठाया ये तो वही जाने किन्तु इसकी वजह से राहुल मजाक का पात्र बन गए। जात पर न पांत पर, मुहर लगेगी हाथ पर का नारा लगाने वाली पार्टी ने अपने सबसे ताकतवर नेता को हिन्दू से भी ऊपर उठते हुए जनेऊधारी ब्राह्मण बताकर क्या सिद्ध करना चाहा ये तो श्री सुरजेवाला ही बता सकते हैं किंतु इससे बजाय फायदा होने के कांग्रेस को नुकसान होने की आशंका बढ़ चली है। पता नहीं किस नासमझ ने राहुल को जनेऊधारी ब्राह्मण साबित करने की सलाह दे डाली। और यदि श्री सुरजेवाला ने ये अपने मन से किया तो फिर उनकी राजनीतिक समझ पर भी संदेह होने लगता है। गांधी परिवार में पं. नेहरू के बाद किसी का भी विवाह कश्मीरी ब्राह्मण जाति में नहीं हुआ। उनकी दोनों बहनों ने अन्तर्जातीय विवाह किए और पुत्री इंदिरा जी ने पारसी से। इंदिरा जी के ज्येष्ठ पुत्र राजीव ने इटली की सोनिया और कनिष्ठ पुत्र संजय ने सिख लड़की मेनका से विवाह रचाया। राजीव-सोनिया की पुत्री प्रियंका का विवाह ईसाई रॉबर्ट वाड्रा से हुआ। आधुनिक विचारों वाले इस परिवार के वैवाहिक आयोजनों में धर्म-जाति कभी मुद्दा नहीं रही। लेकिन भाजपा समय-समय पर सोनिया जी और राहुल के धर्म पर  छींटाकशी किया करती है। ऐसा करने के पीछे शायद हिन्दू वोट बैंक को सुरक्षित रखने का मकसद रहा होगा। कांग्रेस को जब ये लगा कि धर्मनिरपेक्षता नामक कार्ड अब बेअसर हो चला है तो उसने भी भाजपा का हिन्दू हथियार उपयोग करने की कोशिश की किन्तु किसी भी काम में स्वाभाविकता न हो तो उसका अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ता। और तो और उल्टा असर होने से नुकसान हो जाता है। राहुल को ब्राह्मण और वह भी जनेऊधारी बताने जैसी नासमझी कांग्रेस को कितनी  महंगी पड़ेगी ये तो चुनाव परिणाम ही बता सकेंगे किंतु श्री सुरजेवाला की टिप्पणी से राहुल का मज़ाक उडऩा और तेज हो गया। ब्राह्मणों द्वारा जनेऊ धारण करले के लिए बाकायदा यज्ञोपवीत संस्कार होता है। केवल जनेऊ धारण करने से कोई अपने को श्रेष्ठ ब्राह्मण बताने लगे ये अनुचित होता है। राहुल सदृश सुशिक्षित और अत्याधुनिक पारिवारिक वातावरण में पले-बढ़े व्यक्ति को अचानक जनेऊधारी ब्राह्मण प्रचारित करना अव्वल दर्जे की नादानी ही नहीं अपितु मूर्खता ही कहा जाएगा। हार्दिक पटैल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी सरीखे जातिवादी नेताओं के सामने घुटनाटेक हो चुकी कांग्रेस को अपने सर्वोच्च नेता को ऊंची जाति वाला बताना ये सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि पार्टी अपनी वैचारिक और सैद्धांतिक पहिचान को लेकर असमंजस और अपराधबोध से ग्रसित होने के बाद अब हड़बड़ाहट का शिकार होती जा रही है। यूँ भी लालू और अखिलेश सरीखे जातिवादी नेताओं की पिछलग्गू तो वह पहले ही बन चुकी थी। इसे भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना कहा जायेगा कि जिन नेताओं पर जातिगत भेदभाव को मिटाकर समतामूलक समाज के निर्माण का दायित्व है वे ही वोटों की मंडी में अपनी जाति बेचने में रत्ती भर भी नहीं हिचकतेे। राहुल गांधी की जाति या धर्म निजी मामला है लेकिन रणदीप सुरजेवाला ने उन्हें जनेऊधारी ब्राह्मण बताकर उनका मज़ाक उड़ाने वालों को बैठे-बिठाए एक और अवसर प्रदान कर दिया। बड़ी बात नहीं यदि श्री सुरजेवाला सरीखे चाटुकार भविष्य को राहुल को कलियुग का वामन अवतार साबित करने में जुट जाएं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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