Friday 1 December 2017

मप्र : विकास के आँकड़ों पर भारी दुष्कर्म

एक तरफ  तो मप्र में दुराचारी को फांसी पर लटकाने जैसा कानून बनाने की कवायद चल रही है वहीं दूसरी तरफ  राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट आ गई जिसके अनुसार मप्र दुष्कर्म के मामले में देश के अन्य राज्यों से आगे है। जिस प्रदेश को शान्त मानकर अन्य प्रांतों से आये लोग यहां स्थायी तौर पर बसने को लालायित रहते हों वह यदि महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामले में सबसे आगे हो तो इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा? शिवराज सरकार दावा करती है कि उसने प्रदेश को विकास की राह पर तेज गति से आगे बढ़ाया है। काफी हद तक ये सही भी है लेकिन केवल आर्थिक विकास को ही सब कुछ नहीं माना जा सकता क्योंकि जिस राज्य में महिलाएं सुरक्षित न हों वहां आर्थिक समृद्धि के बावजूद अराजकता का साम्राज्य हो जाता है। एक समय था जब मप्र के चम्बल सम्भाग में डाकुओं का आतंक हुआ करता था। बुन्देलखण्ड में भी बाहुबलियों की परंपरा रही है किंतु शेष अंचलों में आम तौर पर कानून व्यवस्था औसतन संतोषजनक होती थी।  भले ही तब मप्र बीमारू राज्य कहलाता हो लेकिन अपराधों के आंकड़ों के लिहाज से वह उप्र और बिहार से काफी पीछे रहा करता था। जो ताजा रिपोर्ट आई उसमें महिलाओं के साथ दुष्कर्म के प्रकरणों में प्रदेश का उप्र से भी आगे निकल जाना ये साबित करने के लिए काफी है कि भले ही प्रदेश में आर्थिक माहौल बेहतर हुआ हो लेकिन मानसिकता के स्तर पर विकृति बढ़ी है जो चिंता और चिंतन दोनों का विषय है। भोपाल में बीते दिनों हुई घटना के उपरांत मुख्यमंत्री ने अभूतपूर्व संवेदनशीलता दिखाते हुए दुष्कर्मी को सजा ए मौत दिलाने का कानून बनाने की पहल कर डाली किन्तु मात्र इतने से ही दुराचारियों की मनोवृति बदल जाएगी ये विश्वास करना मूर्खता होगी। आज जब समाज में खुलापन आता जा रहा हो तब यौन अपराधों का बढऩा समाजशास्त्रियों के लिए मनन का विषय है। चोरी, डकैती, लूटपाट जैसे अपराधों के पीछे गरीबी वजह मानी जा सकती है। हत्या अथवा मारपीट की वजह व्यक्तिगत रंजिश भी होती है लेकिन किसी महिला के साथ दुष्कर्म करने का कारण विकृत मानसिकता ही है, जिसे केवल कानून बनाकर बदलना नामुमकिन है। इस संबंध में किसी एक तबके से अपेक्षा करने की बजाय सामूहिक दायित्वबोध जगाने की जरूरत है। शिवराज सरकार को चाहिए कि वह इस बारे में सामजिक स्तर पर जागरूकता लाने की मुहिम चलाए। जिस तरह प्रधानमन्त्री के स्वच्छता मिशन को एक आंदोलन के तौर पर संचालित किया जा रहा है वैसी ही सक्रियता दुष्कर्म के विरोध में हो तो स्थिति में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। माता-पिता का भी ये फर्ज होता है कि वे अपने बेटों को लाड़-प्यार करने के साथ ही इस बात की सीख भी दें कि लड़कियों के साथ किस तरह पेश आया जाए। सरकार की अपनी सीमाएं होती हैं और दण्ड प्रक्रिया की अपनी। ऐसे में समाज , विशेष रूप से परिवार नामक इकाई की ये आधारभूत जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने नौनिहालों को सभ्य और संस्कारवान बनाएं वरना बीमारू राज्य के कलंक से उबरने के बाद भी मप्र की गिनती मानसिक रोगियों के प्रांत के तौर पर होती रहेगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment