गत दिवस नोएडा से दिल्ली जाने वाली एक मेट्रो ट्रेन के शुभारंभ पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को न बुलाने पर उठा विवाद अपनी जगह ठीक है। भले की समारोह स्थल जिस जगह हुआ वह तकनीकी तौर पर उप्र में है लेकिन एनसीआर नामक जो व्यवस्था है उसमें व्यवहारिक दृष्टि से नोएडा, गाजिय़ाबाद और गुडग़ांव दिल्ली के उपनगरीय क्षेत्र ही हो गए हैं। और फिर मेट्रो परियोजना का नाम ही दिल्ली मेट्रो है जिसमें दिल्ली सरकार की वित्तीय हिस्सेदारी भी है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया का ये कहना मायने रखता है कि श्री केजरीवाल को इसलिए नहीं बुलाया क्योंकि वे मेट्रो किराया घटाने की मांग कर प्रधानमंत्री को मुसीबत में डाल देते। वजह जो भी हो लेकिन यदि उन्हें भी बुला लिया गया होता तो आसमान नहीं टूट पड़ता। नोएडा और दिल्ली के बीच जो रिश्ता है उसे देखते हुए श्री केजरीवाल की वहां उपस्थिति किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं होती। यद्यपि दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री को बुलाने की परंपरा नहीं है लेकिन उपरोक्त आयोजन कुछ अलग हटकर था। बेहतर हो ऐसे अवसरों पर बजाय प्रतिद्वंदिता के सौजन्य का प्रदर्शन किया जाना चाहिए। श्री केजरीवाल भाजपा और श्री मोदी के निकटतम आलोचक भले हों किन्तु उक्त मंच पर अगर वे वैसा कुछ करते तो उनकी जगहंसाई होती। फिलहाल तो वे सहानुभूति के पात्र बन गये हैं।
-रवीन्द्र वाजपेयी
बिल्कुल सही, राजनीति में भी इतना सौहार्दपूर्ण माहौल रहना चाहिए, यह एक बड़ी पार्टी के बड़े नेताओं का का छोटा पन है।
ReplyDelete