Friday 8 December 2017

मणिशंकर : हिंदी ही नहीं दिमाग भी कमजोर है

मणिशंकर अय्यर की हिंदी कमजोर है ये बात भले ही मान ली जाए किन्तु अब तो लगता है विदेश सेवा से राजनीति में आया ये पूर्व केंद्रीय मंत्री दिमाग से भी कमजोर है। 2014 के लोकसभा चुनाव के पूर्व नरेंद्र मोदी के चाय बेचने पर उनकी व्यंग्यात्मक टिप्पणी के कारण कांग्रेस को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। यदि श्री अय्यर में तनिक भी समझदारी होती तब वे प्रधानमंत्री को नीच किस्म का व्यक्ति कहने की मूर्खता न करते। गुजरात में पहले चरण के मतदान के दो दिन पूर्व उनकी जुबान से निकले चन्द शब्दों ने पूरी कांग्रेस को पिछले पाँव पर जाने बाध्य कर दिया। श्री मोदी ऐसे हमलों पर पलटवार करने में सिद्धहस्त हैं सो उन्होंने बिना देर गंवाए श्री अय्यर के बयान को भुनाना शुरू कर दिया। उनके पीछे पूरी भाजपा दाना-पानी लेकर मणिशंकर के साथ ही कांग्रेस और गांधी परिवार को कठघरे में खड़ा करने में जुट गई। सोनिया गांधी द्वारा मौत का सौदागर , प्रियंका वाड्रा द्वारा नीच राजनीति और राहुल द्वारा खून की दलाली जैसी जो टिप्पणियां अतीत में प्रधानमन्त्री के लिये की गईं थीं उन सबका हवाला देते हुए ये साबित करने का अभियान शुरू कर दिया गया कि कांग्रेस आदतन श्री मोदी को अपमानित करती आई है। ये पहला  अवसर नहीं है जब प्रधानमंत्री के प्रति अभद्र भाषा का इस्तेमाल हुआ हो लेकिन कभी किसी कांग्रेसी के विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हुई। मणिशंकर तो वैसे भी आँय- बांय बकने के लिए कुख्यात रहे हैं।  चुनाव के पहले श्री मोदी को मौत का सौदागर और नीच राजनीति करने वाला कहने का अपराध तो क्रमश: सोनिया जी और प्रियंका ने भी किया किन्तु गांधी परिवार की कांग्रेस में सौ खून माफवाली स्थिति होने से किसी ने उस पर एतराज नहीं किया। सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल की टिप्पणी बेहद आपत्तिजनक होने पर भी पार्टी ने कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन मणिशंकर फिलहाल कांग्रेस में पूरी तरह हाशिये पर हैं। गृहराज्य तमिलनाडु में भी उनकी कोई सियासी पकड़ नहीं बची। इसीलिए राहुल गांधी ने बिना देर लगाए उन्हें श्री मोदी से माफी मांगने कहा और फिर पार्टी से निलंबित कर दिया। लगे हाथ भाजपा को ये चुनौती भी दे डाली कि वह भी अपने उन नेताओं पर वैसी ही कार्रवाई करे जिनकी जुबान से आये दिन गांधी परिवार के प्रति तीखी और अशालीन टिप्पणियां की जाती हैं। कांग्रेस द्वारा श्री अय्यर का निलंबन निश्चित रूप से एक स्वागतयोग्य कदम है लेकिन इसके पीछे राजनीति को साफ-सुथरा बनाने की इच्छा से ज्यादा मज़बूरी काम कर रही थी। अगर गुजरात का चुनाव चरमोत्कर्ष पर न होता तब शायद श्री अय्यर के विरुद्ध कार्रवाई में इतनी तत्परता न दिखाई जाती। टीवी चैनलों में इस विषय पर हुई बहस के दौरान कांग्रेस के अधिकतर प्रवक्ता बजाय अपराधबोध के उल्टे भाजपा नेताओं द्वारा की गईं टिप्पणियों का हवाला देते हुए ये साबित करने का प्रयास करते देखे गए कि अपशब्दों के प्रयोग की शुरुवात भाजपा की तरफ  से हुई थी। खैर, अब तो जो होना था हो चुका। श्री अय्यर की जुबान से निकला ज़हर जितना नुकसान करना था कर गया। उनका निलंबन क्यों किया गया ये भी सब समझते हैं। 2007 में गुजरात चुनाव के अंतिम चरण में सोनिया जी द्वारा श्री मोदी को जो उस समय मुख्यमंत्री हुआ करते थे, मौत का सौदागर कह दिया गया। उस बयान को मोदी जी ने जिस तरह भुनाया उसकी यादें काँग्रेस भूली नहीं थी। यही वजह रही कि उसने मणिशंकर पर गाज गिराने में ज्यादा देर नहीं लगाई लेकिन जिस तरह धनुष से निकला तीर और जुबान से निकले शब्द कभी लौटकर नहीं आते ,  ठीक उसी तरह श्री अय्यर द्वारा प्रधानमंत्री को नीच व्यक्ति कहे जाने पर कितनी भी सफाई या कार्रवाई की जाए वे शब्द  तो सियासी वायुमण्डल में मंडराते ही रहेंगे। लेकिन इससे हटकर अब जरा इस पर भी ध्यान दिया जावे कि  राजनीति में मर्यादा की लक्ष्मण रेखाएं अप्रासंगिक क्यों होती जा रहीं हैं? एक दौर वह भी था जब संसद में तीखी बहस और आरोप प्रत्यारोप के बाद नेहरु जी, डॉ.लोहिया को चाय पीने बुलवाते थे। नेहरू जी की मृत्यु पर संसद में अटल जी का श्रद्धांजलि भाषण तत्कालीन राजनीति में संस्कारों की मौजूदगी का श्रेष्ठतम उदाहरण था। उस दौर की सियासत सिद्धांतों पर आधारित थी इसलिए उसमें शालीनता और शिष्टाचार की चिन्ता की जाती थी लेकिन सत्तर के दशक से सियासत पूरी तरह सत्ता केंद्रित होती गई। आपातकाल के बाद जन्मी राजनीति में विरोध की जगह शत्रुता के भाव ने ले ली और फिर जो होता गया उसी का परिणाम है आज की स्तरहीन राजनीति , जिसमें सिद्धांतों और आदर्शों की जगह अवसरवाद और येन केन प्रकारेण सत्ता हथियाने के लिए होने वाले षडयंत्रों ने ले ली है। मणिशंकर अय्यर अकेले राजनेता नहीं हैं जिनकी जुबान सदैव फिसला करती है। जो भाजपा कल रात तक कांग्रेस को कोसती रही उसमें भी कुछ नेता ऐसे हैं जो बोलते समय सारी मर्यादाएं भूल जाते हैं। गांधी परिवार के प्रति भी अनावश्यक और अशालीन टिप्पणियां सदैव की जाती रहीं हैं। श्री अय्यर के निलंबन के साथ ही कांग्रेस द्वारा भाजपा से भी वैसी ही अपेक्षा करना गलत नहीं है लेकिन गुजरात चुनाव सिर पर न होता और प्रधानमंत्री को नीच कहने से होने वाले नुकसान का डर न होता तो राहुल , मणिशंकर के पिछले बयानों की तरह इसे भी नजरंदाज कर चुके होते। गुजरात चुनाव में कांग्रेस अभी तक बेहद हमलावर थी लेकिन पहले मनीष तिवारी द्वारा राहुल को जनेऊधारी ब्राह्मण बताना और फिर श्री अय्यर द्वारा श्री मोदी को नीच कह देने से पूरी पार्टी को रक्षात्मक होना पड़ गया। कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या मामले को लेकर जो बचकानी हरकतें कीं उनकी वजह से गुजरात चुनाव में भाजपा  को मन्दिर मुद्दा जि़ंदा करने का मौका मिल गया था। लम्बे समय बाद गुजरात की लड़ाई में मजबूत नजऱ आ रही कांग्रेस अचानक पिछडऩे की स्थिति में आ गई। बचे हुए प्रचार में प्रधानमंत्री सहित पूरी भाजपा और आक्रामक होकर उतरेगी। तमाम चुनाव सर्वेक्षणों का औसत भाजपा की सत्ता में वापिसी के संकेत दे रहा है। अभी तक एक भी सर्वेक्षण एजेंसी ने कांग्रेस को बहुमत मिलने का अनुमान नहीं लगाया किन्तु 18 दिसंबर को यदि परिणाम कांग्रेस के विरुद्ध गए तो उसके लिए दोषी राहुल नहीं अपितु कपिल सिब्बल और उससे भी ज्यादा तो मणिशंकर अय्यर माने जाएंगे जिनकी जुबान ने गुजरात चुनाव की गर्मी को गन्दगी में बदल दिया। भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों के लिए भी ये सोचने का समय आ गया है कि  सियासत में शालीनता की पुनस्र्थापना किस तरह की जाए वरना लोकतन्त्र के प्रति आस्था और रहा-सहा विश्वास भी जाता रहेगा। अच्छे लोगों से राजनीति में आने की अपेक्षा तो सभी करते हैं लेकिन इस तरह के घटिया माहौल में कोई भी अच्छा इंसान उसका हिस्सा नहीं बनना चाहेगा। पता नहीं गुजरात चुनाव के बाद राजनेता इस तरह के ओछेपन को याद भी रखेंगे या सब भूलकर अगले चुनाव के लिए नई नई गालियों और अपशब्दों के प्रयोग की रिहर्सल करने में जुट जाएंगे ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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