Friday 1 December 2017

आर्थिक मोर्चे से अच्छी खबर

देश भर में सर्वाधिक कोसे जाने वाले वित्त मंत्री अरुण जेटली को लंबे समय बाद मुस्कुराने का अवसर मिला। वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही के जो नतीजे आये उनके अनुसार  विकास दर बढ़कर  6.3 फीसदी हो गई। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र ने तो 7 प्रतिशत का आँकड़ा छू लिया। नोटबन्दी और उसके बाद दूबरे में दो आसाढ़ की कहावत को चरितार्थ करते हुए आया जीएसटी आर्थिक विकास के लिए न केवल गतिरोधक अपितु गड्ढा साबित हुआ। हॉलांकि विपक्ष इसके लिए प्रधानमंत्री को घेरता रहा है लेकिन आम जनता की नजऱ में श्री जेटली सबसे बड़े खलनायक बन गए। यद्यपि सरकार भरोसा दिलाती रही कि कारोबारी मन्दी अस्थायी है लेकिन न जनता को उसके आश्वासन विश्वसनीय लगे और न ही उद्योग-व्यापार जगत को। ताज़ा आँकड़े निश्चित रूप से उत्साहवर्धक हैं किंतु जानकारों का कहना है कि दीपावली सीजन के कारण जुलाई-सितम्बर के दौरान मांग बढ़ी जिसने विकास दर में वृद्धि का रास्ता साफ किया। गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने जीएसटी को बड़ा मुद्दा बनाते हुए वहां के व्यापार-उद्योग जगत को लुभाने का दांव चला था। उसकी वजह से भाजपा रक्षात्मक भी हुई लेकिन गत दिवस जारी आँकड़े उसके लिए संजीवनी समान हैं। हालांकि राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी ने शेयर मार्केट में निवेशकों को निराश किया किन्तु ये सच है कि जीएसटी के साथ जुड़ी शुरुवाती परेशानियां ज्यों-ज्यों दूर होती जा रही हैं त्यों-त्यों कारोबारियों की अड़चनें भी कम होने लगी हैं। उम्मीद की जानी चाहिये कि अगली तिमाही के आँकड़े और अच्छे होंगे। वित्त मंत्री श्री जेटली ने जीएसटी की दरों में और कमी का संकेत देकर कारोबारी जगत को अच्छे दिन आने का जो भरोसा दिया वह सरकार के बढ़ते आत्मविश्वास का परिचायक है। अब देखना ये है कि विकास दर में वृद्धि का ये सिलसिला स्थायी हो पाता है या नहीं?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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