Saturday 23 December 2017

चव्हाण : मुकदमे से बच सकते हैं अपयश से नहीं


मुंबई में पूर्व सैनिकों के लिए बनाई गई आदर्श सोसायटी में गैर सैनिकों को गलत तरीके से फ्लैट आवंटित किए जाने पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को कांग्रेस सरकार के दौरान गठित जांच आयोग ने दोषी पाया था। उनके स्तीफ़े  के बाद जांच एजेंसी सीबीआई  द्वारा राज्य के तत्कालीन राज्यपाल  शंकरनारायणन से श्री चव्हाण के विरुद्ध प्रकरण चलाने की अनुमति मांगी गई  किन्तु उन्होंने सीबीआई को निराश कर दिया। उक्त महामहिम कांग्रेस के नेता थे और केरल की एंटोनी सरकार में मंत्री भी रह चुके थे। मोदी सरकार बनने पर नियुक्त नए राज्यपाल विद्यासागर राव के समक्ष सीबीआई ने नए सिरे से अर्जी लगाई जिन्होंने श्री चव्हाण पर मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी। श्री चव्हाण ने दरअसल नए राज्यपाल के निर्णय को चुनौती दी जिस पर उच्च न्यायालय ने सिर्फ  इतना कहा कि एक राज्यपाल द्वारा मुकदमे की अनुमति नहीं दिए जाने के निर्णय को दूसरे राज्यपाल द्वारा बदला जाना गलत था क्योंकि जांच एजेंसी ने कोई नए साक्ष्य महामहिम के विचारार्थ प्रस्तुत नहीं किये थे। उच्च न्यायालय ने श्री राव द्वारा पिछले राज्यपाल के निर्णय को दरकिनार रखते हुए सीबीआई को दी गई अनुमति को गलत मानते हुए कहा कि यह एक स्वतंत्र एजेंसी के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन है। इस तरह श्री चव्हाण पर मुकदमा चलाने की अनुमति निरस्त हुई न कि आदर्श घोटाले के दाग उनके दामन से मिटे हैं। उनके अपने शासनकाल में बने आयोग ने जब उन पर आरोप लगाए तभी उन्हें मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा जो एक तरह की परंपरा रही है। यदि श्री चव्हाण बेकसूर हैं तब उन्हें मुकदमे से डर क्यों लग रहा था?  वे और उनके साथ पूरी कांग्रेस पार्टी इस बारे में ऐसे पेश आ रही है जैसे श्री चव्हाण को अदालत ने आदर्श घोटाले में आयोग की रिपोर्ट के बाद भी दोषमुक्त कर दिया हो। दूरसंचार घोटाले में ए.राजा के बरी होने के बाद लोगों को ये लग रहा है कि श्री चव्हाण को गलत फंसाया गया था। यद्यपि इस तरह के प्रचार से लोग कुछ देर तक तो भ्रमित हो सकते हैं लेकिन देर सवेर ही सही ऐसी बातें छुपी नहीं रह सकतीं। अशोक चव्हाण संवैधानिक पद से जुड़ी कानूनी ढाल के कारण भले ही आरोपियों की सूची से बाहर हो गये हों लेकिन मुंबई के शानदार इलाके में सैनिक परिवारों के लिए बनी आदर्श सोसायटी के आवंटन में हुए घोटाले के अपयश से वे नहीं बच सकेंगे। उनके पास इस बात का क्या उत्तर है कि उनकी अपनी सरकार के दौरान बने जांच आयोग ने ही जब उन्हें आदर्श सोसायटी के फ्लैटों में हुए बंदरबांट का दोषी माना तब वे विपक्ष को इसके लिए दोषी कैसे ठहरा रहे हैं? कांग्रेस पार्टी भी ऐसी प्रतिक्रिया दे रही है जैसे अदालत ने श्री चव्हाण को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया हो। गनीमत है श्री चव्हाण ने उस जांच आयोग की रिपोर्ट को विपक्ष द्वारा प्रायोजित नहीं बताया जिसने पूर्व सैनिकों के लिए बने फ़्लैट्स नेताओं और नौकरशाहों के बीच बांटने को घोर आपराधिक कृत्य माना था। स्मरणीय है उक्त घोटाले में तमाम वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी लपेटे में हैं  जिनमें एक वे भी बताए गए हैं जो कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के घर पाकिस्तानी राजनयिकों के सम्मान में दी गई दावत में भी शामिल थे। बेहतर हो जांच एजेंसी उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय जाए या फिर राज्यपाल के समक्ष समुचित प्रमाण दोबारा पेश करे क्योंकि यदि बड़े पदों पर बैठे लोग भ्रष्टाचार करने के बाद भी अपनी विशिष्ट स्थिति का लाभ लेकर महज तकनीकी कारणों से बचते रहे तब न्याय प्रणाली और लोकतन्त्र दोनों के प्रति अविश्वास बढ़ता चला जायेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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