Tuesday 26 December 2017

कुलभूषण : फिलहाल प्राणरक्षा ही सर्वोच्च प्राथमिकता


कुलभूषण जादव से उनकी माँ और पत्नी की भेंट करवाकर पाकिस्तान ने अपनी जिस मानवतावादी छवि को वैश्विक स्तर पर प्रचारित करना चाहा वह और खराब हो गई। कांच की दीवार के पीछे बैठे  कुलभूषण का फोन के जरिये माँ और पत्नी से बात करना एक तरह से इंटरनेट पर विदेश में बैठे किसी परिजन से होने वाली बातचीत जैसी ही है जिसमें एक दूसरे को देखा सुना तो जा सकता है किंतु छूना सम्भव नहीं हो पाता। जरा सोचिए उस माँ और पत्नी के दिल पर क्या गुजर रही होगी जो दुश्मन के कब्जे में फंसे अपने बेटे और पति से चंद इंचों के फासले पर होकर भी न उससे अंतरंग बातचीत कर सकीं और न ही उसे छूकर जान सकीं कि उसकी शारीरिक स्थिति कैसी थी ? पाकिस्तान ने अपने संस्थापक मो.अली जिन्ना की जयंती पर कुलभूषण के परिवारजनों को उससे मिलवाने की जो व्यवस्था की वह अपने आप में एक विवाद का विषय बन गई। ऐसी अवस्था में जब हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आए दिन किसी पाकिस्तानी को भारत में इलाज हेतु वीज़ा जारी करने की उदारता दिखाया करती हैं तब पड़ोसी मुल्क का ये व्यवहार न सिर्फ  कचोटने वाला अपितु अपमानजनक भी है। इस बारे में भारत सरकार की मजबूरी ये है कि वह कुलभूषण की खैरियत की चिंता में उस स्तर पर जाकर कूटनीतिक दबाव नहीं बना पा रही जो अपेक्षित है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय से कुलभूषण की फांसी रुकवाकर भले ही भारत ने बड़ी कामयाबी हासिल कर ली हो लेकिन उससे उसकी प्राणरक्षा पूरी तरह सुनिश्चित नहीं मानी जा सकती। पाकिस्तान ने इस मामले को इतना पेचीदा बना दिया है कि  कुलभूषण की रिहाई बहुत मुश्किल होगी क्योंकि ऐसा होने पर उसके झूठ का पुलिंदा पूरी दुनिया के सामने खुल जायेगा। भारत सरकार के हाथ इस प्रकरण में काफी बंधे हुए हैं। वह ज्यादा से ज्यादा इतना कर सकती है। कि कुलभूषण की फांसी को लम्बे  कारावास में बदलवा ले। बावजूद उसके कुलभूषण 10-20 साल जि़ंदा रहेगा ये गारंटी नहीं दी है सकती। किसी शत्रु राष्ट्र के व्यक्ति को जासूस बताकर पकडऩे के बाद कोई देश आसानी से नहीं छोड़ता, फिर पाकिस्तान का रिकार्ड ऐसे मामलों में बहुत ही दागदार रहा है। उसे देखते हुए गत दिवस कुलभूषण की माँ और पत्नी से मुलाकात में जो घटिया हरकत उसने की वह आपत्तिजनक जरूर थी किन्तु अनपेक्षित कदापि नहीं। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत ने जिस तरह का दबाव बनाया उससे पाकिस्तान काफी भन्नाया हुआ है। उसके बाद यद्यपि उसे कुलभूषण की फांसी तो रोकनी पड़ी किन्तु ये मान लेना कि वह अपने रुख में नरमी लाएगा , गलत है। उसे अपनी छवि सुधारने की भी बहुत ज्यादा फिक्र नहीं रहती वरना वैश्विक दबाव और आलोचना के बाद भी वह हाफिज सईद सरीखे घोषित आतंकवादी को इस तरह छुट्टा न छोड़ता। गत दिवस जो कुछ भी हुआ उससे पूरे भारत में गुस्सा है लेकिन ऐसे मामलों में केवल भावनात्मक ज्वार काम नहीं करता क्योंकि जरा सी असावधानी  में हमारे एक बेकसूर नागरिक की जान जा सकती है। पाकिस्तान भले ही विश्व बिरादरी का सदस्य हो लेकिन उसका आचरण किसी सभ्य देश के अनुरूप नहीं होने से वह किसी भी मामले में न तो विश्वसनीय है और न ही ईमानदार। कुलभूषण की रिहाई तो दूर की कौड़ी है क्योंकि जब तक कोई असाधारण अंतराष्ट्रीय दबाव न आए या कुलभूषण के बदले भारत भी किसी पाकिस्तानी कैदी को रिहा न करे तब तक उसकी सुरक्षित वापसी की उम्मीद नहीं की जा सकेगी। फिलहाल तो भारत सरकार के सारे प्रयास कुलभूषण को किसी तरह जीवित रखने पर केंद्रित होने चाहिए क्योंकि पाकिस्तान जरा सी मोहलत मिलते ही उसे सूली पर लटकाने में नहीं हिचकेगा। गत दिवस उसने जिस तरह का हल्कापन या उससे भी बढ़कर कहें तो टुच्चापन दिखाया उसके बाद किसी सदाशयता की उम्मीद करना व्यर्थ है। 1947 में जिस नफरत के आधार पर पाकिस्तान का जन्म हुआ वह कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। कुलभूषण प्रकरण से उसके मन में भरा ज़हर एक बार फिर बाहर आ गया ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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