Monday 4 December 2017

चिकित्सक : पेशे की पवित्रता पर अविश्वास का घेरा

बीते सप्ताह बेंगलुरु में डॉक्टरों और चिकित्सकीय जांच केंद्रों के बीच कमीशनबाजी का जो आदान- प्रदान उजागर हुआ वह कोई नई बात नहीं है। आयकर छापों के दौरान जो तथ्य उजागर हुए उनके मुताबिक डॉक्टरों द्वारा कराई जाने वाली तमाम जांच चाहे वे पैथालाजी से जुड़ी हों या रेडियोलॉजी से , सभी में डॉक्टरों को जबरदस्त कमीशन पहुंचाया जाता है, जो न केवल अवैधानिक अपितु अनैतिक भी माना जाता है। पढ़ाई करने के उपरांत जब कोई डॉक्टर प्रैक्टिस हेतु मेडीकल काउंसिल ऑफ इंडिया में पंजीयन करवाता है तब उसे जो शपथ लेनी होती है यदि उसका पालन चिकित्सक करने लगें तो आज चिकित्सा क्षेत्र में जो लूटमार चल पड़ी है वह लुप्त हो सकती है लेकिन अफसोस की बात है कि पैसा कमाने की हवस ने चिकित्सा जगत से सेवाभाव को पूरी तरह से खत्म कर दिया। यद्यपि अपवाद स्वरूप ऐसे चिकित्सक भी हैं जिन्होंने पेशे की पवित्रता और मानवीय संवेदनाओं को जीवित रखा है परंतु उनकी मौजूदगी हजारों में एक के अनुपात में होगी। इसी तरह शायद ही कोई पैथालॉजी और एक्सरे, सोनोग्राफी,सीटी स्कैन और एमआरआई सेंटर होगा जो चिकित्सकों को कमीशन न बांटता हो । बेंगलुरु में आयकर छापों के दौरान जो जानकारी निकलकर आई उससे ये स्थापित हो गया कि चिकित्सा जगत अब पूरी तरह से व्यवसायिक हो चुका है जिसका उद्देश्य पीडि़त मानवता की नि:स्वार्थ सेवा न होकर केवल और केवल अधिक से अधिक पैसा बटोरना रह गया है। डॉक्टरों और जाँच केंद्रों के बीच कमीशन का धंधा दवा निर्माता फार्मा कम्पनियों तक फैला हुआ है। सरकार और न्यायालय इस बारे में समय-समय पर काफी बंदिशें लगाते रहे हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ और मौजूदा सूरते हाल में होने की संभावना भी नहीं है। दवा कम्पनियां अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन चिकित्सकों को देती हैं। उसकी भरपाई होती है आम जनता से दवाइयों के दाम बढाकर। कुल मिलाकर जिस पेशे पर इंसान की जान बचाने का दायित्व हो, वही एक संगठित गिरोह बनकर लोगों की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाए, इससे अधिक शर्मनाक बात या पाप और भला दूसरा क्या होगा? आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे चिकित्सक मौजूद हैं जो मरीजों से नाममात्र की फीस लेकर उन्हें सस्ती जेनेरिक दवाएं लिखकर उनका शोषण होने से बचाते हैं। यही नहीं तो कमीशन की लालच में अनावश्यक जाँच कराने से भी उन्हें परहेज रहता है। पैसा बटोरने की वासना के चलते ही सामान्य की बजाय सिजेरियन प्रसव करने का कारोबार चरम पर है। इस लूटमार को रोकने के लिए सामाजिक और न्यायालयीन स्तर पर अपने-अपने ढंग से प्रयास हो चुके हैं लेकिन ले देकर स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली बनी हुई है। आये दिन निजी अस्पतालों में लोगों का उत्पात आम बात होती जा रही है। इन सभी के चलते कभी सम्मान एवं श्रद्धा के पात्र रहे चिकित्सक अब सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर) बनकर रह गए हैं जिनके विरुद्ध मरीज उपभोक्ता फोरम जाने में भी नहीं हिचकते। भारत सरीखे देश में जहां सरकारी चिकित्सा सेवाएं खुद ही बीमार हों वहां आम जनता निजी डॉक्टरों और अस्पतालों के रहमो करम पर निर्भर रहने मजबूर है। लेकिन वहां उसे ग्राहक समझकर बेशर्मी की सारी हदें तोड़कर होने वाली मुनाफाखोरी से सामना करना पड़ता है। ये बात पूरी तरह सत्य और प्रमाणित है कि इस तरह की प्रवृत्ति को कानून से रोकना नामुमकिन है। बेहतर होगा अगर डॉक्टर्स स्वयं होकर अपनी बिरादरी के दामन पर लगे दाग दूर करने का प्रयास करें। चिकित्सक को भगवान मानने वाले आज भी कम नहीं हैं लेकिन जिस तरह धर्म की आड़ में अनैतिकता को पालने पोसने वालों का पर्दाफाश आये दिन होने लगा है वही स्थिति भगवान स्वरूप माने जाने वाले चिकित्सक समुदाय की बन गई है। पढ़ -लिखकर पैसा कमाना अपराध नहीं होता लेकिन व्यक्ति को अपने पेशे का मकसद सदैव ध्यान में रखना चाहिये। चिकित्सकों के बारे में एक पोस्टर पर लिखा था कि मैंने ईश्वर में विश्वास करना नहीं छोड़ा अपितु उसे डॉक्टर में स्थानांतरित कर दिया है। अब ये देखना डॉक्टरों का नैतिक दायित्व है कि वे इस विश्वास की रक्षा किस प्रकार करते हैं? वर्तमान स्थिति में तो उनके प्रति विश्वास निरंतर घटता चला जा रहा है जिसके लिये उनकी बिरादरी ही उत्तरदायी कही जाएगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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