राहुल गांधी आज गुजरात में धन्यवाद यात्रा पर सबसे पहले कन्धे पर पूजा की थाली लेकर सोमनाथ मन्दिर गए और विधि-विधान से भगवान शंकर की पूजा अर्चना की । चुनाव के दौरान उन्हें जनेऊ धारी ब्राह्मण बताए जाने पर काफी मज़ाक़बाज़ी हुई तथा ये माना गया कि भाजपा के कट्टर हिंदुत्व के जवाब में राहुल नर्म हिन्दुत्व के फार्मूले को आजमा रहे हैं । यद्यपि इसका क्या लाभ हुआ ये कहना कठिन है किंतु जनेऊ धारी कहलाकर उपहास का पात्र बने राहुल को समझ गये हैं कि अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण से परहेज करने का समय आ चुका है । भाजपा को भले ही कांग्रेस अध्यक्ष का मंदिर भ्रमण दिखावा लगे लेकिन देश की दूसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बहुसंख्यक हिंदुओं के महत्व को स्वीकार करने की मानसिकता में आ रही है तब उसका स्वागत ही होना चाहिये। हो सकता है राहुल 2018 में होने जा रहे हिन्दू बहुल राज्यों के चुनाव को ध्यान में रखते हुए मन्दिर जाने का नाटक कर रहे हों लेकिन यदि इससे तुष्टीकरण की राजनीति पर विराम लगता है तो बुरा क्या है? कांग्रेस की देखा सीखी अन्य पार्टियां भी मुस्लिम तुष्टीकरण को चुनाव जिताऊ फार्मूला मानकर छद्म धर्मनिरपेक्षता का चोला धारण कर घूमने लगी थीं। मुस्लिम समाज में व्याप्त कट्टरपन को बढ़ावा देने के लिए ये पार्टियां ही उत्तरदायी हैं। अब यदि राहुल मन्दिर दर्शन के बहाने कांग्रेस को हिंदुओं का हितचिंतक सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं तो ये देश हित में ही है। कम से कम इससे धार्मिक आधार पर वोटों का धु्रवीकरण रोका जा सकेगा। यदि यही काम कांग्रेस पहले कर लेती तो उसकी ये दशा न होती।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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