Friday 15 December 2017

एग्जिट पोल:नतीजे न सही संकेत तो हैं ही

अब बात चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों और  दावों-प्रतिदावों की बजाय मतदान करने के बाद बाहर निकले मतदाता से प्राप्त जानकारी पर टिक गई जिसके बाद दो राज्यों के विधान सभा चुनावों को लेकर चली आ रही अनिश्चितता पर काफी हद तक विराम लग गया। हिमाचल में तो कांग्रेस चुनाव शुरू होते ही मुकाबले से बाहर हो गई थी किन्तु गुजरात नामक हिंदुत्व की प्रयोगशाला में घुसकर नरेंद्र मोदी को उन्हीं के घर में धराशायी करने की जो दुस्साहसिक महत्वाकांक्षा कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी ने सँजोई थी उस पर भी पानी फिरता लग रहा है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में भी एक को छोड़कर लगभग सभी एजेंसियों ने भाजपा की आसान जीत का अनुमान लगाया था। केवल एबीपी न्यूज के सर्वे ने बेहद नजदीकी मामला बताकर रोमांच को और बढ़ा दिया जिससे ये अवधारणा मज़बूत होती चली गई कि राहुल अपने नए अवतार में पहले से अधिक परिपक्व और प्रभावशाली होकर उभरे हैं। गुजरात में उन्होंने पाटीदार आंदोलन के सुपर स्टार हार्दिक पटेल के अलावा दलित नेता के तौर पर उभरे जिग्नेश मेवानी को अपने साथ जोड़कर भाजपा पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना दिया वहीं नए-नए ओबीसी चेहरे अल्पेश ठाकोर को बाकायदा कांग्रेस में ही शरीक कर लिया। पाटीदार आंदोलन से झुलसी भाजपा के लिए परंपरागत रूप से व्यवसाय प्रेमी गुजराती समाज में जीएसटी के प्रति व्याप्त नाराजगी कोढ़ में खाज सरीखी समस्या पैदा कर रही थी। राहुल गांधी ने गब्बर सिंह टैक्स कहकर जो शुरूवात की उसने भाजपा के भीतर भय पैदा कर दिया। पाटीदारों के रूप में अपने पुख्ता वोट बैंक के बिखरने के साथ ही  किसानों और व्यवसायी वर्ग की बेरुखी ने भी 22 साल से चली आ रही सत्ता के खात्मे की सभावनाएं प्रबल कर दीं। इसमें दो मत नहीं है कि अपने घरेलू पिच पर श्री मोदी और भाजपा को इतने जोरदार प्रतिकार की उम्मीद नहीं थी। हालांकि मुख्यमंत्री रहते भी उनको हर चुनाव में जबरदस्त प्रतिरोध झेलना पड़ा किन्तु इस बार  प्रधान मंत्री होने के कारण उनकी प्रतिष्ठा और भाजपा का भविष्य दोनों दांव पर लगे थे। मतदान के पहले चरण के बाद तक ये माना जा रहा था कि टक्कर काफी कड़ी है जिसमें भाजपा की पराजय आश्चर्यजनक नहीं होगी। इस दौरान मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री को नीच व्यक्ति कहकर श्री मोदी को उनके असली अंदाज में आने का वह अवसर दे दिया जिसकी उन्हें प्रतीक्षा और जरूरत दोनों ही थीं। उसके बाद उन्होंने धुँआधार बल्लेबाजी करते हुए राहुल और हार्दिक के क्षेत्र रक्षण को धता बताते हुए चारों तरफ  शॉट लगाए। गांवों में नाराजगी की खबरों ने भी भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें बढा दी थी। राहुल ने शुरूवात में ही विकास पागल हो गया जैसा जुमला उछालकर गुजरात मॉडल को मज़ाक बनाकर रख दिया जिसकी वजह से श्री मोदी के विकासपुरुष की छवि को भी धक्का लगा। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि कांग्रेस ने जबरदस्त व्यूहरचना करते हुए ये भरोसा उत्पन्न कर दिया कि राहुल गांधी श्री मोदी को टक्कर देने योग्य हो गए हैं और 2019 में वे कांग्रेस को पुन: सत्ता में वापिस लाने में सक्षम हो जाएंगे। और भी बहुत सारी बातें ऐसी हैं जिनका विश्लेषण गुजरात  चुनाव के संदर्भ में किया जाना है लेकिन एग्जिट पोल चूंकि संकेत हैं अत: उन्हें अंतिम परिणाम मान लेना जल्दबाजी होगी। बेहतर यही होगा कि 18 ता. की दोपहर तक प्रतीक्षा की जावे क्योंकि अतीत में कई मर्तबा एग्जिट पोल कसौटी पर खरे नहीं उतरे। बिहार में चाणक्य नामक एजेंसी का एग्जिट पोल पूरी तरह गलत निकलने पर उसे माफी मांगनी पड़ी थी। लेकिन गुजरात को लेकर चूँकि सभी सर्वेक्षण एजेंसियों ने भाजपा की जीत का निष्कर्ष निकाला है इसलिए ये माना जा सकता है कि मुकाबला चाहे कड़ा रहा हो या इकतरफा लेकिन भाजपा अपनी सत्ता बचाने में कामयाब होती दिख रही है जो राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनते ही किसी अपशकुन से कम नहीं होगा। गुजरात में लगातार छटवीं हार के साथ ही हिमाचल का हाथ से निकल जाना कांग्रेस मुक्त भारत की  दिशा में भाजपा का एक और कदम होगा जिसका असर कर्नाटक पर भी पड़ेगा जहां अगले साल गर्मियों में चुनाव होने हैं। कांग्रेस ने पहले चरण के बाद से ही जब ईवीएम पर तोहमत लगानी शुरू की तभी से उसका आत्मविश्वास डगमगाता दिखा जो कल चुनाव आयोग पर किये हमले से और ज़ाहिर हो गया। यदि एग्जिट पोल के निष्कर्ष परिणाम में बदल गए  तो फिर ये कहना सही होगा कि तमाम विरोधाभासों के बावजूद गुजरात को नरेंद्र मोदी से मोहब्बत है और अपने राज्य के प्रधान मंत्री को वह नीचा नहीं देखने देना चाहता। राहुल गांधी के लिए हिमाचल और गुजरात की पराजय बड़ा धक्का होगी। पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उनकी ताजपोशी को कांग्रेस में नए युग की शुरूवात मानने  वालों को भी अब ये लग सकता है कि  वे नेहरू -गांधी परिवार के आखिरी मुगल साबित होंगे। बहरहाल पक्के तौर पर कुछ कहने के लिए सोमवार तक प्रतीक्षा करना चाहिए किन्तु इतना तो मानना ही होगा कि कांग्रेस में जो उत्साह बीते कुछ महीनों में देखा जा रहा था वह एग्जिट पोल आते ही काफी हद तक ठंडा पड़ गया। यदि कोई चमत्कार नहीं हुआ तब 18 दिसम्बर को मोदी-मोदी के ठंडे पड़ते जा रहे नारे एक बार फिर सियासी वायुमंडल में गूंजने लगेंगे और 2019 में विपक्ष की साझा गोलबंदी की संभावनाएं पैदा होने के पहले ही दम तोड़ती नजऱ आएंगीं। जीएसटी के कारण चौतरफा आलोचनाओं का सामना कर रहे नरेंद्र मोदी के लिए गुजरात की जीत उप्र से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होगी जिससे उत्साहित होकर वे अपने एजेंडे पर  साहस के साथ आगे बढ़ सकेंगे। एग्जिट पोल के सही निकलने का सबसे बड़ा निष्कर्ष ये होगा कि भाजपा से कथित नाराजगी के बाद भी मतदाता कांग्रेस को बतौर विकल्प स्वीकार करने की मानसिकता नहीं बना पा रहे। इसके अलावा गुजरात में भाजपा की जीत से जातिवादी राजनीति को एक और बड़ा धक्का लगेगा जो उप्र में पहले ही मुंह की खा चुकी है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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