Friday 29 December 2017

शाह बानो वाली गलती दोहराने से बचे कांग्रेस

लोकसभा में तीन तलाक़ को दण्डनीय अपराध बनाने वाले  विधेयक के पारित होने के बाद भी उसके कानून बनने में अभी राज्यसभा रूपी बाधा है, जहां विपक्ष संख्याबल में भारी पड़ता है। यद्यपि कांग्रेस ने तीन तलाक़ पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया और उसके परिप्रेक्ष्य में बनाए जाने वाले कानून पर भी रजामन्दी दी किन्तु विधेयक को और असरदार बनाने के नाम पर उसने और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक के कुछ पहलुओं को अव्यवहारिक मानते हुए सदन की प्रवर समिति के पास विचारार्थ भेजने की रट लगाई। सत्ता पक्ष जान रहा था कि कांग्रेस विधेयक को टांगे रखना चाहती है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ऐलानिया विरोध को देखते हुए भी पार्टी को लगा कि विधेयक को जस का तस पारित करवाने से वह मुस्लिम पुरुषों की नाराजगी का पात्र बन जाएगी जबकि मुस्लिम महिलाओं की सहानुभूति और समर्थन भाजपा में चला जाएगा जिसकी चर्चा उप्र विधानसभा चुनाव में भी सुनी गई थी। लोकसभा में सरकार ने तयशुदा रणनीति के तहत विदेश राज्यमंत्री एम जे अकबर को विधेयक के पक्ष में बोलने खड़ा किया जिन्होंने शरीया को कानून की बजाय जीने का तरीका बताया और ये भी कहा कि पवित्र कुरान में शरीया का जि़क्र केवल एक जगह है। उन्होंने इस्लाम को खतरे में बताने वालों की भी जमकर बखिया उधेड़ी। विधेयक पर सबसे मुखर विरोध था असदुद्दीन ओवैसी का किन्तु उनके सभी संशोधन भारी बहुमत से अस्वीकार कर दिए गए और अंतत: विधेयक एक-दो मतों के औपचारिक विरोध के बाद आसानी से पारित हो गया। विभिन्न दलों के सांसदों ने विधेयक की मूल भावना से सहमति जताते हुए तीन तलाक़ देने वाले मुस्लिम मर्द को जेल भेजने जैसे प्रावधान की व्यवहारिता पर सवाल उठाते हुए कहा ऐसा होने पर प्रभावित महिला के हित बुरी तरह प्रभावित होंगे तथा वह आर्थिक सुरक्षा से वंचित हो जाएगी। दरअसल तीन तलाक़ विरोधी इस विधेयक के कतिपय प्रावधानों पर ऐतराज जताकर उसे प्रवर समिति के हवाले करने का दबाव बनाने के पीछे मकसद विधेयक को ठंडे बस्ते में डाले रखना था जिससे भाजपा को उसका श्रेय पूरा का पूरा न मिल सके। कांग्रेस की चिंता भी यही है कि मुस्लिम समाज की महिलाओं के बीच प्रधानमंत्री की लोकप्रियता को कैसे  रोका जाए किन्तु फिलहाल तो भाजपा जो चाहती थी उसने हासिल कर लिया। अब यदि राज्यसभा में कांग्रेस भले ही अन्य विपक्षी दलों को पटा-पटूकर विधेयक को और विचार  करने के नाम पर अटका दे या फिर बहुमत से गिरवा दे तो भी भाजपा फायदे में ही रहेगी। ऐसा लगता है बचते-बचते एक बार फिर कांग्रेस तुष्टीकरण के आरोप में फंस रही है। संसद और विधानमण्डलों में एक तिहाई महिला आरक्षण और लोकपाल सम्बन्धी विधेयकों को जिस प्रारूप में पेश किया गया उनमें सुधार और संशोधन के नाम पर रोके जाने का नतीजा ये निकला कि वे त्रिशंकु बनकर रह गए। माकपा सांसद स्व. गीता मुखर्जी ने महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाने के अनुरोध के साथ कहा था कि संशोधन बाद में होते रहेंगे लेकिन ओबीसी लॉबी ने किसी भी कीमत पर विधेयक पारित न होने की जि़द पकड़ ली। एक बार तो शरद यादव ने मंत्री के हाथ से छीनकर विधेयक फाड़ दिया था। मुलायम-लालू और उमा भारती ने भी खुलकर विरोध किया। तीन तलाक़ विधेयक का भी यही हश्र न हो ये सोचकर ही सरकार ने विरोध कर रहे विपक्ष को न मौका दिया न मोहलत। इसी सत्र में विधेयक पारित करवाने का  कारण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक़ को असंवैधानिक बताते हुए इस सम्बंध में छह महीने में कानून बनाने सम्बन्धी निर्देश भी है। विपक्ष को लग रहा है कि विधेयक पारित होने पर भाजपा खुद को मुस्लिम महिलाओं की एकमात्र हितचिंतक साबित करने में कामयाब हो जाएगी। टीवी चैनलों के जरिये जो तस्वीरें और मुखर प्रतिक्रियाएँ मुस्लिम महिलाओं की देखने मिल रही हैं वे विपक्ष की आशंकाओं को सही ठहराती हैं। भले ही वे सभी मुस्लिम महिलाओं की प्रतिनिधि नहीं कही जा सकतीं किन्तु उनकी खुशी काफी कुछ ज़ाहिर कर देती है। अब शिया मुस्लिम समाज से मिले समर्थन ने भी सरकार का हौसला बढ़ा दिया है। विधेयक की मुखालफत मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने खुलकर भले की हो किन्तु मुसलमानों के भीतर तीन तलाक़ के मुद्दे पर जो अपराध बोध है उसकी वजह से विरोध के जैसे स्वर उठने चाहिये वैसे नहीं उठने से वे मुल्ला-मौलवी अकेले पड़ते दिख रहे हैं जिन्हें तीन तलाक़ के दण्डनीय अपराध बन जाने से अपनी दुकानदारी खतरे में पड़ती दिख रही है। इस विधेयक के विरोधियों को दरअसल ये फिक्र खाए जा रही है कि इसके बाद कहीं समान नागरिक संहिता लागू करने की तैयारी न होने लगे जो भाजपा का प्रमुख मुद्दा रहा है और इस पर भी सर्वोच्च न्यायालय टिप्पणी कर चुका है। भाजपा को भी ये लग रहा था कि मुस्लिम समाज में सेंध लगाने का इससे बेहतर अवसर नहीं मिलेगा। और फिर विधेयक सर्वोच्च न्यायालय की भी मंशा के अनुरूप है। कुल मिलाकर मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक़ जैसी मध्ययुगीन कुप्रथा से मुक्ति दिलवाने की गई ये पहल हर दृष्टि से ऐतिहासिक और साहसिक कदम है जिसके लिए नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार अभिनन्दन की हकदार है। इस विधेयक को राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कहा जाना पूरी तरह गलत नहीं है लेकिन फिर स्व.राजीव गांधी की सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को ठेंगा दिखाते हुए शाह बानो सम्बन्धी फैसले को उलट देने को क्या कहेंगे? बेहतर हो कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल राज्यसभा में तीन तलाक़ सरीखी महिला विरोधी प्रथा का अंतिम संस्कार करने में सहायक बनें जिससे वे मुस्लिम तुष्टीकरण की तोहमत से भी बच जाएंगे और भाजपा भी मुस्लिम महिलाओं की एकमात्र संरक्षिका बनने से वंचित हो जाएगी। कांग्रेस को ये भी ध्यान रखना चाहिए कि भले ही ये विधेयक मुस्लिम महिलाओं को राहत देने वाला हो लेकिन इससे उस हिन्दू समाज में भाजपा के प्रति लगाव और पुख्ता हो सकता है जिसको आकर्षित करने के लिए राहुल गांधी मन्दिर-मन्दिर जाकर खुद को हिंदुओं का नया हृदय सम्राट साबित करने हाथ-पाँव मार रहे हैं। शाह बानो मामले में आत्मघाती कदम उठाने से हुए नुकसान के बाद भी यदि कांग्रेस को बुद्धि नहीं आई तो यही कहा जा सकता है कि उसकी विचारशक्ति अभी तक लकवाग्रस्त ही है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment