Saturday 30 December 2017

अक्षम्य अपराध है मुंबई हादसा

मुम्बई एक अंतरराष्ट्रीय नगर है। देश की व्यावसायिक राजधानी की हैसियत भी इसे हासिल है। ज़ाहिर है ऐसे महानगर में सारी व्यवस्थाएं नियमानुसार होनी चाहिए लेकिन गत दिवस एक चार मंजिला इमारत की छत पर बने पब में लगी आग ने 14 लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया। खुली छत पर शेड डालकर चलाए जा रहे इस पाश्चात्य संस्कृति के आमोद प्रमोद के स्थान पर आग लगने का एक कारण हुक्का पार्लर बताया जा रहा है। आग लगते ही अनेक महिलाओं को सुरक्षा हेतु बाथरूम में बंद किया गया किन्तु वहां हवा का कोई रास्ता न होने से वे सब धुएं में घुटकर दम तोड़ बैठीं। उन्हें बचाने गए कुछ पुरुष भी हादसे का शिकार हो गए। मरने वालों में कुछ अप्रवासी भारतीय भी हैं जो नववर्ष मनाने देश आए थे। घटना की गूंज पूरे देश में हो गई। मुंबई महानगरपालिका पर हमला तेज हो गया। अवैध रूप से चल रहे पब के संचालन की अनुमति थी या नहीं ये साफ  नहीं हो पा रहा। लेकिन महानगरपालिका के कुछ लोग निलम्बित किये गए । मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश देने में देर नहीं लगाई। फायर सेफ्टी , हुक्का पार्लर और भवन की छत पर अस्थायी शेड  के नाम पर स्थायी निर्माण जैसी बातें उठ रही हैं। महानगरपालिका के अलावा पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने नियम विरुद्ध संचालित उक्त पब का संज्ञान क्यों नहीं लिया ये भी जांच का विषय है। कुल मिलाकर समझ ये आता है शासन-प्रशासन नामक व्यवस्था या तो बिक चुकी है या पूरी तरह निकम्मी हो गई है।। मुंबई में इस तरह के बार, क्लब,और पब अनगिनत हैं। रईसों की औलादों की मौजूदगी यहां आम होती है। मनोरंजन के अलावा ये जगहें व्यवसायिक सौदों के लिए भी उपयोग आती हैं किन्तु सबसे ज्यादा ये शराब, शबाब और कबाब के दीवानों की पसंदीदा होती हैं। महानगरों में बढ़ते व्यभिचार को भी इस तरह के अड्डे संरक्षण देते हैं। गत दिवस जो हुआ उसका असली कारण तो जांच से ही पता चलेगा बशर्ते वह ईमानदारी से की जाए वरना अब तक तो पुलिस और प्रशासन पर चौतरफा दबाव आ गए होंगे। इन अड्डों पर बड़े बड़े लोगों का वरदहस्त होने से पुलिस भी उनकी अनदेखी करती है। बताया जाता है कि पब का मालिक मशहूर गायक शंकर महादेवन का बेटा है। हो सकता है वे अपने पैसे और प्रभाव का उपयोग करते हुए मामला रफा-दफा करवा दें लेकिन मुंबई सदृश महानगर में इस तरह के हादसे किसी भी तरह से अक्षम्य हैं जिसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति को बख्शा नहीं जाना चाहिए, फिर चाहे वह कोई भी हो। इंसान को कीड़े मकोड़े समझने की प्रवृत्ति खत्म करना जरूरी है। मुआवजे से किसी मनुष्य की भरपाई नहीं होती।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment