Thursday 21 December 2017

सबका साथ - सबका विकास में सेना को न भूलें

संसदीय समिति द्वारा पेश एक रिपोर्ट में सेना के आधुनिकीकरण को लेकर बरती जा रही सुस्ती पर मोदी सरकार की जो खिंचाई की गई वह पूरी तरह सही और आवश्यक थी। हालांकि पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार की तुलना में मौजूदा केंद्र सरकार ने रक्षा सौदों में काफी तेजी दिखाई जिसका सुखद परिणाम नजर भी आने लगा है। इसी के साथ ये भी प्रशंसनीय है कि सेना को अब हथियारों के उपयोग के लिये किसी पूर्वानुमति की जरूरत नहीं पड़ती। गोली के जवाब में गोले बरसाने की स्थायी अनुमति ने सीमा पर तैनात जवानों के मनोबल में वृद्धि की है किंतु इस तथ्य से आंखें मूंद लेना खतरनाक होगा कि आधुनिक तकनीक के अस्त्र शस्त्र और अन्य तकनीकी उपकरणों की दृष्टि से अभी भी भारतीय सेना तुलनात्मक दृष्टि से काफी पीछे है। भारत की जमीनी सीमा पाकिस्तान, चीन, बांग्ला देश, नेपाल के साथ ही म्यांमार से भी मिलती है,वहीं श्रीलंका  नौसेना के दायरे में आता है। पाकिस्तान और चीन के साथ आतंकवाद और सीमा विवाद के चलते सदैव तनाव बना रहता है किंतु बदले हुए हालात में नेपाल, बांग्ला देश और म्यांमार की सीमा पर भी निरंतर चौकसी की जरूरत होती है। भारतीय सेना अनुशासन के मामले में विश्व भर में सर्वश्रेष्ठ माना जाती है। साधनों के अभाव के बावजूद भी विपरीत स्थितियों में हमारे सैनिक जिस कर्तव्यपरायणता का परिचय देते आये हैं वह अद्वितीय है किंतु रक्षा का क्षेत्र कुछ अलग हटकर होता है जिसमें व्यक्तिगत सुविधा-असुविधा की बजाय देश की सुरक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती है। संसदीय समिति ने आधुनिकीकरण में विलम्ब पर जो फटकार लगाई वह जायज होने के साथ ही समयानुकूल है। प्रधानमंन्त्री ने छोटे हथियार, लड़ाकू विमान, तोपें, राडार सहित अन्य आधुनिक रक्षा उपकरण खरीदने के बारे में व्यक्तिगत रूप से प्रयास करते हुए जो पहल की उसकी काफी तारीफ  हो रही है लेकिन आपूर्ति में विलम्ब होने से त्वरित परिणाम नहीं मिल पा रहे। आम तौर पर रक्षा सौदे हस्ताक्षरित होने के दो-तीन वर्ष बाद ही आपूर्ति हो पाती है। हमारी सेना के पास आधुनिक साजो सामान की कमी का एक कारण ये भी है कि पिछली केंद्र सरकार ने इस दिशा में नौ दिन चले अढ़ाई कोस की कहावत को चरितार्थ किया जिसके कारण सेना की परेशानियां सतह पर आने लगी थीं। तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष ने तो प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी खुलकर व्यक्त भी की थी। उस लिहाज से वर्तमान सरकार  तेज गति से प्रयास कर रही है लेकिन अभी पूरी तरह से अनुकूल या आदर्श स्थितियां बनने की बात नहीं कही जा सकती। मोदी सरकार ने रक्षा खरीद को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर सेना के तीनों अंगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने  की जो कोशिश की वह निश्चित रूप से संतोषजनक है किंतु संसदीय समिति द्वारा आधुनिकीकरण के काम में सुस्त रफ्तार पर जो उंगलियां उठाई हैं उनको आलोचना न मानकर समझाइश के तौर पर लेते हुए ये नहीं भूलना चाहिए कि प्रधानमंत्री के प्रिय नारे सबका साथ- सबका विकास में सेना भी आती है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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