Tuesday 28 November 2017

व्यापमं : क्षमता ही नहीं निष्पक्षता भी साबित करे सीबीआई


मप्र के सर्वाधिक चर्चित व्यापमं घोटाले में सीबीआई ने निजी मेडिकल कालेजों के जिन संचालकों को गिरफ्तार किया उनमें से अधिकांश ऊंची पहुंच वाले हैं। शासन और प्रशासन की प्रभावशाली हस्तियों के साथ उनका मेलजोल केवल औपचारिक सौजन्यता तक सीमित न रहकर शराब, कबाब और उसके आगे के ऐशो-आराम की सीमा तक जगजाहिर था। निजी मेडिकल कालेज की मान्यता से लेकर उसके संचालन की समूची प्रक्रिया को जिन हालातों से गुजरना होता है उनमें सत्ताधारियों तथा नौकरशाही के संरक्षण और सहयोग की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन सच्चाई तो ये है कि नोट बटोरू इन शिक्षण संस्थानों में राजनेताओं और नौकरशाहों की या तो अघोषित हिस्सेदारी रहती है या फिर सहयोग के बदले सौजन्यता का आदान-प्रदान किया जाता है। यही वजह है कि  व्यापमं घोटाले का पर्दाफाश होने के इतने वर्षों बाद तक पीएमटी परीक्षा में हेराफेरी करने वाले दिग्गज अभी तक सुरक्षित बने रहे। मप्र सरकार द्वारा पूर्व में गठित एसआईटी  ने अब तक निजी मेडिकल कालेजों के ताकतवर संचालकों की गर्दन पर हाथ क्यों नहीं डाला ये भी बड़ा सवाल है। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि यदि जांच का काम सीबीआई के जिम्मे न दिया जाता तो निजी मेडिकल कालेजों के रूप में चल रही इन दुकानों के सफेदपोश संचालक कभी गिरफ्त में नहीं आते। व्यापार में कर चोरी करने जैसे मामले तो सामान्य कहे जा सकते हैं लेकिन चिकित्सा शिक्षा का सम्बन्ध मानव जीवन की रक्षा से होने के कारण मेडिकल कालेजों में प्रवेश की प्रक्रिया पारदर्शी और त्रुटि रहित होनी चाहिए। फर्जी तरीके से डॉक्टर बना व्यक्ति किस तरह की चिकित्सा करता है ये किसी से छिपा नहीं है। जब तक चिकित्सा शिक्षा सरकारी मेडीकल कॉलेजों तक ही सीमित थी तब तक पीएमटी की पवित्रता पूरी न कहें तो भी काफी हद तक बनी रही लेकिन निजी क्षेत्र ने ज्योंही मेडीकल कालेज नामक धंधा खोला त्योंही प्रवेश परीक्षा में फजऱ्ीबाड़ा और सीटें बेचने का कारोबार चल पड़ा। इसकी शुरुवात कब और किसने की ये प्रश्न अब अर्थहीन होकर रह गया है क्योंकि अस्पतालों की तरह से ही निजी मेडीकल कालेज भी मानव सेवा की बजाय नोट छापने की मशीन बनकर रह गए हैं। यद्यपि मप्र में निजी मेडीकल कॉलेजों का पदार्पण महाराष्ट्र और कर्नाटक की अपेक्षा काफी बाद में हुआ किन्तु उनका मकसद  पूरी तरह व्यवसायिक होने से शिक्षा के स्तर की बजाय संचालकों का पूरा ध्यान येन-केन-प्रकारेण धन बटोरने में लगा रहा। कहा जाता है निजी मेडिकल कालेज की मान्यता हासिल करने में ही अनाप-शनाप खर्च होता है। फिर उसे बनाए रखने के लिए भी मेडिकल काउंसिल की औपचारिकताओं को पूरा करना होता है जिसके लिए किए जाने वाले दंद-फंद भी किसी से छिपे नहीं हैं । यही वजह है कि निजी मेडिकल कॉलजों की कार्यप्रणाली और छवि दोनों बदनामी के शिकार होकर रह गए । सीबीआई द्वारा व्यापमं घोटाले के अंतर्गत की गई गिरफ्तारियाँ पूरी तरह सही एवं जरूरी हैं लेकिन ये काफी पहले हो जातीं तब शायद शिवराज सरकार का दामन इतना दागदार न हुआ होता । कुछ सरकारी अधिकारियों पर भी सीबीआई ने शिकंजा कस दिया है जो इस आशंका की पुष्टि कर रहा है कि निजी मेडीकल कॉलेजों द्वारा प्रवेश परीक्षा में जो घपला-घोटाला किया गया उसको सरकारी अमले का अप्रत्यक्ष सहयोग था। लेकिन जब तक चिकित्सा शिक्षा हेतु प्रवेश जैसे अति पवित्र कार्य में गंदगी घोलने वालों के सिर पर हाथ रखे राजनेताओं के गिरेबाँ पर हाथ नहीं डाला जाता तब तक जांच अधूरी ही नहीं अविश्वसनीय भी कही जाती रहेगी । सीबीआई ने पूर्व में अनावश्यक रूप से  गिरफ्तार किए गए सैकड़ों लोगों को छोड़कर जांच को असली गुनाहगारों की तरफ  घुमाकर अपनी क्षमता भले साबित कर दी हो लेकिन अभी उसे अपनी निष्पक्षता प्रमाणित करनी है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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