अयोध्या में राम जन्मभूमि के विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय में नियमित सुनवाई शुरू होने के पहले ही आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर ने मध्यस्थता की जो पहल की वह ठीक तरह से शुरू होने के पहले ही फुस्स होती दिख रही है। सुन्नी मुसलमानों की ओर से तो सुलह की किसी भी गुंजाइश से खुले तौर पर इन्कार किया जाता रहा है लेकिन जिस शिया समुदाय को मंदिर के पक्ष में झुकता माना जाता था उसमें भी एक राय नहीं बन सकी। उधर मन्दिर आंदोलन से जुड़े रहे अनेक साधु-सन्त और उनके संगठनों ने भी रविशंकर की मध्यस्थता पर सवाल उठा दिए। ये चर्चा भी चल पड़ी कि श्री श्री को अचानक मन्दिर मामले में टांग अड़ाने की क्या सूझ गई? यद्यपि वे बाबा रामदेव की तरह ऐलानिया भाजपा के पक्ष में खुलकर नहीं बोलते किन्तु धीरे-धीरे वे भी कांग्रेस से दूर होते चले गए। रामदेव जहां ठेठ हरियाणवी स्टाईल में कांग्रेस का विरोध करते हैं जो उनके साथ मनमोहन सरकार द्वारा किये गए दुव्र्यवहार की स्थायी प्रतिक्रिया कही जा सकती है किंतु श्री श्री के प्रति कांग्रेस एवम अन्य विपक्षी दल उतने आक्रामक नहीं रहते। इसकी वजह उनका शांत स्वभाव और विवादों से दूर रहने की प्रवृत्ति हो सकती है लेकिन बीते कुछ सालों में ये आध्यात्मिक हस्ती भी भाजपा के काफी करीब आती गई। इसीलिए कुछ दबी जुबान तो कुछ खुलकर कह रहे हैं कि मंदिर विवाद में सुलह करवाने की यह कोशिश गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की राह में आ रही परेशानियों को दूर करने का दांव है। सच्चाई जो भी हो किन्तु बिना किसी ठोस तैयारी के श्री श्री का बीच में कूद पडऩा निरुद्देश्य या अकारण नहीं हो सकता। बाबा रामदेव का इस मुहिम से निर्लिप्त रहना भी अर्थपूर्ण है। दरअसल उप्र में भारी बहुमत की सरकार बनते ही मन्दिर निर्माण की कोशिशें तेज हो गई थीं। संयोगवश शिया मुस्लिमों के कुछ नेताओं के साथ आ खड़े होने से भाजपा के हौसले और बुलन्द हो गए। मुख्यमंत्री श्री योगी ने दीपावली को अयोध्या में जो झंका-मंका खींचा उससे भी संकेत मिला कि राम मंदिर की राह में आ रही रुकावटें दूर करना योगी सरकार के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में है। न्यायालयीन प्रकरण में शिया समुदाय द्वारा विवादित स्थल पर सुन्नियों की बजाय शियाओं के हक सम्बन्धी दावा भी भाजपा को अपने अनुकूल लग रहा था। लेकिन अचानक श्री श्री का अयोध्या आ धमकना और विभिन्न पक्षों से बात शुरू कर देना इस मामले में नया मोड़ कहा जाने लगा। उनका मुख्यमंत्री श्री योगी से मिलना ध्यान खींचने वाला रहा किन्तु बात ज्यादा आगे बढऩे के पहले ही पटरी से उतर गई। मंदिर आंदोलन के वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद रामविलास वेदान्ती तक ने श्री श्री की दखलंदाज़ी पर ऐतराज व्यक्त कर दिया वहीं श्री योगी ने भी रविशंकर से हुई भेंट के बाद ये कहकर इस पहल की हवा निकाल दी कि बातचीत का समय निकल चुका है। कुल मिलाकर जैसा उन्होंने खुद कहा वे कोई प्रस्ताव लेकर नहीं अपितु महज आम सहमति के लिए ज़मीन तैयार करने गये थे किंतु मुस्लिम तो छोडिय़े हिन्दू संगठनों तक ने श्री श्री को ठीक से घास नहीं डाली। रही सही कसर पूरी कर दी श्री योगी के बयान ने। ये सब देखने के बाद लगा कि श्री श्री ने कहीं बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तर्ज पर बिन बुलाए मेहमान की तरह आकर अपनी किरकिरी तो नहीं करवाई। वेदान्ती जी और श्री योगी की प्रतिक्रिया से लगता है कि उनकी कोशिश को भाजपा में भी अपेक्षित समर्थन नहीं मिल सका। बहरहाल इतना जरूर हुआ कि मुसलमानों द्वारा सुलह के लिए दो टूक असहमति व्यक्त किये जाने से हिन्दू जनमानस में एक बार फि र से मन्दिर मुद्दा जीवंत हो उठा। वैसे मुख्यमंत्री श्री योगी की ये टिप्पणी कि बातचीत का समय निकल चुका, मायने रखती है क्योंकि दोनों पक्षों में कोई भी झुकने या पीछे हटने के लिए रज़ामंद नहीं हो तब अदालत के फैसले का इन्तेज़ार करना ही मज़बूरी बन गई है। इसी बीच मुसलमानों को मोटी रकम देकर विवादित स्थल से दूर मस्जि़द बनाने के लिए तैयार करने की कथित कोशिश सम्बंधी स्टिंग से सनसनी मची किन्तु वह भी कोई असर न दिखा सकी। इन सब से यही लगता है कि केंद्र सरकार सहित हिन्दुओं -मुसलमानों के संगठनों और राजनीतिक दलों को सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध करना चाहिए कि वह जन्मभूमि विवाद पर जल्द निर्णय करे। अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया उसके आधार पर ही आगे बढऩा ठीक रहेगा वरना अतीत में देश की राजनीति को हिलाकर रख देने वाला ये मुद्दा यूँ ही नासूर बना रहेगा। योगी जी ने बातचीत का समय निकल जाने की बात कहकर गेंद न्यायपालिका के पाले में ही खिसका दी है। भले ही शिया समुदाय का रुख लचीला हो गया हो किन्तु सुन्नी इतनी आसानी से मानेंगे ये खुशफहमी पालना मूर्खों के स्वर्ग में विचरण करने जैसा है। रही श्री श्री रविशंकर की पहल तो वे दिल मिलें न मिलें, हाथ मिलाते रहिये की शायराना समझाइश पर अमल करते रहें उसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं होगा।
-रवीन्द्र वाजपेयी
No comments:
Post a Comment