Thursday 9 November 2017

धुंध : तथाकथित विकास की महंगी कीमत



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दिल्ली से लेकर लाहौर तक छाई धुंध ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। सर्दी के मौसम में इस तरह का कोहरा देखने पर्यटक पहाड़ी क्षेत्रों में जाया करते हैं। फिल्मों में भी किसी रोमांटिक दृश्य को फिल्माते समय कृत्रिम धुएं से कुदरती माहौल उत्पन्न किया जाता है। सर्दी के कोहरे में समूचा उत्तर भारत परेशान हो उठता है किन्तु बीते दो दिनों में जिस धुंध ने राष्ट्रीय राजधानी सहित उसके ऊपरी प्रान्तों को चादर की तरह ढंक दिया उसमें प्रदूषण नामक जहर होने से वह स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। सांस के मरीजों के लिये तो उन क्षेत्रों में रहना मुश्किल हो गया है। बच्चों और बुजुर्गों के लिये भी ये परिस्थितियां बेहद त्रासदायी हैं। बदलते मौसम के साथ हरियाणा के खेतों में जलाये जाने वाले कचरे से आने वाला धुआं भी राजधानी के वायुमंडल को धुंधला कर देता है। उम्मीद है 10 तारीख से हवाओं में तेजी के बाद हालात सुधरेंगे किन्तु ये धुंध जिसे सर्दी के फॉग की बजाय स्मॉग कहा जाता है एक स्थायी सिरदर्द बनने लगा है। गत दिवस आगरा-नोएडा के बीच बने यमुना एक्सप्रैस हाइवे पर धुंध के कारण कई वाहन आपस में जिस तरह टकराए उसने स्मॉग की भयावहता को सामने ला दिया। जहां तक प्रकृति का प्रश्न है तो उस पर तो किसी का जोर नहीं है परन्तु उसके प्रकोप में प्रदूषण का समावेश होने से साल दर साल चिंता बढ़ती जा रही है। बीते दो दिनों से राजधानी का मंजर देखकर लोगों ने 1952 में लंदन में उत्पन्न ऐसी ही स्थितियों का हवाला दिया तो कुछ जानकार चीन की राजधानी बीजिंग में स्मॉग के हमले का जिक्र करना भी नहीं भूले किन्तु लगे हाथ ये बात भी स्पष्ट हो गई कि लंदन में जाड़े के दिनों में हिमपात के बाद छाने वाले धुंध के अलावा प्रदूषण से होने वाले स्मॉग पर नियंत्रण कर लिया गया वहीं बीजिंग ने भी बिना वक्त गंवाए हवा में जहर घोलने वाले उद्योगों एवं अन्य संस्थानों को दूर के इलाकों में भेज दिया। उपाय तो हमारे देश में भी खोजे जा रहे हैं किन्तु उन्हें लागू करने को लेकर दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव तो है ही राजनीतिक खींचातानी भी बाधक बन जाती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऑड-ईवन फार्मूले को दोहराने की बात कही है। जिसके अन्तर्गत एक दिन सम तो दूसरे दिन विषम नंबर के वाहनों को चलने की अनुमति दी जावेगी। इसका उद्देश्य सड़कों पर वाहनों की भीड़ आधी कर धुंए में कमी लाना है जो प्रकृति प्रदत्त धुंध में मिलकर हवा को जहरीला बनाकर रख देता है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के और भी उपाय खोजे जा रहे हैं परन्तु ये समूची उठापटक तभी तक रहेगी जब तक स्मॉग रहेगा। एक दिन बाद ज्यों ही हवाओं में तेजी आने से हालात सुधरेंगे दिल्ली सहित प्रभावित राज्यों की सरकारें और जनता दोनों दूसरे कामों में लग जायेंगे। बढ़ते औद्योगिकीकरण, वाहनों की बढ़ती कतारें तथा बेतहाशा कचरे ने पूरे देश की आबोहवा को दूषित कर दिया है। नदियों के किनारे हों या पहाड़, जंगल हों या अन्य जगहें, सभी गंदगी की शिकार होती जा रही हैं। प्रधानमंत्री के स्वच्छता मिशन ने निश्चित रूप से लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला किन्तु आज भी अधिकतर की मानसिकता  हम नहीं सुधरेंगे की ही है। यही वजह है कि देश की राजधानी सहित तमाम बड़े कहलाने वाले शहरों में जिन्दगी लगातार दूभर होने लगी है। वहां रहने के अपने आकर्षण हो सकते हैं किन्तु वहां की हवा में घुलता जहर स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहा है। दिल्ली सहित उत्तर भारत के बड़े इलाके में सर्दियां शुरू होते ही जो स्थितियां बन गई हैं वे पूरी तरह रोकी तो नहीं जा सकतीं परन्तु तथाकथित विकास की जो कीमत हमें चुकानी पड़ रही है वह बहुत ज्यादा है। विलासितापूर्ण जीवन शैली का अपना महत्व है। आर्थिक स्तर में सुधार से भी रहन-सहन के तरीके बदले हैं। मध्यमवर्गीय परिवारों में चौपहिया वाहन के साथ ही सुख-सुविधाओं के साधन तथा उपकरण बढ़ चले हैं परन्तु इस सबका जो दुुष्परिणाम सामने आ रहा है वह भावी पीढ़ी की जिन्दगी के लिये बड़े संकट का आधार तैयार करने वाला है। हर मुसीबत के समय उससे निपटने के उपाय तलाशना और उसके टलते ही लंबी तानकर सो जाने की प्रवृत्ति ही ऐसी समस्याओं की वजह है। दिल्ली में न तो पहली मर्तबा धुंध छाई है और न ही ये अंतिम है। जरूरत है समस्या के स्थायी समाधान तलाशने की क्योंकि प्रकृति का चाल-चलन यदि बदल रहा है तो उसके लिये भी हमारा आचरण ही तो कसूरवार है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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