Thursday 9 November 2017

हँस-हँस के सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग

9 नवम्बर 1989 की शाम पाठकों के हाथ आया मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस 28 वर्ष की अपनी संघर्ष यात्रा पूरी करके आज 29वें वर्ष में प्रविष्ट हो रहा है। एक चौथाई सदी से भी ज्यादा का ये कालखंड अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए है, शहर, प्रदेश, देश और दुनिया ने इस दौरान अनगिनत बदलाव देखे। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि हर क्षेत्र में जितना परिवर्तन बीते दो-ढाई दशक में हुआ उतना संभवत: विगत् शताब्दि भर में नहीं हुआ होगा। समाचार माध्यम भी इससे अछूते नहीं रह सके और ये कहना पूरी तरह सही रहेगा कि अभिव्यक्ति के जितने नए रास्ते इस दौर में खुले वे शायद ही पहले खुले हों। संचार सुविधाओं के विकास के साथ ही सूचना क्रांति के विस्फोट ने पूरी दुनिया को समेटकर रख दिया है। खबरों का प्रवाह और प्रभाव दोनों जिस तेजी से बढ़े उससे लोगों के सोचने-समझने की शक्ति और प्रवृत्ति दोनों में वृद्धि हुई किंतु इसके साथ ही विकृति का प्रादुर्भाव भी होता गया जो  बड़ी चिंता का विषय  बनता जा रहा है। तकनीक के असीमित विकास एवं हर हाथ तक पहुंच जाने के फायदे और नुकसान दोनों का विश्लेषणात्मक अनुभव पूरी दुनिया कर रही है। ऐसी परिस्थितियों में एक सांध्य कालीन ब्लैक एंड व्हाइट सीमित पृष्ट संख्या वाला अखबार निकालना दु:साहस का समानार्थी बन गया है। बाजारवाद के जबरदस्त आक्रमण और सरकार नामक व्यवस्था का स्वतंत्र सोच रखने वाले अभिव्यक्ति के माध्यमों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार एक नई समस्या बनकर सामने आ गया है। बीते एक दो वर्षों में क्षेत्रीय भाषायी अखबारों के सामने एक तरह से अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है। परिस्थितियां पूरी तरह कठिन या यूं कहें कि विपरीत होने के बाद भी मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस ने न अपनी चाल बदली न चरित्र। बिना दबाव में आए सत्य को प्रस्तुत करते हुए आम जनता के साथ अपनी प्रतिबद्धता को जोड़े रखने का जो सिलसिला बीते 28 सालों में पाठकों ने अनुभव किया उसे जारी रखने के लिए आपका यह समाचार पत्र कटिबद्ध है। व्यवसायिकता के इस दौर में जब समाचार पत्र एक मिशन की जगह उद्योग और मुनाफे के साथ ही अनुचित हित साधन के औजार बनते जा रहे हैं, तब मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस पत्रकारिता के आदर्शों के अनुरूप चलते रहने का हर संभव प्रयास करने के लिए संकल्पित है। आगे का रास्ता बेहद चुनौतीपूर्ण है। हर दिन नए संकट लेकर आ खड़ा हो जाता है। बड़ी मछलियों से तो खैर निपट भी लें परन्तु अब तो मगरमच्छ भी मुकाबले में खड़े हैं। बावजूद इसके मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस कर्तव्य पथ पर अपनी चिरपरिचत चाल से चलता रहेगा।  प्रतिबद्ध पाठक और विज्ञापनदाताओं के साथ ही अनगिनत शुभचिंतकों  का विशाल परिवार इस अखबार की ताकत है जिसके आधार पर हम स्व. दुष्यंत कुमार की इन कालजयी पंक्तियों से प्रेरणा लेकर भविष्य में भी आपके बीच बने रहेंगे:-

हमने तमाम उम्र अकेले सफर किया
हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही।
हॅंस-हॅंस के सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग
रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही।

                शुभकामनाओं सहित, 

-रवींद्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment