Thursday 2 November 2017

भ्रष्ट भाजपाइयों की जानकारी देने वाले को कितना ईनाम मिलेगा

म.प्र. के स्थापना दिवस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विकास यात्रा का शुभारंभ करते हुए कहा कि भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी की जानकारी देने वाले को एक लाख का पुरस्कार दिया जावेगा। उन्होंने ईमानदारी से काम करने वाले सरकारी मुलाजिमों को गले लगाकर सम्मानित करने की बात भी कही। व्यापमं नामक महाघोटाले में सीबीआई द्वारा पाक-साफ घोषित कर दिये जाने के बाद विपक्ष के निशाने पर आए मुख्यमंत्री का इस तरह का बयान देना दर्शाता है कि वे व्यापमं के कारण पडऩे वाले मानसिक दबाव से मुक्त होने के बाद अब अपनी छवि सुधारना चाह रहे हैं। 2018 में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ऐसा करना उनके लिए बाध्यता भी है क्योंकि स्वयं भाजपाई भी मानते हैं कि भले ही बीते 14 साल में म.प्र. ने आर्थिक विकास की नई मंजिलों को छू लिया हो तथा वह बीमारू के कलंक से निकलकर संभावना भरे प्रदेश के तौर पर जाना जा रहा हो परन्तु भ्रष्टाचार के मामले में वह देश के अन्य राज्यों से काफी आगे निकल गया है। सत्ता और संगठन से जुड़े भाजपा नेताओं की ईमानदारी पर भरोसा करने वाले अब ढंूढ़े नहीं मिलते। कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल के युग से निकलकर पार्टी अब सिद्धांतों की बजाय सत्ता के पीछे भागने वाली बनकर रह गई है। शिवराज जी ने भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों की जानकारी देने वालों को एक लाख रु. का पुरस्कार देने की जो घोषणा की वह सतही तौर पर तो स्वागत योग्य लगती है लेकिन उस पर कितना अमल हो पाएगा ये कहना कठिन है। सबसे बड़ी बात ये है कि जानकारी देने मात्र से क्या शिवराज जी की सरकार किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को भ्रष्ट मान लेगी? वैसे भी बेईमान नौकरशाहों को पकडऩे के लिए लोकायुक्त जैसी संस्था पहले से ही कार्यरत है। फर्क इतना है कि वह शिकायतकर्ताओं को किसी भी तरह का पुरस्कार या सम्मान नहीं देती। मुख्यमंत्री वैसे तो काफी दरियादिल हैं। सरकारी खजाने को लुटाने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता। इस आधार पर हो सकता है चुनाव के पहले वे इस ईनामी योजना को जोर-शोर से लागू कर ईमानदारी का पुतला होने का स्वांग रचें परन्तु अच्छा होता यदि मुख्यमंत्री ये घोषणा कर देते कि भ्रष्ट भाजपा नेता की जानकारी देने वाले को कितनी राशि बतौर पुरस्कार दी जावेगी? कबीरदास कह भी गये हैं कि मुझसे बुरा न कोय...। दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी रहे शिवराज जी इस कबीर वाणी का आशय अच्छी तरह जानते और समझते होंगे। प्रदेश की जनता उनकी ईमानदारी और सदाशयता का खुले दिल से स्वागत करती यदि वे जनता का आह्वान करते हुए कहते कि बेईमान और सिर से पांव तक भ्रष्ट भाजपा के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों एवं अन्य नेताओं के काले कारनामों की जानकारी देने वाले को न सिर्फ नगद ईनाम अपितु मुख्यमंत्री निवास पर बुलाकर उसका अभिनंदन भी किया जावेगा। उनकी घोषणा के संदर्भ में ये सवाल भी स्वाभाविक रूप से उठता है कि भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी की जानकारी देने वाले को नौकरशाही के कोप से कौन बचाएगा? मुख्यमंत्री को सत्ता में रहते हुए इतना तो पता चल ही गया होगा कि भ्रष्टाचार को लेकर पूरा सरकारी तंत्र जबर्दस्त एकता के सूत्र में बंधा है और फिर एक भ्रष्ट की जांच दूसरे भ्रष्ट से करवाने का क्या परिणाम निकलता है, ये किसी से छिपा नहीं है। सरकारी मुलाजिमों का भ्रष्टाचार रोकने का ये उपाय तभी कारगर हो सकता है जब मुख्यमंत्री अपनी सरकार के मंत्रियों सहित अन्य जनप्रतिनिधियों और संगठन के पदों पर जमे नेताओं को शत्-प्रतिशत ईमानदार बनाएं। ये बात प्रमाणित सत्य है कि नौकरशाही तब तक भ्रष्ट नहीं हो सकती जब तक सत्ता में बैठे लोग उसे ऐसा करने की छूट नहीं दें। मसलन सत्तारूढ़ पार्टी की रैलियों के लिए वाहनों का इंतजाम करने वाले परिवहन अधिकारी से ईमानदारी की अपेक्षा करना बेमानी होता है। शिवराज जी को ये समझ लेना चाहिए कि ईमानदारी कोई रेडीमेड कपड़ा नहीं जो शोरूम में पसंद कर तत्काल पहिन लिया जावे। जनता से बेईमान सरकारी मुलाजिमों को पकड़वाने की अपेक्षा करने वाले मुख्यमंत्री को कबीरदास की साखी में निहित सीख को ध्यान में रखना चाहिए। और खुलकर कहें तो जिनके अपने घर शीशे के होते हैं वे दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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