विश्वास भले न हो परन्तु सुनकर अच्छा लगा कि भारत में कारोबार करने की स्थिति बेहतर हुई है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक गत एक वर्ष में भारत में व्यवसाय करने की परिस्थितियों में बेहद सुधार हुआ है तथा वह 130वें स्थान से उछलकर 100वें पर आ गया। इसमें टैक्स सुधार सहित सरकारी महकमों की प्रक्रिया को व्यापार के अनुकूल बनाना शामिल है। भारत में कारोबार शुरू करना पहाड़ पर चढऩे से भी ज्यादा कठिन है। अच्छे-अच्छे इस दौरान हॉंफने लगते हैं। यदि किसी की पहुंच न हो तो घूस रूपी अस्त्र काम आता है वरना तो सरकारी दफ्तरों में लगने वाले चक्कर छटी का दूध याद दिलवा देते हैं। इसी को आधार बनाकर चप्पल बनाने वाली एक कंपनी ने विज्ञापन बना डाला जिसमें एक व्यक्ति दफ्तर के बाबू से नाराजी भरे स्वर में कहता है कि चक्कर लगाते-लगाते मेरी चप्पलें घिस गईं और तब बाबू बड़े ही सहज रूप से पूछता है क्या आपने फलां-फलां कंपनी की ऑफिस चप्पल नहीं खरीदी जो आसानी से घिसती नहीं। लालफीताशाही की संस्कृति से प्रभावित हमारे देश के सरकारी विभागों में जमे लोगों को किसी का काम रोकने में जो आत्मिक सुख मिलता है वह देश की प्रगति में सबसे बड़ा रोड़ा है। प्रधानमंत्री लाल किले से मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप या अन्य ऐसी ही योजनाएं घोषित करते रहें परन्तु ज्योंही वे नौकरशाही के पास पहुंचती है, वह गति अवरोधक लगाना शुरू कर देती है। विश्व बैंक के ताजा आकलन को पूरी तरह नकार देना तो उचित नहीं होगा किन्तु स्थिति उतनी अच्छी तो कतई नहीं कही जा सकती जितनी बताई गई है।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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