Wednesday 15 November 2017

खनन नीति: भ्रष्टाचार का विकेंद्रीकरण

मप्र सरकार द्वारा गत दिवस खनन नीति में बदलाव करते हुए नर्मदा की 87 खदानों से रेत उत्खनन का काम 2021 तक ठेकेदारों के पास ही रहने देने और शेष खदानों से पंचायत को रायल्टी चुकाकर खनन किये जाने का निर्णय किया। नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान नर्मदा से रेत निकालने पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगाने के फैसले के कारण मप्र में रेत के दाम आसमान छूने लग गए जिसका सीधा असर निर्माण कार्यों पर पड़ा। पहले से अवैध रेत उत्खनन के लिए आलोचना झेल रही प्रदेश सरकार को रेत की कालाबाज़ारी के लिए और भी ज्यादा आलोचना सहनी पड़ी। चोरी से रेत का खनन और जमाखोरी भी शिवराज सरकार के विरुद्ध बड़ा मुद्दा बन गई। अंतत: कल मंत्रीमंडल ने रेत निकासी की छोटी खदानें ग्राम पंचायत के जिम्मे कर दीं। इसी के साथ खनन पर लगी रोक खत्म होने का रास्ता खुल गया। जल्द ही इस सम्बंध में औपचारिकताएँ भी पूरी कर ली जावेगीं। सरकार की मंशा पर सवाल न उठाया जावे तब भी ये तो कहा ही जा सकता है कि जिस भ्रष्ट नौकरशाही और राजनीतिक संरक्षण के कारण खनन माफिया की लूटखोरी चल रही थी उसका रवैया कैसे बदलेगा? अवैध रेत उत्खनन का कारोबार बिना खनिज विभाग और राजनीतिक नेताओं के साथ माफिया की संगामित्ति के सम्भव नहीं है। ग्राम पंचायत को अधिकार देकर भले ही खनिज विभाग का एकाधिकार खत्म करने की व्यवस्था की गई हो किन्तु पंचायतों में बैठे नेता और अधिकारी भी दूध के धुले तो हैं नहीं जो उनसे राजा हरिश्चंद्र जैसी ईमानदारी की उम्मीद की जाए। सही बात ये है कि रेत खनन राजनीतिक नेताओं,अफसरशाही और इस कारोबार नें लगे ठेकेदारों के गठजोड़ से ही धड़ल्ले से चलता रहा। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि अधिकतर खनन व्यवसायी राजनीतिक नेता या उनके परिजन ही हैं अथवा वे पर्दे के पीछे से उसमें भागीदार हैं। शिवराज सरकार खनन के मामले में पिछली कांग्रेस सरकारों से किसी भी लिहाज से कम बदनाम नहीं है। इसका प्रमाण तब मिला जब भाजपा की बैठक में मुख्यमंत्री सहित संगठन के बड़े नेताओं तक को कहना पड़ा कि कार्यकर्ता मकान,दूकान और खदान से दूर रहें। चिंतन,मनन और खनन जैसे कटाक्ष भी खूब चर्चित हुए। उस दृष्टि से नई रेत खनन नीति की सफलता के प्रति तब तक आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता जब तक राजनीतिक नेता इस व्यवसाय से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े रहेंगे। चुनाव वर्ष में अपनी सरकार की छवि सुधारने के लिए उठाया यह कदम आत्मघाती भी हो सकता है क्योंकि ग्राम पंचायतों के हाथ में रेत उत्खनन का काम आने का मतलब भ्रष्टाचार का विकेंद्रीकरण ही है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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