Monday 6 November 2017

पुलिस : चेहरा नहीं चरित्र बदलना जरूरी

भोपाल मेंं हुए सामूहिक बलात्कार पर प्रशासनिक कार्रवाई करते हुए राज्य सरकार ने पुलिस महानिरीक्षक एवं रेल एसपी का तबदला कर दिया। महानिरीक्षक को कनून व्यवस्था के बिगडऩे तथा एसपी रेल को घटना का विवरण देते हुए खिलखिलाते रहने आरोप पीडि़ता युवती ने जो बाते समाचार माध्यमों के जरिये कही उनसे पुलिस विभाग की संवेदनहीनता एक बार फिर सामने आ गई है। पुलिसकर्मी की बेटी होने के बावजूद उस युवती की रिपोर्ट लिखने और आरोपियों को पकडऩे के मामले में पुलिसवालों ने जिस तरह का निर्लज्ज आचरण किया वह निश्चित रूप से शर्मनाक था। एक महिला होने के बाद भी एसपी रेल का घटना का ब्यौरा देते वक्त ठहाके लगाना ये प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि पुलिस विभाग भावना शून्य हो चुका है। नेताओं को आला अफसरों कीे चापलूसी तथा आम जनता को प्रताडि़त करना ही पुलिस की पहचान बन गई है। यही वजह है कि भोपाल रेंज के आईजी और एसपी रेल के तबादले से शायद ही किसी समझदार व्यक्ति को संतोष हुआ होगा। ये एक तरह से जनता के गुस्से पर पानी डालना ही है लेकिन एक-दो बड़े और दो-चार छोटे अधिकारी इधर से उधर कर देने मात्र से न तो पुलिस महकमे के प्रति धारणा बदलेगी, न ही सरकार के प्रति। हॉलांकि गृहमंत्री को भी हटा दिया जाता जब भी कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि उस घटना के बाद भी प्रदेश के कई हिस्सों से दरिन्दगी के समाचार मिलते रहे हैं। कुल मिलाकर बात चरित्र पर आकर ठहर जाती है जिसके बिना चेहरे कोई मायने नहीं रख सकते। भोपाल रेंज के नए पुलिस महानिरीक्षक तथा एसपी रेल कोई देवलोक से आयात तो किए नहीं गए इसलिए ये मान लेना दिल को बहलाना ही है कि वे आते ही भोपाल में रामराज स्थापित कर सकेंगे।  दो चार दिन की सख्ती के बाद नया अफसर जैसे स्थिति में आ जाता है।  ये कहना कतई गलत नहीं है कि पुलिस विभाग में सिपाही से लेकर डीजीपी तक की नियुक्ति या तबादला सामान्य तरीके से नहीं होता उसमें या तो राजनीतिक दबाव काम करता है या फिर लक्ष्मी मैया। थानों का वर्गीकरण मलाईदार जैसे विशेषणों से किया जाता है। कमाई वाले थाने या जिले में पदस्थ होने के लिये जो करना पड़ता है उसकी कीमत वर्दीधारी जनता से वसूलते हैं और वह भी बेरहमी से। ये सब देखते हुए भोपाल कांड के बाद पुलिस विभाग में हुए तबादलों से कोई खास फायदे की उम्मीद करना बेमानी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक संवेदनशील व्यक्ति माने जाते हैं। सत्ता में रहते हुए भी उन्हें लंबा अरसा बीत चुका है लेकिन अब तक वे ये नहीं समझ सके कि शासन-प्रशासन की छबि सुधारने के लिये चेहरे नहीं चरित्र बदलने की जरूरत है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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