Monday 12 February 2018

मुस्लिम समाज से आ रहे आशाजनक संकेत

अयोध्या में राममन्दिर के निर्माण को लेकर अब तक तो हिन्दू समाज में ही विभिन्न धर्माचार्यों तथा धार्मिक संगठनों के बीच एकजुटता का अभाव दिखाई देता था लेकिन सम्भवत: ये पहला अवसर होगा जब मुस्लिम समाज भी दोफाड़ होता लग रहा है। श्री श्री रविशंकर के समझौता प्रयासों के संदर्भ में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के भीतर जिस तरह की खींचातानी नजऱ आ रही है वह अभूतपूर्व होने के साथ ही इस बात का प्रमाण है कि अब वहां भी कट्टरपन छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की छटपटाहट शुरू हो गई है। बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना सलमान हुसैन नदबी जिन्होंने बाबरी ढांचे की जमीन के दावे को छोड़कर किसी और जगह मस्जि़द बनाने पर सहमति दिखाई, को बोर्ड ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। जवाबी हमले में श्री नदबी ने खुद होकर सदस्यता छोडऩे जैसी बात कहते हुए ये खुलासा भी किया कि वे दंगा करवाने वालों के साथ नहीं रहना चाहते। उधर शिया मुस्लिमों के शीर्ष संगठन ने तो सुन्नियों के संगठन पर आतंकवादी होने तक का आरोप लगा दिया। कई मुल्ला-मौलवी भी बीते कुछ दिनों में अयोध्या विवाद सम्बन्धी हठधर्मिता छोड़कर समझौता कर लेने की ही वकालत करते देखे गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समूचे विवाद को धर्म और आस्था जैसे भावनात्मक विषयों से अलग भूमि स्वामित्व तक सीमित करते हए दोनों पक्षों की तरफ  के नेतागिरी करने वालों के हस्तक्षेप पर जो विराम लगा दिया गया उससे भी मुस्लिम समाज में ये सोचने वाले बढ़ते जा रहे हैं कि कहीं अदालत ने विवादित ज़मीन पर मुस्लिमों के स्वामित्व को नहीं माना तब वे खाली हाथ रह जावेंगे। इसलिए समझौते के रास्ते पर चलकर अयोध्या में ही दूसरी मस्जि़द बनाने के लिए भूमि प्राप्त होने के प्रस्ताव को मंज़ूर कर लिया जावे। यद्यपि मुस्लिम समाज में समझौते के फार्मूले पर चलते हुए बाबरी ढांचे वाली जमीन का दावा छोड़ देने की मानसिकता को आम स्वीकृति दिलवाना किसी एक या पांच-दस नेताओं के लिए सम्भव नहीं होगा किन्तु दूसरी तरफ  ये भी सच है कि उप्र की सत्ता पर भाजपा के अपनी दम पर काबिज होने के बाद से मुस्लिम नेताओं का एक वर्ग ये मान रहा है कि उनके पास पहले जैसा राजनीतिक समर्थन और संरक्षण नहीं बचा है इसलिए बेहतर है बीच के किसी रास्ते को अपनाकर रोज-रोज की झंझटों से निज़ात पा ली जावे। तीन तलाक़ विरोधी कानून को लेकर मुस्लिम महिलाओं के बीच अपने लिए जगह बनाने के बाद से भाजपा का हौसला बढ़ा है। मुस्लिम समाज का एक वर्ग ये मान रहा है जिस तरह उनकी पर्दानशीं महिलाओं तक ने तीन तलाक़ के मुद्दे पर सारे बन्धनों को धता बताते हुए खुलकर अपनी राय व्यक्त की वह समाज के भीतर आ रहे खुलेपन का संकेत है जिसे नहीं समझने पर उसके और बढऩे का खतरा मंडराता रहेगा। जिस तरह हिंदुओं में भी काफी बड़ा वर्ग है जिसके लिए मन्दिर निर्माण अब उतना मायने नहीं रखता ठीक वैसे ही मुसलमानों में भी मस्जि़द की जि़द के प्रति रुचि कम होती दिखने लगी है। भले ही वैसा सोच रहे लोग हिंदुओं की अपेक्षा बहुत कम ही क्यों न हों। झगड़ा खत्म कर कोई शांतिपूर्ण समाधान तलाशने की बढ़ती इच्छा से हर समझदार व्यक्ति आशान्वित हो चला है, फिर चाहे वह हिन्दू हो अथवा मुसलमान। ये भी माना जा रहा है कि रविशंकर जी के मध्यस्थता प्रयासों के पीछे केंद्र सरकार और भाजपा का समर्थन है तथा मुसलमानों के  बीच योजनाबद्ध प्रयासों के जरिये काफी लोगों को मस्जि़द कहीं और बनाने के लिए रजामंद कर लिया गया है। वास्तविकता जो भी हो किन्तु मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के भीतर के मतभेदों का सतह पर आ जाना ये साबित करने के लिये पर्याप्त है कि उच्चस्तर पर कोई न कोई खिचड़ी पकाई जा रही है वरना मुस्लिम समाज में राम मन्दिर के प्रति नरम रवैया प्रदर्शित करने की पहल करने वाले इतनी हिम्मत नहीं दिखाते। हालांकि अभी कोई बड़ी उम्मीद पाल लेना जल्दबाजी होगी लेकिन कोशिश वालों करने वालों की हार नहीं होती जैसी अवधारणा पर विश्वास करें तो ऐसा लगता है कि बीते कई दशकों से देश को आंदोलित करने वाले इस विवाद के हल की संभावनाएं बलवती हो रही हैं। हिंदुओं के साथ ही मुस्लिम समुदाय में भी समन्वयवादी सोच का प्रादुर्भाव देशहित में ही होगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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