Thursday 22 February 2018

माहौल सही हो तो निवेशक खुद आ जाएंगे

उप्र में हुए निवेशक सम्मेलन में उपस्थित उद्योगपतियों द्वारा की गईं घोषणाओं को सुनकर ऐसा लग रहा है मानों उन सबके लिए उद्योग-धंधे के लिए इससे बेहतर प्रदेश कोई दूसरा नहीं होगा। कई लाख करोड़ के निवेश के ऐलान से उप्र के आर्थिक कायाकल्प का जो सपना दिखाया जा रहा है यदि वह साकार हो सके तो सबसे अधिक आबादी वाले इस प्रदेश की किस्मत का दरवाजा खुलते देर नहीं लगेगी। उद्योगपतियों ने योगी सरकार के निमंत्रण पर जो दरियादिली दिखाई उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपना योगदान देते हुए बुन्देलखण्ड में रक्षा उत्पादन गलियारा बनाने हेतु 20 हजार करोड़ की सौगात दे डाली। औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ चुके उप्र को विकसित राज्यों की कतार में लाकर खड़ा करने के लिए मुख्यमंत्री योगी का महत्वाकांक्षी प्रयास उनके उत्साह का परिचायक है किन्तु निवेशक सम्मेलनों को लेकर जितने ढोल पीटे जाते हैं उतना होता नहीं है। वही उद्योगपति विभिन्न राज्य सरकारों के निमंत्रण पर पहुंचकर अतिथि धर्म का निर्वहन करते हुए मंच से घोषणाओं के अम्बार लगा देते हैं, जिससे उनकी आवभगत में लगी सरकार गदगद हो जाती है और जनता भी जागती आंखों से विकास के ख्वाब देखने में मगन हो उठती है। प्रधानमंत्री श्री मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब वे तो वैश्विक स्तर के निवेशक सम्मेलन आयोजित कर वाइब्रेंट गुजरात का नारा गुंजाया करते थे। उनकी कोशिशों से गुजरात का औद्योगिक उत्थान भी खूब हुआ लेकिन अन्य राज्य निवेशक सम्मेलनों से उतना लाभ नहीं ले सके तो उसकी वजह वहां की निकम्मी प्रशासनिक व्यवस्था है जो निवेशकों को खून के आंसू रुला देती है। उदाहरण के लिए मप्र को ही लें तो मुख्यमन्त्री  शिवराज सिंह चौहान द्वारा आयोजित निवेशक सम्मेलनों में जितनी ताबड़तोड़ घोषणाएं हुईं उनकी 25 प्रतिशत भी अगर कार्यरूप में परिणित होतीं तब मप्र औद्योगिक प्रगति की राह पर अग्रणी हो गया होता। सही बात तो ये है कि निवेशक सम्मेलन में आने वाले उद्योगपति मुख्यमंत्री के निजी निमन्त्रण का मान रखते हुए आ तो जाते हैं और मेज़बान को खुश करते हुए धड़ाधड़ उद्योग लगाने का ऐलान भी कर देते हैं किंतु उसके बाद जब असल काम शुरू होता है तब सारे आश्वासन टाँय-टाँय फिस्स होकर रह जाते हैं। उदाहरण के लिए शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान जबलपुर में निवेशक सम्मेलन आयोजित हुआ था। प्राप्त जानकारी के मुताबिक उस पर तकरीबन 20 करोड़ रु. खर्च हुए। कुमार मंगलम बिरला सदृश उद्योगपति उसमें शरीक हुए थे। करोड़ों-अरबों की घोषणाएँ हुईं। ऐसा लगा मानों औद्योगिक तौर पर पिछड़े इस इलाके का भाग्योदय हो जाएगा। लेकिन लगभग एक दशक बीत जाने के बाद भी स्थिति ये है कि जितना खर्च उस आयोजन पर हुआ उतने का भी निवेश यहां नहीं आया। इंदौर - देवास के आसपास तो औद्योगिक विकास का माहौल पहले से ही था इसलिए वहां तो काफी निवेश आया भी और कुछ लाभ राजधानी होने से भोपाल के हिस्से में भी चला गया किन्तु प्रदेश के अन्य हिस्से आज तक निवेश के लिये तरस ही रहे हैं। केवल मप्र के साथ ऐसा नहीं हुआ अपितु अन्य राज्यों में सम्पन्न निवेशक सम्मेलनों से भी विशेष उपलब्धि देखने नहीं मिली। इसकी वजह वहाँ औद्योगिक विकास का वातावरण नहीं होना रहा। निवेशकों  को बुलाकर पूंजी निवेश हेतु प्रेरित करना बुरा नहीं है किंतु उद्योगों को बढावा देने हेतु यदि पारदर्शी नीति, मूलभूत सुविधाएं, न्यूनतम सरकारी औपचारिकताएं और ईमानदार नौकरशाही रहे तब घूम-घूमकर उद्योगपतियों को न्यौता देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जिन राज्यों में उक्त सभी बातों पर ध्यान दिया गया उनमें स्वाभाविक रूप से निवेश हुआ। कई क्षेत्रों में नेताओं के प्रभाव अथवा दबाव से कारखाने वगैरह लगे भी तो कुछ समय बाद बन्द हो गए। अमेठी और रायबरेली इसके उदाहरण हैं। योगी सरकार ने जो निवेशक सम्मेलन किया उसमें चूंकि खुद प्रधानमंत्री ने सक्रियता दिखाई इसलिए हो सकता है अधिकतर घोषणाएं जमीन पर भी उतरें लेकिन ऐसे सम्मेलनों का अब तक का तजुर्बा बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। कई राज्यों ने एसईजेड बनाकर बड़े औद्योगिक घरानों को बेशकीमती ज़मीनें दीं थी किन्तु उनका समुचित उपयोग नहीं हो सका। कुल मिलाकर जब तक औद्योगिक विकास हेतु सम्बन्धित सरकार की नीति और नियत में एकरूपता न हो तो निवेशक सम्मेलन भी आए, बैठे, खाए, पिए, खिसके का एहसास दिलाने वाले साबित होते हैं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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