हफ्ते भर आलोचना झेलने के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जुबान खोली और पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के संदर्भ में बैंक प्रबंधन और आंतरिक तथा बाह्य ऑडिटर्स की लापरवाही के साथ ही बिना नाम लिए रिजर्व बैंक की कमजोर नजर पर भी कटाक्ष किये। वित्त मंत्री का ये प्रश्न गलत नहीं है कि काम करने की स्वायत्तता के बावजूद बैंक प्रबंधन ने अपनी भूमिका का निर्वहन सही तरीके से क्यों नहीं किया? ऑडिट करने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट को आत्मावलोकन की सलाह देते हुए श्री जेटली ने बैंक के आंतरिक और बाहरी ऑडिटर्स पर भी आक्षेप लगाया जो इतने वर्षों से चले आ रहे इतने बड़े घोटाले को सूंघ नहीं सके। रिजर्व बैंक नियमित रूप से विभिन्न बैंकों की शाखाओं का ऑडिट करवाता है। उस दौरान भी पंजाब नेशनल बैंक में चल रहे घोटाले पर नजर नहीं जाने पर भी वित्त मंत्री ने जो तंज कसा वह बेमानी नहीं है। श्री जेटली ने नीरव मोदी कांड उजागर होने के इतने दिनों बाद मुंह खोला तो उसमें दोषियों को पकड़कर लाने और डूबन्त रकम की वसूली जैसा आश्वासन देने के बजाय बैंक प्रबंधन, ऑडिटर्स और रिजर्व बैंक पर ही पूरी जिम्मेदारी थोप दी। वित्त मंत्री शायद ऐसा न कहते यदि प्रधानमंत्री और उन पर चौतरफा हमले न हुए होते। विजय माल्या मामला तो सीधे-सीधे कर्ज वसूली नहीं हो पाने का था लेकिन नीरव मोदी कांड में बैंक और ऑडिट करने वाले बैंक अधिकारी और चार्टर्ड अकॉउंटेंट सहित रिजर्व बैंक की अनदेखी की ही भूमिका रही। जिन एलओयू (लैटर ऑफ अंडरटेकिंग) के जरिये 11300 करोड़ का घोटाला होता रहा उन्हें यदि बैंक के सम्बन्धित अधिकारियों ने रिकॉर्ड पर नहीं लिया तो ये सीधे-सीधे अपराधिक षड्यंत्र की परिधि में आता है। लेकिन इस घोटाले में चूँकि अन्य बैंक भी शामिल थे इसलिए ये बात बेहद रहस्यमय लगती है कि किसी ने भी समूचे लेनदेन पर न निगाह रखी और न ही सन्देह व्यक्त किया। रिजर्व बैंक भी अपने तरीके से विभिन्न बैंकों के अलावा बड़े कारोबारियों की गतिविधियों पर निगाह रखता है। शेयर बाज़ार की उठापटक पर भी उसका ध्यान रहता है। इस लिहाज से श्री जेटली द्वारा उठाए सवाल न तो अप्रासंगिक हैं और न ही अनावश्यक क्योंकि उनके जरिये उन्होंने देश भर में फैली ऑडिट व्यवस्था को जिस तरह कठघरे में खड़ा कर दिया वह महत्वपूर्ण है। कुछ समय पूर्व चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के अखिल भारतीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सीए के हस्ताक्षर प्रधानमंत्री के दस्तखत से भी अधिक शक्तिशाली होते हैं। ऐसा कहकर उन्होंने पूरी सीए बिरादरी को उसके कर्तव्यबोध से अवगत कराया था। इसमें दो मत नहीं है कि जितने भी बड़े आर्थिक घोटाले होते हैं उनके पीछे कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं परोक्ष रूप से चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की भूमिका रहती है क्योंकि किसी भी व्यवसायिक प्रतिष्ठान की पूरी कुंडली वही बनाते हैं। आयकर महकमा भी उनके द्वारा प्रमाणित हिसाब-किताब को मान्य करता है। बैंक अथवा ऋण देने वाला कोई भी अन्य वित्तीय संस्थान सीए द्वारा बनाई प्रोजेक्ट रिपोर्ट के आधार पर ही निर्णय करता है। बैंकों की अपनी ऑडिट व्यवस्था के साथ बाहरी ऑडिट भी सीए द्वारा करवाया जाता है और इनके अतिरिक्त रिजर्व बैंक भी समय-समय पर अपने ऑडिटर्स भेजता है। इतनी सघन जांच के बाद भी अगर घोटाले होते हैं तो व्यवस्था में कमी अथवा खुल्लमखुल्ला भ्रष्टाचार ही इसकी वजह है। नीरव मोदी के पहले भी इस जैसे जितने कांड हुए उनमें बैंक और सीए दोनों की संगामित्ति सामने आई थी। पंजाब नेशनल बैंक के कई अधिकारी अब तक पकड़े जा चुके हैं। लेकिन बड़ी मछलियां अब भी जाल से बाहर हैं। हो सकता है जांच एजेंसियां फूंक -फूंककर कदम रख रही हों लेकिन वित्त मंत्री ने जिन-जिन पर निशाना साधा है उन सभी की भूमिका की जांच के साथ ही इस बात पर राष्ट्रव्यापी मंथन होना चाहिये कि जिन पर गलती पकडऩे का दायित्व और अधिकार दोनों हैं वे ही यदि लापरवाह हो गए अथवा उसी गलती के हिस्से बन गए तो फिर व्यवस्था को चरमराने से कौन और कैसे रोक सकेगा? यद्यपि पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार ऐसे प्रकरणों में खुद को बेदाग बताकर पूरा ठींकरा दूसरों पर फोड़कर स्वयं को बाइज्जत बरी कर लें ये भी न्यायोचित नहीं होगा किन्तु वित्तमंत्री श्री जेटली ने जो मुद्दा छेड़ा वह नीरव मोदी कांड के अलावा भी विचारणीय है क्योंकि वित्तीय घोटाले कोई डकैती तो हैं नहीं कि पिस्तौल की नोंक पर लूटपाट हो जाए। वर्षों पूर्व जब पहला घोटाला हुआ तब ही यदि जांच और दंड प्रक्रिया में गम्भीरता बरती गई होती तब शायद घोटालेबाजों का हौसला इतना बुलन्द न हुआ होता। स्थितियों को इतना खराब करने के लिए राजनीतिक बिरादरी की भूमिका भी कम जिम्मेदार नहीं है। बेहतर होता श्री जेटली उस पर भी उंगली उठाते। विपक्ष उनकी सरकार पर जबर्दस्त हमले कर रहा है। माल्या, नीरव और कोठारी जैसे घोटालेबाजों के कारनामे बिना सियासी संरक्षण के होते रहे ये कोई नहीं मान रहा। वित्तमंत्री ने जिन-जिन पर तोहमत लगाई वे तो वाकई कसूरवार हैं ही, लेकिन सरकार में बैठे पूर्व और वर्तमान महानुभाव भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते क्योंकि भ्रष्टाचार का असली स्रोत तो राजनीति ही है। श्री जेटली में यदि साहस है तो वे ऐसे प्रकरणों में सरकारी स्तर पर होने वाली चूक का खुलासा भी करें। जिस दिन वे ऐसा कर देंगे उस दिन से विश्वास का संकट भी कम होने लगेगा। दरअसल आत्मावलोकन की सबसे ज्यादा जरूरत तो इस देश के राजनीतिक नेताओं को है, फिर चाहे वे सत्ता में हों या विपक्ष में।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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