Thursday 15 February 2018

बैंक घोटाला : आर्थिक के साथ विश्वसनीयता का नुकसान


पंजाब नेशनल बैंक देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक है। इसलिए आर्थिक जगत में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। तमाम झंझावातों के बावजूद इसकी स्थिति अपेक्षाकृत काफी अच्छी बनी हुई थी किन्तु गत दिवस हुए एक खुलासे ने बैंक को खतरे के कगार पर ला खड़ा किया। मुंबई स्थित उसकी एक शाखा में 11346 करोड़ का घोटाला पकड़ में आया है। एनपीए नामक संकट से जूझ रहे बैंकिंग क्षेत्र के लिए ये खबर किसी उल्कापात जैसी ही है। इसका फौरी असर ये हुआ कि शेयर बाज़ार में इस बैंक का भाव 10 प्रतिशत गिर गया। पंजाब नेशनल बैंक के कुल मुनाफे के तीन गुने इस घोटाले को बैंक ने अपने स्तर पर ही पकड़ा और 10 अधिकारी भी तुरन्त निलम्बित कर दिए गए। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हीरा व्यापारी नीरव मोदी को बैंक की तरफ से जारी एलओयू (लैटर ऑफ अंडरटेकिंग) के जरिये विदेशों में भारी कर्ज लिए गए। देश के भीतर भी अन्य बैंकों से कर्ज दिलवाने में एलओयू का उपयोग किया गया। इतने महत्वपूर्ण दस्तावेज को बैंक के रिकॉर्ड में नहीं लिया जाना ही ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि सम्बन्धित अधिकारियों ने सन्देह के घेरे में आए हीरा व्यापारी के साथ मिलकर घोटाले को अंजाम दिया। सबसे चौंकाने वाली बात ये पता चली कि वर्ष 2010 से घोटाला होता रहा लेकिन अब जाकर उस पर नजर गई। इससे ये पता चलता है कि अधिकारी भले बदलते रहे किन्तु घोटाला जारी रहा। इतनी बड़ी रकम को लेकर बरती गई इस तरह की गम्भीर लापरवाही के लगातार बरसों तक जारी रहने से तो यही लगता है कि घोटाले के तार ऊपर तक जुड़े रहे होंगे। चूंकि एलओयू जारी करने वाले अधिकारियों ने उन्हें बैंक के रिकॉर्ड में नहीं रखा इसलिए सम्भवत: वे ऑडिटर्स की पकड़ में नहीं आये होंगे वरना इस तरह के लेनदेन की जांच में तो बैकों के आंतरिक अंकेक्षण के अलावा रिजर्व बैंक के ऑडिटर भी विशेष रूप से सतर्कता बरतते हैं। पंजाब नेशनल बैंक ने चूंकि खुद होकर उक्त घोटाले को उजागर किया इससे यही जाहिर होता है कि जो अधिकारी बरसों से उसे जारी रखे थे उनसे नए अधिकारी का तालमेल न बैठा हो। दूसरी आशंका ये भी है कि शाखा में पदस्थ अधिकारियों पर उच्च प्रबंधन का दबाव पड़ता रहा हो। विजय माल्या को दिए कर्ज में भी सम्बन्धित बैंकों के शीर्ष प्रबंधन की लिप्तता सामने आई थी। ये सच है कि अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए बैंक के अधिकारी बड़े कारोबारियों के आभामंडल से प्रभावित होकर नियम-शर्तों में ढील डाल देते हैं। दस्तावेज तैयार करते समय भी चूक कर दी जाती है जिसका लाभ उठाकर ऋण लेने वाला बैंक को चपत लगा देता है। राष्ट्रीयकरण के बाद से ही बैंकिंग उद्योग में भी भ्रष्टाचार के विषाणु प्रविष्ट होते गए वरना घपले और घोटाले जैसे शब्द उस क्षेत्र के लिए अपरिचित थे। गबन वगैरह तो हुआ करते थे किंतु कर्ज बांटने में होने वाली अनियमितताएं यदाकदा ही सुनने में आती थीं। उदारीकरण के बाद बैंकिंग उद्योग में ऋण बांटने को लेकर जो नरम रवैया अपनाया जाने लगा उसके  दुष्परिणाम स्वरूप ही अरबों - खरबों रुपये डूबन्त होते गए। ये काम एक दो दिन या वर्ष में हुआ हो ऐसा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में अपने हालिया भाषण में पिछली यूपीए सरकार पर बैंकों को एनपीए घोटाले में फंसा देने का आरोप लगाया था। उधर राहुल गांधी भी मोदी सरकार पर अमीरों का कर्ज माफ  करने का आरोप आए दिन लगाया करते हैं। इस सबसे ये साबित होता है कि बैंकिंग उद्योग को चूना लगाने का सिलसिला बाकायदा चलता रहा जिसे राजनीतिक संरक्षण भी हासिल था। विगत दिनों विश्व के सबसे बड़े कहलाने वाले भारतीय स्टेट बैंक के घाटे की खबर ने आर्थिक जगत को झकझोरा ही था कि पंजाब नेशनल बैंक में 11 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा के घोटाले की ख़बर आ जाने से बैंकिंग क्षेत्र के प्रति जनता के मन में व्याप्त विश्वास और खंडित होने लगा। खास तौर पर इसलिए भी क्योंकि अब बैंकों में लोग केवल पैसा जमा ही नहीं करते अपितु उनके शेयर खऱीदकर निवेश भी करते हैं। गत दिवस ज्योंही शेयर बाज़ार तक घोटाले की सूचना पहुंची त्योंही पंजाब नेशनल  बैंक के शेयर भाव 10 प्रतिशत लुढ़क गए जिससे निवेशकों को करोड़ों रुपये की चोट लगी। जैसी कि आशंका है यदि इस घोटाले की आंच अन्य बैंकों तक भी पहुंची तब नुकसान की राशि और बढ़ सकती है। एनपीए संकट से जूझ रहे बैंकिग क्षेत्र के लिए पंजाब नेशनल बैंक का घोटाला न केवल आर्थिक वरन विश्वसनीयता के लिए भी खतरा बनकर आया है। इसमें सरकार की जिम्मेदारी कितनी और बैंक प्रबन्धन की कितनी ये तो जांच से ही पता चलेगा किन्तु एक बात सप्रमाण कही जा सकती है कि बैंकिंग सरीखे साफ-सुथरे माने जाने वाले क्षेत्र में भी अब अन्य सरकारी विभागों की तरह भ्रष्टाचार और घोटाले होने लगे हैं जो देश की आर्थिक स्थिति और छवि दोनों के लिए नुकसानदेह है। बड़ी बात नहीं पंजाब नेशनल बैंक के बाद अब दूसरे बैंकों में भी इस तरह के मामले सामने आ जाएं। हर शाख पे उल्लू बैठे होने की बातें ज्यों-ज्यों सामने आती जा रही हैं त्यों-त्यों अंज़ाम ए गुलिस्तां को लेकर फिक्र भी बढ़ती जा रही है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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