Tuesday 6 February 2018

कड़ा सबक सिखाने की सख्त जरूरत


पाकिस्तान की तरफ से दागी गई मिसाइल से एक युवा कैप्टन सहित तीन सैनिकों की मौत से पूरे देश में गुस्सा है। सीमा पर तैनात सैनिक का मौत से कब सामना हो जाए ये कोई नहीं जानता लेकिन पाकिस्तान द्वारा आए दिन युद्धविराम का उल्लंघन किये जाने से अघोषित युद्ध की स्थिति बनी हुई है। केंद्र सरकार द्वारा सेना को ईंट का जवाब पत्थर से दिए जाने की खुली छूट दिए जाने से हालांकि हमारी तरफ  से भी जोरदार पलटवार होता रहता है और सेना अपने साथियों की मौत का सूद सहित बदला भी ले लेती है किंतु इसके बावजूद पाकिस्तान के रुख में बदलाव न आने से हमारी रक्षा नीति पर जो सवाल उठ रहे हैं उन्हें अनुचित नहीं ठहराया जा सकता। खास तौर पर इसलिए कि सत्ता में आने से पहले तक भाजपा और नरेंद्र मोदी पूर्ववर्ती सरकार और प्रधानमंत्री पर दब्बू होने का आरोप लगाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ते थे। मोदी जी ने 56 इंच के सीने वाले दावे की वजह से अपनी छवि सुपर मैन की बना ली थी। लेकिन भले ही सेना को गोली का जवाब गोले से दिए जाने का स्थायी अधिकार दे दिया गया हो लेकिन उससे पाकिस्तान की हरकतें चूँकि नहीं रुक रहीं तथा लगातार हमारे फौजी जवान और युवा अफसर सस्ते में मारे जा रहे हैं इसलिए प्रधान मंत्री और भाजपा को आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है। ताजा हमले के बाद पूरे देश में आक्रोश की लहर व्याप्त हो गई है। टीवी चैनलों पर शहीदों के परिवारों का क्रन्दन देखकर हर व्यक्ति सरकार की नीति पर सवाल उठाता है। आखिर भारत सरीखे सैन्य शक्ति सम्पन्न देश पर इस तरह गोले दागने का दुस्साहस पाकिस्तान जैसा छोटा सा देश किस तरह करता है ये गम्भीर विषय है।  हमारी सेना उसका बदला ले लेती है मात्र इतना ही संतोष की बात नहीं है। होना तो ये चाहिए कि भारत की तरफ से की जाने वाली जवाबी सैन्य कार्रवाई के उपरांत पाकिस्तान की हिम्मत न पड़े हमले के बारे में सोचने की। उसे भारी नुकसान पहुंचाने के सैन्य दावों के बाद भी यदि थोड़े-थोड़े अंतराल पर उस तरफ  से फिर हमला होता है तो इसे रोजमर्रे की बात कहकर नहीं टरकाया जा सकता। पाकिस्तान के दिल्ली स्थित राजनयिकों को विदेश मंत्रालय में बुलवाकर अपना विरोध अथवा रोष व्यक्त कर देना कूटनीतिक जरूरत हो सकती है लेकिन इस प्रक्रिया से अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाना चिंताजनक है । अमेरिका की ऐलानिया नाराजगी के बावजूद पाकिस्तान की तरफ  से युद्धविराम तोडऩे का सिलसिला जारी है। इसका साफ अर्थ है कि चीन उसकी पीठ पर हाथ रखे हुए है। विगत दिवस उसने जो मिसाइल दागी वह चीन में ही बनी हुई थी। ताजा वारदात के बाद सेना ने हमारा काम बोलेगा जैसी प्रतिक्रिया व्यक्त कर देश को आश्वस्त किया है। शहीद परिवार की तरफ से भी 4 के बदले 40 मारने की रोषपूर्ण इच्छा व्यक्त की गई है किंतु समस्या जिस मोड़ ओर आ गई है उसमें अब तदर्थं और तात्कालिक प्रतिक्रियात्मक उपाय काम नहीं आने वाले। उनके 40 मारने पर भी हमारे 4 शहीदों की भरपाई नहीं हो सकेगी। ये सब देखते हुए पाकिस्तान के विरुद्ध वे सारे कदम उठाने होंगे जो किसी शत्रु के लिए आवश्यक हैं। उससे मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लेना इस दिशा में पहला कदम हो और फिर व्यापार बन्द किया जावे। वाजपेयी सरकार द्वारा पाकिस्तान के यात्री विमानों के भारतीय वायु क्षेत्र एवं जलयानों के समुद्री क्षेत्र का उपयोग करने पर रोक लगाकर दबाव बनाया गया था। दूसरी जरूरत पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित कर उसका पूरी तरह बहिष्कार करने की है। वरना जब तक उससे व्यापार और दौत्य सम्बन्ध रहेंगे तब तक तरह-तरह के लिहाज बने रहेंगे। मोदी सरकार यदि वाकई अपनी विश्वसनीयता बनाए रखना चाहती है तो उसे  आर-पार की लड़ाई लडऩी पड़ेगी जिसका आश्वासन भाजपा वाजपेयी सरकार के समय भी देती रही। वर्तमान स्थिति बेहद शर्मनाक है। इससे भाजपा अथवा श्री मोदी के राजनीतिक भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना कि सेना के सम्मान, देश की सुरक्षा और जनता के मनोबल का है। अतीत में सर्जिकल स्ट्राइक जैसा आक्रामक कदम उठाकर सरकार ने जो दृढ़ता दिखाई उसकी पुनरावृत्ति इस पैमाने पर होना चाहिए जिससे पाकिस्तान दोबारा सिर उठाने का साहस न बटोर सके। इसके लिए चुनाव या अन्य किसी अवसर की प्रतीक्षा करने की बजाय सैन्य अनुकूलता को ध्यान में रखकर ऐसा कुछ किया जाना चाहिए जिससे रोज-रोज हमारे जवानों का खून बहना रोका जा सके। सुरक्षा को लेकर सरकार और सेना में देश का पूरा भरोसा है लेकिन ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि फिलहाल देश गुस्से में है और इस गुस्से को ठंडा करने का एकमात्र तरीका पाकिस्तान की गर्दन दबाना ही है। सेना को छूट देना निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है किंतु अब उससे भी आगे बढ़कर कुछ ऐसा करने की जरूरत है जिसे पाकिस्तान लम्बे समय तक याद रख सके। बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के भीतर भड़क रही विरोध की चिंगारी को हवा देने का भी ये सही समय है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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