Friday 2 February 2018

बजट : गाँव और गरीब में नए जनाधार की तलाश


मोदी सरकार ने अपने अंतिम पूर्ण बजट में जिस तरह अपने लक्ष्यों की दिशा बदल दी वह रणनीति है या हड़बड़ी में उठाया कदम ये तो बाद में पता चलेगा लेकिन इससे एक बात स्पष्ट हो गई कि प्रधानमंत्री ने भाजपा के परंपरागत जनाधार को शहरी मध्यमवर्ग से गांव और गरीब तक विस्तारित करने का महत्वाकांक्षी दांव चला है। जीएसटी लागू होने के बाद पेश हुए पहले आम बजट में सस्ता-महंगा वाली उत्सुकता तो थी भी नहीं इसलिए आम जनता उस तरफ से बेफिक्र थी। अब बची नीतिगत घोषणाएं और विभिन्न मदों में राशि का आवंटन। वित्त मंत्री अरुण जेटली को सम्पन्न वर्ग का हितचिंतक और खड्डूस किस्म का व्यक्ति माना जाता रहा है। बीते चार बजट में उनकी झोली से शहरी मध्यम वर्ग और किसानों को ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे अच्छे दिन का एहसास हो पाता। भाजपा के भीतरखानों में भी ये कहा जाने लगा था कि मोदी सरकार की लोकप्रियता की गिरावट में सबसे ज्यादा योगदान वित्तमंत्री का है। बीते कुछ समय से ये एहसास भी प्रबल होने लगा था कि केंद्र सरकार के आशानुरूप प्रदर्शन न कर पाने की वजह से  कांग्रेस का पुनरूत्थान होने लगा है। गुजरात चुनाव ने प्रधानमंत्री के दबदबे में कमी के संकेत दिए जिसकी पुष्टि गत दिवस राजस्थान के तीन उपचुनाव परिणामों ने भी कर दी। ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि इस वर्ष होने जा रहे कई राज्यों के विधानसभा और फिर अगले वर्ष लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मोदी सरकार का ये बजट सौगातों की बौछार लेकर आएगा लेकिन वित्तमंत्री का भाषण खत्म होते-होते तक भाजपा के भीतरखानों में भी आश्चर्य और मायूसी छा गई। जिन शहरी क्षेत्रों ने गुजरात में पार्टी की नैया पार लगाई उसमें रहने वाले नौकरीपेशा वर्ग को श्री जेटली ने ठेंगा दिखा दिया। न आयकर छूट की सीमा बढ़ी और न ही और कुछ मिला। जो थोड़ा सा दिया वह घुमा फिराकर वापिस भी ले लिया। सवाल ये है कि अपने सबसे पुख्ता समर्थक वर्ग को पूरी तरह निराश ही नहीं अपितु नाराज करने का जोखिम उठाने के पीछे की सोच क्या थी और इसका उत्तर बजट के उन हिस्सों से मिला जिनमें गांव और गरीब के साथ-साथ उद्योग-व्यवसाय पर पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया गया। वित्तमंत्री ने नौकारीपेशा वर्ग को तो जमकर निराश किया लेकिन उन बुजुर्गों, खासकर रिटायर्ड की आंखों में चमक ला दी जो अपनी जीवन भर की कमाई बैंक में रखते हैं किंतु 10 हज़ार से ज्यादा ब्याज पर स्रोत पर ही आयकर कटौती से परेशान थे। बजट में 50 हजार तक के ब्याज को करमुक्त करने तथा वरिष्ठ नागरिकों को इलाज पर होने वाले खर्च को आयकर से घटाने की सीमा बढ़ाने से भी एक नया वर्ग मोदी सरकार से उपकृत हो गया है। सरकारी एवं अर्ध सरकारी उपक्रमों से निवृत्त लोगों को आजकल मोटी भरकम मिलती है। उस दृष्टि से वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाएं स्वागतयोग्य हैं किन्तु दीर्घकालिक निवेश में पूंजीगत लाभ और म्यूचल फंड की आय पर कर लगाकर वित्तमन्त्री ने बचत करने वालों को क्यों निराश किया ये रहस्यमय है जिसका कोई संतोषजनक उत्तर किसी के पास नहीं है। बहरहाल 250 करोड़ तक के टर्नओवर वाली कंपनियों के कारपोरेट टैक्स में 5 प्रतिशत की कमी बड़ा कदम है जो कारोबारी जगत को राहत देने वाला है। इसी तरह कृषि से जुड़ी चीजें बनाने वाले उद्योगों को दी गई कर छूट भी सही कदम है। लेकिन सबसे बढ़कर बजट का पूरा फोकस गरीबों और गांवों पर ही रखा गया। 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख सालाना तक के नि:शुल्क इलाज की मोदी केयर नामक स्वास्थ्य बीमा योजना से देश की 40 प्रतिशत आबादी को जबरदस्त लाभ होगा और यही इस बजट का सबसे बड़ा क्रान्तिकारी पहलू है जो मोदी सरकार फिर एक बार के नारे को मूर्तरूप प्रदान करने का प्रयास है। यदि इसको भ्रष्टाचार से बचाते हुए सही ढंग से लागू कर दिया गया तो ये साधनहीन लोगों के जीवन में बड़े सुधार का कारण बन सकेगा। मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन और गरीबों के घर बिजली पहुंचाने  जैसी घोषणाएं भी एक बड़े वोट बैंक तक भाजपा की पहुंच बढ़ाने की कोशिश है। खरीफ फसल के लिए डेढ़ गुना खरीद मूल्य तथा आलू-टमाटर के उत्पादकों को सहायता देने के प्रावधान भी उचित कदम कहा जायेगा। कुल मिलाकर बजट अर्थशास्त्र से ज्यादा चुनाव के मद्देनजर उस नए राजनीतिक दर्शन से प्रेरित है जिसमें शहरी चमक से बचते हए गाँव और गरीब के रूप में असली भारत के महत्व को स्वीकार करने का समझदारी भरा प्रयास है। मोदी सरकार के ऊपर अब तेजी से परिणाम देने का दबाव है। जनता की नाराजगी रह-रहकर सामने आना प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में उतार का संकेत है। बजट के जरिये नरेंद्र मोदी ने अडानी-अम्बानी के हितचिंतक होने के आरोप से बचने और भाजपा के शहरी जनाधार वाली पार्टी के ठप्पे को धोने की जो कोशिश की है वह कितनी सफल होगी ये इस बात और निर्भर करेगा कि जिस नौकरशाही पर बजट की सौगातों को बांटने का दायित्व होता है वह कितनी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ है। यदि उसे ठीक से निर्देशित और नियंत्रित नहीं किया गया तब सारी घोषणाएं हवा-हवाई होकर रह जाएंगी। अब तक के अनुभव तो यही बताते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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