Thursday 1 February 2018

पीडीपी को तीन तलाक़ देने का साहस दिखाए भाजपा


कश्मीर घाटी में सेना की गोली से कुछ पत्थरबाजों के मारे जाने से उत्पन्न तनाव नया मोड़ लेता जा रहा है। बीते दिनों शोपियां में फौजी काफिले पर पत्थरबाजी की गई। उपद्रवी तत्वों ने सैन्य दल को घेरकर हथियार छीनने की कोशिश भी की। आत्मरक्षार्थ सेना द्वारा चलाई गई गोली से तीन लोग मारे गए। बीते वर्ष फौज द्वारा की गई सख्ती से पत्थरबाजी की घटनाएं काफी कम हो गईं थीं। पैलेट गन के उपयोग से हज़ारों युवक अंधे एवं विकलांग हो गए वहीं दर्जनों मर भी गए। बात संसद से सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंची। पैलेट गन का विकल्प तलाशने कहा गया। हज़ारों लोगों पर मुकदमे हुए और सैकड़ों जेल भेजे गए। सुरक्षा बलों की आक्रामक कार्रवाई के चलते सैकड़ों आतंकवादियों के एनकाउंटर में मारे जाने से घाटी के उपद्रवग्रस्त जिलों के हालात काफी सामान्य होने लगे थे। फौज को केंद्र सरकार द्वारा दिया गया खुला हाथ प्रभाव छोडऩे में सफल हुआ। नोटबन्दी के बाद अलगाववादियों को मिलने वाली आर्थिक सहायता के रास्ते भी अवरुद्ध हुए जिससे सीमा पार से होने वाली घुसपैठ पर भी नियंत्रण हो सका। राज्य सरकार का सहयोग होने से पुलिस भी सैन्य बलों के साथ सक्रिय हुई जिससे अलगाववादियों के हौसले पस्त होने लगे। कुल मिलाकर हालात काबू में आकर सुधरते दिख रहे थे। बीच में एक घटना हुई जिसमें पत्थरबाजों से सैन्य दल को बचाने के लिये एक स्थानीय युवक को सेना की जीप के बोनट पर बांधकर बिठा दिया गया। उस तरीके पर भी खूब चिल्लपों हुई। उस कृत्य का आदेश देने वाले फौज के अधिकारी को मानवाधिकार उल्लंघन का दोषी मानकर कार्रवाई का दबाव भी बनाया गया लेकिन केन्द्र सरकार और सेना के उच्च अधिकारियों ने अपने अफसर का खुलकर बचाव किया। उस तरीके को कांटे से कांटा निकालने के प्रयास के तौर पर देखा गया। उसके कारण सैन्य बलों का मनोबल बढ़ा जिसका प्रभाव स्पष्ट दिखने भी लगा किन्तु गणतंत्र दिवस पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने हज़ारों पत्थरबाजों पर दायर मुकदमे वापिस लेने की घोषणा करते हुए सैन्य बलों की पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया। यद्यपि केंद्र सरकार ने उस बारे में राज्य सरकार से पूछताछ की है लेकिन उस घोषणा से देश विरोधी तत्वों की खोई हिम्मत फिर से लौट आई जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण शोपियां में सैन्य टुकडिय़ों को घेरकर पत्थरों से किये गए हमले से मिला। सेना के अफसरों ने पत्थरबाजों को समझाने का भरपूर प्रयास किया लेकिन भीड़ के आक्रामक होने के बाद आत्मरक्षार्थ गोली चलाने की मजबूरी बन गई जिसमें तीन लोग मारे गए। उसके बाद राज्य सरकार ने एक मेजर के विरुद्ध  हत्या की रिपोर्ट दर्ज करवा दी। दूसरी तरफ  केंद्र सरकार और सेना पूरी तरह से उक्त मेजर के साथ खड़ी हो गई। गत दिवस सेना की ओर से भी जवाबी रिपोर्ट कर दी गई। उधर राज्य विधानसभा में भाजपा सदस्यों ने मेजर के विरुद्ध रिपोर्ट वापिस लेने की मांग की जिसे मुख्यमंत्री ने ठुकराते हुए मजिस्ट्रियल जांच का आदेश दे दिया जिसमें सहयोग हेतु सेना ने भी रजामन्दी व्यक्त कर दी। इस घटना से लम्बे समय बाद सेना पर दबाव बनाने की जो कोशिश हुई उसके पीछे मेहबूबा मुफ्ती की राजनीतिक मज़बूरी भले हो लेकिन पत्थरबाजों पर रहम करने का दुष्प्रभाव जल्दी सामने आने से घाटी के भीतर की आंतरिक स्थिति उजागर हो गई है। जब तक राज्य सरकार, सेना और केन्द्र की कार्ययोजना में सहयोग करती रही, हालात पर नियंत्रण होता दिखा किन्तु ज्योंही मेहबूबा ने पत्थरबाजों को आम माफी का ऐलान किया त्योंही बिल में छिपे सर्प बाहर आकर फुफकारने लगे। थल सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत द्वारा घाटी में सैन्य बल की तैनाती में कमी और सेना को मिले विशेष अधिकार को वापिस लेने से दो टूक इंकार कर देने से जरूर राहत मिली वहीं पत्थरबाजों पर गोली चलवाने के आरोपी मेजर के बचाव की भी सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई किन्तु मेहबूबा मुफ्ती के रुख में अचानक आए बदलाव ने राज्य की आंतरिक राजनीति में बदलाव की जरूरत भी पैदा कर दी है। बीते तकरीबन चार साल तक सत्ता में हिस्सेदार रहने के बाद भाजपा को राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था और नौकरशाही के रवैये की भरपूर जानकारी मिल गई होगी। कौन अधिकारी केंद्र के साथ और कौन अलगाववादी मानसिकता का है ये भी काफी कुछ पता चल गया होगा। इस दौरान सेना को मिली छूट से भी घाटी के भीतरी हालात को नियंत्रित करने में मदद मिली लेकिन मुख्यमंत्री ने बिना भाजपा और केंद्र को विश्वास में लिए पत्थरबाजों पर रहम की जो शरारत की जिसका असर भी सामने आ गया तब भाजपा को चाहिये वह औपचारिक विरोध की बजाय अब एक झटके में तीन तलाक देने जैसा साहस दिखाए। भाजपा ने जो भी सोचकर पीडीपी से हाथ मिलाया हो उसका विश्लेषण करने में समय गंवाने के बजाय बेहतर होगा वह मेहबूबा को शुद्ध हिंदी में समझा दे कि अलगाववादी मानसिकता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। राजनीतिक मजूबूरी वश बेमेल गठबंधन भारतीय राजनीति की पहचान बन गए हैं किन्तु जब राष्ट्रहित का सवाल खड़ा हो तब राजनीतिक नफे-नुकसान अप्रासंगिक और अवांछनीय होकर रह जाते हैं। जम्मू-कश्मीर के मौजूदा सूरते हाल में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को गम्भीरता और दूरंदेशी का परिचय देते हुए ठोस निर्णय लेना चाहिए। पत्थरबाजी की ताजा घटनाओं से जो संकेत निकलकर आए हैं वे साधारण नहीं है। मेहबूबा मुफ्ती धीरे-धीरे अपने असली रंग में आते दिख रही हैं। ऐसे में अब भाजपा पर सभी की निगाहें लग गई हैं जो कश्मीर को लेकर सदैव संवेदनशील रही है। पीडीपी से गठबंधन घाटी में राष्ट्रवादी राजनीति के बीजारोपण के लिये किया गया था लेकिन यदि परिणाम आशानुकूल नहीं निकल रहे तो नीति और निर्णय को बदलने में देर करना ठीक नहीं होगा। भाजपा के कर्णधारों को ये याद रखना चाहिए कि सही निर्णय भी यदि देर से लिया जाए तो वह किसी काम का नहीं रह जाता। कश्मीर को लेकर अतीत में हुईं गलतियों को दोहराने से बचते हए उन्हें सुधारने का यही सही वक्त है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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