Wednesday 31 January 2018

बजट : चुनाव के दबाव में राहत की उम्मीद


आर्थिक समीक्षा पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जो तस्वीर पेश की उसमें आगामी वित्तीय वर्ष को बेहद आशाजनक बताते हुए विकास दर 7.5 प्रतिशत रहने का जो दावा किया गया उसके बाद से आम जनता ही नहीं उद्योगपति, व्यापारी, किसान और नौकारपेशा वर्ग को भी अच्छे दिन आने के नए-नए सपने आने लगे हैं। आज सरकारी क्षेत्र की तेल कम्पनी इंडियन ऑयल के जो नतीजे आए हैं उनके अनुसार कम्पनी ने बीते समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आई गिरावट का लाभ लेकर जबरदस्त मुनाफाखोरी की जिससे उसका खजाना लबालब हो गया। सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उद्यमों ने भी जनता की जेब काटने में कोई संकोच नहीं किया चाहे वे बैंक ही क्यों न हों जो एनपीए के बाद भी जमकर कमाई करने में कामयाब रहे। इसका छोटा सा प्रमाण भारतीय स्टेट बैंक द्वारा न्यूनतम बैलेंस न रखने पर चार्ज के तौर पर वसूले गए तकरीबन 2 हज़ार करोड़ रुपये हैं। इसमें दो मत नहीं है कि बीते तीन वर्ष में मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में दूरगामी लाभ की दृष्टि से चाहे कितने भी अच्छे कदम उठाए हों किन्तु बिना लागलपेट के ये कहा जा सकता है कि उन सबका तात्कालिक तौर पर अपेक्षित लाभ नहीं हुआ या जिससे 2014 के चुनाव में दिखाया गया अच्छे दिनों का सपना पूरा होना तो दूर दु:स्वप्न साबित होता लगा। नोटबन्दी और जीएसटी जैसे कदम निश्चित रूप से क्रांतिकारी और काफी हद तक दुस्साहसी भी कहे जाएंगे जिनका फायदा भविष्य में जरूर मिलेगा लेकिन उससे कारोबारी जगत की मुसीबतें तो बढ़ीं ही आम जनता भी उससे कहीं प्रत्यक्ष और कहीं परोक्ष रूप से प्रभावित हुई। जीएसटी को लागू करने में कांग्रेस ने जो अड़ंगेबाजी की उसकी वजह से उसके जो लाभ अब तक आ जाना चाहिए थे वे नहीं आ सके और ऊपर से केंद्र सरकार पर बिना सोचे-समझे जल्दबाजी में उठाए गए कदम के तौर पर उसकी आलोचना हुई। गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन की एक वजह जीएसटी को लेकर उत्पन्न पेचीदगियां भी रहीं। यदि चुनाव के पहले जीएसटी की दरों और शर्तों में कुछ सुधार और बदलाव न हुए होते तो बड़ी बात नहीं गुजरात भाजपा के हाथ से निकल गया होता। चूंकि इस साल आधा दर्जन राज्यों के विधानसभा और फिर अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं इसलिए केंद्र सरकार के समक्ष जनता को लुभाने और अपनी संवेदनशीलता साबित करने के लिए कल 1 फरवरी को पेश होने वाला बजट आखिरी अवसर है। यद्यपि किसी भी वित्तमंत्री को जनता की नजरों में चन्द अपवाद छोड़कर लोकप्रियता नहीं मिली लेकिन अरुण जेटली जनता की नजरों में कुछ ज्यादा ही गिर गए। उन पर अमीरों को लाभ पहुंचाने वाले वित्तमंत्री होने का आरोप लगता रहा है। इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईमानदार छवि के बावजूद उनकी सरकार के प्रति उसके परंपरागत समर्थकों में भी निराशा सतह पर महसूस की जा सकती है। यही सब देखते हुए उम्मीद है कि अपने अंतिम पूर्ण बजट में भले ही मोदी सरकार खैरातों की बारिश न करे किन्तु जनता को निराश और नाराज नहीं करेगी। जैसा कि वित्तीय हल्कों में कहा जा रहा है कि जीएसटी के बाद अब बजट में वित्तमंत्री के पास सिवाय नीतिगत निर्णयों के खास करने को कुछ बचा नहीं है क्योंकि विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले करों की दरें तो जीएसटी काउंसिल के अधिकार क्षेत्र में चली गईं किन्तु आयकर सहित कृषि और उद्योग को बढ़ावा देने सम्बन्धी नीतियों को लेकर अभी भी सरकार काफी कुछ कर सकती है। इसी तरह पेट्रोल-डीजल जो जीएसटी से बाहर हैं उनकी आसमान छूती कीमतों पर मुनाफाखोरी कम करने का अधिकार भी सरकार के हाथ में है। अब चूंकि विकास दर 7.5 प्रतिशत होने की उम्मीद श्री जेटली ने आर्थिक समीक्षा में संसद के सामने व्यक्त कर दी है इसलिए हर किसी को ये आशा है अपने दावे को मजबूती देने के लिए वे बजट में ऐसा कुछ जरूर करेंगे जिससे उनकी और सरकार की छवि में गुणात्मक सुधार हो सकेगा। हालांकि सरकार के पास सीमित विकल्प ही हैं लेकिन हमारे देश में अर्थशास्त्र पर चूंकि राजनीति का दबाव बना रहता है और किसी नेता की सफलता उसकी चुनाव जिताने की क्षमता से आंकी जाती है इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि कल अरुण जेटली मोदी सरकार की उदारता की पराकाष्ठा करते हए जनता को गदगद करने की कोशिश करेंगे। प्रधानमंत्री गत दिवस संसद में ये संकेत दे ही चुके हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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