Thursday 18 January 2018

अर्थव्यवस्था : संतुलन बनाकर चलने का वक्त

कुछ दिन पहले खबर आई थी कि केंद्र सरकार 50 हज़ार करोड़ का कर्ज लेने जा रही है। राजकोषीय घाटा बढऩे की आशंकाओं के कारण महँगाई का खतरा भी  सिर पर मंडराता दिखाई देने लगा। 2018 में भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर लगाई जा रही उम्मीदों पर भी संशय के बादल मंडराने लगे। पिछली तिमाही में जीएसटी की वसूली कम होने से भी केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर आलोचना के स्वर तेज हो गए। यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसे लोगों को भी मौका मिलने लगा। ऊपर से सरकार पर जीएसटी की दरें घटाने का दबाव भी बना हुआ है। ये सब देखते हुए लगने लगा कि मोदी सरकार का आखिरी पूर्ण बजट उतना राहतकारी नहीं होगा जितना अपेक्षित है किंतु ताजा संकेत उम्मीदों के फिर जवान होने का इशारा कर रहे हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार अब सरकार मात्र 20 हजार करोड़ कर्ज लेगी तथा राजकोषीय घाटे को नियंत्रण रखने का पूरा-पूरा प्रयास करेगी। प्रत्यक्ष करों की रिकार्ड वसूली ने भी सरकार का हौसला बुलन्द किया है। आज जीएसटी कॉउंसिल की बैठक के बाद दरों में कटौती का ऐलान होने की संभावना भी है। ऐसा होने पर यद्यपि राजस्व में कमी आएगी किन्तु दूसरी तरफ  ये भी सही है कि इससे बाजार में ठहराव दूर होगा जिसका परोक्ष लाभ अर्थव्यवस्था को मिले बिना नहीं रहेगा। आम बजट पेश होने में अब मात्र 12 दिन शेष है। इस दौरान सरकार को आर्थिक स्थिति का सही आकलन करते हुए ऐसा बजट पेश करना चाहिए जो व्यवहारिक हो। महज चुनाव जीतने के लिए खैरात बांटने का दुष्परिणाम देश भुगत रहा है। समय आ गया है जब जनता को मुफ्त उपहार बांटकर खजाना खाली करने की बजाय दूरगामी लक्ष्यों को ध्यान में रखकर विकास के ठोस काम किये जाएं। वैसे शेयर बाजार से आ रही खबरें काफी  उत्साहजनक हैं। सूचकांक का 35 हज़ार के सर्वोच्च स्तर को छू जाना अर्थव्यवस्था के मज़बूत होने का प्रमाण माना जा सकता है किंतु कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम बढऩा चिंता का नया कारण है। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था हिचकोले खाते-खाते पटरी पर आती तो दिख रही है किन्तु 2018 और 19 में चुनाव का सिलसिला लगातार चलते रहने से सरकार के ऊपर लोक-लुभावन नीतियों को अमल में लाने का जो दबाव बना रहेगा वह जरूर घाटे को बढ़ा सकता है। इसे देखते हुए वित्त मंत्री की, जो पहले से ही जनता के बीच काफी अलोकप्रिय हंै, ये जि़म्मेदारी बन जाती है कि वे जनता को सन्तुष्ट करने के साथ ही सरकार के वित्तीय प्रबंधन और देश की अर्थव्यवस्था के बीच बेहतर तालमेल बनाएं। गुजरात चुनाव में हारते-हारते बची  भाजपा उस कटु अनुभव से उबरने के लिए अपने परंपरागत समर्थक व्यवसायी वर्ग को प्रसन्न करने का प्रयास निश्चित तौर पर करेगी किन्तु उसे रेवडिय़ां बांटने से परहेज करना चाहिए। गत दिवस हज सब्सिडी बन्द कर उसने सरकारी खजाने पर पडऩे वाले अनावश्यक बोझ को कम करने की जो कोशिश की उसकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से लगता है कि जनमानस भी मुफ्तखोरी की विदाई चाहने लगा है। वैसे जनहित सरकार का मुख्य लक्ष्य होना ही चाहिए किन्तु इसमें असंतुलन के कारण सरकार का खजाना भी खाली होता है, वहीं देश में कामचोरी भी पनपती है। 130 करोड़ आबादी वाले देश में बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़ों के बीच ज़मीनी सच्चाई ये भी है कि काम करने वाले लोगों का भी जबरदस्त अभाव है। इस विरोधाभास का बड़ा कारण वे अनावश्यक सब्सीडियां भी हैं जिनकी वजह से देश में कार्य संस्कृति की बजाय अकर्मण्यता का बोलबाला हो गया। शिक्षित युवा यदि बेरोजगार हो तो उसके कारण फिर भी समझ आते हैं किन्तु अशिक्षित युवा बेरोजगार रहे और सर्वत्र श्रमिकों की कमी महसूस हो ये अजीबोगऱीब स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था में व्याप्त विरोधाभास का प्रमाण है। इन सब बातों को देखते हुए केंद्र सरकार को साहसिक कदम उठाने का सिलसिला जारी रखना चाहिए। रही बात मतदाता को खुश करने की तो सरकार को ये नहीं भूलना चाहिए कि 18 और 19 में होने वाले चुनावों में करोड़ों मतदाता वे होंगे जिनका जन्म 21 वीं सदी के प्रारम्भ में हुआ और यह वर्ग पूर्वाग्रह से मुक्त तथ्यों पर आधारित सोच से युक्त है।  मोदी सरकार के जिन दो कदमों से उसकी सर्वाधिक आलोचना हुई वे नोटबन्दी और जीएसटी रहे किन्तु अब इनके फायदे नजर आने का समय आ गया है इसलिए ये अपेक्षा करना गलत नहीं है कि इस साल का बजट राजनीतिक नफे-नुकसान का ध्यान रखते हुए भी व्यवहारिकता पर आधारित होगा। सरकार द्वारा 50 की बजाय 20 हज़ार करोड़ का ही कर्ज लेने की खबर निश्चित तौर पर सुखद है क्योंकि इससे मुद्रास्फीति बढऩे का खतरा कम होगा। शेयर बाज़ार का लगातार उठना अच्छे दिन की गारंटी न सही किन्तु शुभ संकेत तो माना ही जा सकता है।  जीएसटी को और सरल तथा सख्त बनाने के साथ ही आयकर की दरों में भी समुचित सुधार किया जावे तो कर चोरी रुक सकेगी तथा नये करदाता भी सामने आयेंगे। नोटबंदी के बाद कालेधन को सामने लाने में तो सरकार उतनी सफल नहीं रही परन्तु उससे कालेधन के बेरोकटोक चलन में जरुर कमी आई है। बेहतर होगा सरकार बिना हिचके अर्थव्यवस्था में गुणात्मक सुधार लाने के प्रयास जारी रखे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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