Wednesday 10 January 2018

आयकर छूट की सीमा 5 लाख हो


आम बजट आने में तीन हफ्ते शेष हैं इसलिए वित्तीय क्षेत्र में इस बारे में अनुमानों का दौर शुरू हो गया। बजट बेहद तकनीकी और क्लिष्ट विषय है जिस पर सतही विचार-विमर्श अर्थहीन होता है किंतु आम जनता के नजरिये से देखें तो आयकर की दरें उसे सीधे प्रभावित करती हैं। इस कारण इसे लेकर काफी उत्सुकता रहती है। आज ये समाचार पढऩे में आया कि मोदी सरकार अपने अंतिम पूर्ण बजट में आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर 3 लाख करने जा रही है। 2 वर्ष पहले उसे ढाई लाख किया गया था। महंगाई और नौकरपेशा वर्ग की वेतन वृद्धि के मद्देनजर देश के विशाल मध्यमवर्ग की आयकर छूट की सीमा सही मायनों में  5 लाख होनी चाहिए जो विपक्ष में रहते हुए भाजपा कहती आई थी। नोटबन्दी और जीएसटी के परिणामस्वरूप बाज़ार में आई मंदी से उबरने के लिए जरूरी है आम जनता की क्रय शक्ति में समुचित बढ़ोतरी की जावे। देश के करोड़ों वेतनभोगी अर्थव्यवस्था की रीढ़ जैसे हैं। यदि उनकी जेब में ज्यादा पैसा हो तो निश्चित रूप से वे बतौर उपभोक्ता बाज़ार की सुस्ती को दूर करने में सहायक बन सकेंगे। रही बात सरकार को प्रत्यक्ष कर से होने वाली आय में कमी की तो उसकी भरपाई जीएसटी के रूप में कहीं ज्यादा हो जाएगी। आयकर भले ही सीधे सरकार की जेब में जाता है किन्तु यदि वही बाजार से होते हुए सरकार के पास लौटे तब वह अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने में कहीं बेहतर भूमिका निभा सकेगा, ये उम्मीद गलत नहीं होगी। यूँ भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास अच्छे दिन आने वाले हैं नामक चुनावी नारे को वास्तविकता में बदलने के लिए वक्त नहीं बचा है। बाकी वर्गों को बजट के जरिये उनकी सरकार क्या सौगातें देती है ये अपनी जगह होगा किन्तु आयकर छूट को 5 लाख करने का जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक असर जनता और व्यापारियों में पड़ेगा। जिससे आर्थिक मोर्चे पर व्याप्त निराशा का वातावरण दूर करने में मदद मिलेगी। सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद तीन लाख तक आयकर छूट ऊंट के मुंह में जीरा ही होगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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