Tuesday 2 January 2018

ट्रम्प : काश कथनी को करनी में भी बदलें


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जब से पद पर आए हैं पाकिस्तान के विरुद्ध तीखे बयान देते रहते हैं। अपने चुनाव प्रचार में भी ट्रम्प ने इस्लामिक आतंकवाद को लेकर जो सख्त रवैया अपनाया उससे भारतवंशीय मतदाताओं  ने उनकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया । शुरू में लगा कि पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों की तरह ट्रम्प भी पाकिस्तान को ऊपर-ऊपर डांटने के बावजूद भीतर-भीतर डॉलर बांटने का क्रम जारी रखेंगे। पाकिस्तान को अमेरिका की मदद न मिले तो वहां आर्थिक आपातकाल आ जायेगा । पूर्व में भी कुछ राष्ट्रपतियों ने आतंकवाद को प्रश्रय देने के मामले में इस्लामाबाद की आर्थिक सहायता और हथियारों की आपूर्ति रोकी किन्तु जरा से अनुनय-विनय के बाद अमेरिका पिघल गया । दरअसल कभी रूस तो कभी तालिबान के विरुद्ध मोर्चेबंदी के नाम पर अमेरिका  पाकिस्तान के लालन-पालन की जिम्मेदारी उठाता रहा लेकिन वहां के दोगले शासक अमेरिका के दुश्मन नंबर एक ओसामा बिन लादेन को सुरक्षित रखने में भी नहीं सकुचाए। तालिबानों को पाकिस्तान आज भी खुलकर मदद देता है । वाशिंगटन में बैठे हुक्मरान हमेशा से जानते थे कि पाकिस्तान उनके द्वारा भेजी आर्थिक और सैन्य सहायता का क्या करता है किंतु ये बात भी सही है कि बावजूद उसके अमेरिका की नीति भारत को परेशान करने की भी रही क्योंकि उसे लगता रहा कि शुरू से ही भारत सोवियत संघ के खेमे में था। उसके विखंडन के बाद भी अमेरिका से भारत के रिश्ते बहुत मधुर और मजबूत नहीं रहे लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हालात बदले। यद्यपि परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने में तनिक भी संकोच नहीं किया लेकिन कारगिल युद्ध के दौरान राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान को काफी लताड़ा। वाजपेयी सरकार के समय से भारत-अमेरिका सम्बन्ध काफी अच्छे रहे किन्तु पाकिस्तान के प्रति अमेरिका की मोहब्बत यथावत रही । कहने को तो लादेन को पाकिस्तान में छिपाकर रखने की बात उजागर होने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस्लामाबाद को खूब फटकारा किन्तु अमेरिका की मदद रुक-रुककर उस तक पहुंचती रही । लेकिन ट्रम्प जबसे पद पर आए तबसे उन्होंने पाकिस्तान के बारे में काफी कठोर बयान देना शुरू कर दिया । आए दिन उसकी मदद में कटौती की बात कही जाती है। आतंकवादी संगठनों को संरक्षण और सहायता के लिए भी ट्रम्प पाकिस्तान की नियमित खिंचाई करते रहे हैं। बीते सप्ताह भी खबर आई थी कि अमेरिका ने इस्लामाबाद को मिलने वाली मदद को स्थगित करने का फैसला कर लिया है। लेकिन नए साल के अपने पहले भाषण में उन्होंने जिस तरह पाकिस्तान को हड़काते हुए धमकाया उससे लगता है ट्रम्प ऐसा कुछ करेंगे जिससे पाकिस्तान दबाव में आए। गत दिवस हाफिज सईद के संगठनों की सहायता रोकने का कदम उसी दबाव का ही परिणाम माना जा रहा है । ट्रम्प जिस तरह की भाषा का उपयोग पाकिस्तान को लेकर कर रहे हैं वह किसी भी लिहाज से मित्रवत तो नहीं कही जा सकती किन्तु देखने वाली बात ये होगी कि वे जिस तरह की सख्त बयानबाजी करते हैं क्या उस पर अमल भी करेंगे या अब  तक के ढर्रे पर चलकर केवल बातों का जमा खर्च ही जारी रखेंगे । गत दिवस ट्रम्प ने पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में बता दिया कि उसने अब तक मिली आर्थिक मदद से आतंकवादियों को दूध पिलाकर बड़ा किया है हाफिज सईद सदृश आतंकवादियों को सिर पर बिठाए रखने से भी ट्रम्प पाकिस्तान से खफा हैं । नाराजगी की एक वजह इस्लामाबाद के चीन से मधुर सम्बन्ध भी हैं। अमेरिका को लगता है कि पाकिस्तान से मिलने वाले समर्थन के कारण ही चीन मध्य एशिया तक अपने पांव फैलाने में सफल हो रहा है । उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग के साथ ट्रम्प की जो रस्साकशी चल रही है उसमें चीन की भूमिका से खुर्राए ट्रम्प को लगता है कि पाकिस्तान को दबाने से चीन भी एशिया की राजनीति में कमजोर पड़ेगा क्योंकि और कोई पड़ोसी देश चीन के साथ खड़ा होने तैयार नहीं है । पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों से अलग ट्रम्प की पृष्ठभूमि राजनीतिक न होकर व्यवसायिक है । इसलिए वे कूटनीति के साथ व्यापार को अतिरिक्त महत्व देते हैं और इस दृष्टि से भी भारत उनके लक्ष्यों की प्राप्ति में अधिक सहायक होगा। भारत में वैसे भी उनके व्यवसायिक प्रकल्प चलते रहे हैं जिसकी वजह से अनेक भारतीय व्यवसायी उनकी अंतरंग मंडली में हैं । उसका असर भी ट्रम्प की पाकिस्तान नीति पर हो सकता है किंतु भारत को इस पर स्थायी रूप से प्रसन्न होने की जरूरत नहीं है क्योंकि पाकिस्तान को पहले दुत्कारना और फिर पुचकारना अमरीकी स्वभाव रहा है । वरना ओसामा बिन लादेन को शरण देने के जुर्म में तो पाकिस्तान से रिश्ते खत्म कर उसे शत्रु राष्ट्रों की श्रेणी में रख देना चाहिए था । लेकिन ऐसा नहीं कर पाने के पीछे वजह अमेरिका के अपने निहित स्वार्थ हैं जो पाकिस्तान की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के मद्देनजर उसकी पीठ पर हाथ रखे जाने की जरूरत बनाए रखते हैं । बावजूद इसके यदि अमेरिका उसे आतंकवाद का संरक्षक मानकर प्रताडि़त और दंडित करने का साहस दिखाता है तो यह भारत के लिए हितकारी है किंतु इसमें एक खतरा ये है कि उस सूरत में रूस और मध्य एशिया के अन्य इस्लामी देश इस्लामाबाद की मदद हेतु आगे आ सकते हैं । उत्तर कोरिया के साथ अमेरिका के बढ़ते तनाव में भी रूस किम जोंग के साथ जिस तरह खड़ा हुआ है उससे भी दक्षिण एशिया के कूटनीतिक समीकरण बदल सकते हैं । हालांकि पाकिस्तान पर ट्रम्प के दबाव का जो थोड़ा बहुत असर नजर आता है वह दिखावा ज्यादा लगता है वरना हाफिज सईद के पर कतरने की कोशिश के बीच परसों रात कश्मीर के पुलवामा में आतकंवादी हमला न हुआ होता । डोनाल्ड ट्रम्प को सनकी किस्म का नेता भी माना जा रहा है इसलिए उनकी नीतियां कितनी स्थायी होंगी ये भरोसा करना जल्दबाजी होगी । पाकिस्तान के बारे में वे जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं यदि उसे कार्यरूप में बदल दें तब जरूर भारत का पलड़ा मज़बूत हो सकता है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी मुलाकात काफी अच्छी रही थी और अमेरिका में रह रहे अप्रवासी भारतीयों को लुभाने का कोई अवसर भी वे नहीं छोड़ रहे । ऐसे में पाकिस्तान के प्रति उनका कड़ा रवैया उम्मीद तो पैदा करता है किंतु अमेरिका का पिछला रिकार्ड देखते हुए उस पर आंख मूंदकर विश्वास करने का जी भी नहीं होता । बावजूद इसके ट्रम्प फिलहाल जो कुछ भी बोल और कर रहे हैं उससे भारत को मानसिक शांति तो मिल ही रही है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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