Wednesday 17 January 2018

हज सब्सिडी : फिजूलखर्ची रोकने का रास्ता खुला


चूंकि सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा करने के लिए कहा था इसलिए सैद्धांतिक आधार पर विरोध की गुंजाइश तो कम है किंतु केंद्र सरकार ने अचानक हज सब्सिडी बंद करने का जो निर्णय किया उस पर मुस्लिम नेताओं को बयानबाजी करने का मौका तो मिल ही गया। न्यायालय ने 10 वर्षों में सब्सिडी खत्म करने कहा था। तत्पश्चात वर्ष 2012 से उसमें कटौती शुरू की गई। उस हिसाब से 2022 तक उसे पूरी तरह खत्म होना चाहिए था। अदालत ने हज सब्सिडी को तुष्टीकरण मानकर उस राशि को मुस्लिम समुदाय में शिक्षा और अन्य कल्याणकारी कामों पर खर्च करने कहा था। मोदी सरकार ने कल बिना किसी पूर्व संकेत के जिस तरह सब्सिडी तत्काल बन्द करने का निर्णय लिया उसके पीछे के कारण तो नहीं बताए गए लेकिन इतना तय है कि ये भी एक राजनीतिक दांव है। मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में कहते आए हैं कि सब्सिडी बंद कर वह पैसा अल्पसंख्यकों की शिक्षा एवं अन्य कल्याणकारी कामों पर खर्च किया जावे। इस्लाम धर्मावलंबी भी मानते हैं कि हज गाढ़े पसीने से कमाए पैसे से करना चाहिए लेकिन सब्सिडी के कारण कई अल्प आय वाले मुस्लिम भी हज यात्रा का पुण्य लाभ उठा लेते थे। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अहमद नकवी ने सरकार के निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि हज सब्सिडी में दलालों को होने वाली कमाई पर विराम लग सकेगा तथा इससे बची राशि अल्पसंख्यक महिलाओं की शिक्षा पर व्यय की जाएगी जो सर्वोच्च न्यायालय की मंशानुरूप ही होगा। लेकिन कल ओवैसी ने इस निर्णय पर सवाल उठाते हुए कटाक्ष किया कि क्या सरकार मानसरोवर यात्रा हेतु दी जाने वाली सब्सिडी भी रोकेगी? उप्र के सपा नेता आज़म खाँ ने भी केंद्र के फैसले पर विरोध जताया है। हज सब्सिडी से वंचित होने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी ये निर्णय नागवार गुजरेगा किन्तु सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के परिप्रेक्ष्य में इसे खत्म तो होना ही था। यद्यपि सरकार हज यात्रियों को समुद्री जहाज से भेजने की व्यवस्थाएं कर रही है जो हवाई यात्रा की अपेक्षा सस्ती हैं जिस कारण हज जाने वाले  वालों पर पडऩे वाला आर्थिक बोझ कम होगा। लेकिन अचानक लिए इस फैसले से अब केंद्र और विभिन्न राज्यों द्वारा तीर्थस्थलों की यात्रा हेतु दी जाने वाली आर्थिक सहायता या अनुदान पर भी हज सब्सिडी जैसे सवाल उठेंगे। इनमें मानसरोवर की यात्रा प्रमुख है। मप्र की शिवराज सरकार तो बुजुर्गों को विशेष रेलगाड़ी से बाकायदा तीर्थयात्राएं करवाती है। श्रीलंका में स्थित सीता वाटिका और कम्बोडिया के अंगकोरवाट मंदिर के दर्शन हेतु भी अनुदान दिया जाता रहा। अन्य राज्य भी धार्मिक स्थलों के भ्रमण हेतु तरह-तरह से आर्थिक मदद कर रहे हैं। इनके लिए भी हज सब्सिडी ही वजह बनी। अब चूंकि मुसलमानों को हज जाने हेतु दी जाने वाली मदद पूरी तरह बंद कर दी गई है इसलिए हिंदू अथवा अन्य धर्मावलम्बियों को दिए जा रहे ऐसे ही अनुदानों को रोकने का निर्णय भी किया जाना गलत नहीं होगा। मप्र सरकार द्वारा बुजुर्गों को कराए जाने वाले तीर्थ दर्शन पर हिन्दू समाज में भी ये सवाल उठता रहा है कि क्या ये काम सरकार का है? ओवैसी चूँकि खुद होकर हज सब्सिडी बन्द कर उसकी राशि मुस्लिम समाज में शिक्षा के प्रसार पर खर्च करने जैसी बातें करते रहे हैं इसलिये वे केंद्र के ताजा निर्णय पर ज्यादा हल्ला शायद ही मचा  सकें किन्तु मानसरोवर यात्रा की सब्सिडी खत्म करने की उनकी मांग पूरी तरह प्रासंगिक है। देर-सवेर केंद्र और राज्यों की सरकारों को अन्य धर्मों के लोगों को दी जा रही इसी तरह की सब्सिडी बन्द करने पर  विचार करना ही पड़ेगा। रही बात हज सब्सिडी रोक देने के राजनीतिक प्रभाव की तो मोदी सरकार ने निश्चित रूप से एक सोचा-समझा दांव चला है। पहले तीन तलाक पर प्रतिबन्ध और अब हज सब्सिडी को रोक देने के निर्णय को हिन्दू वोट बैंक को पुख्ता करने का प्रयास माना जा सकता है जिसका तात्कालिक लक्ष्य कर्नाटक का चुनाव हो सकता है जहां भाजपा योगी आदित्यनाथ को प्रचार में उतारकर हिन्दू लहर पैदा करने की रणनीति पर चल रही है। बावजूद इसके ये कहना सही होगा कि हज सब्सिडी बन्द करने का फैसला न सिर्फ  तुष्टीकरण अपितु वोट बटोरने के लिए सरकारी धन की बर्बादी को रोकने की दिशा में भी एक बड़ा दूरगामी कदम होगा। ओवैसी ने कुम्भ और सिंहस्थ मेले के प्रबंध हेतु दिए जाने वाले धन पर जो सवाल उठाए वे जरूर बेमानी हैं क्योंकि वह राशि किसी व्यक्ति विशेष की जेब में जाने की बजाय सरकार द्वारा किए जाने वाले प्रबंधों पर खर्च की जाती है। चूंकि इन मेलों के दौरान देश ही नहीं विदेशों से लाखों लोग आते हैं इसलिए इन पर किए जाने वाले खर्च को धार्मिक नजर से देखना सही नहीं होगा। हज सब्सिडी बन्द करने के निर्णय का सकारात्मक पहलू ये है कि इससे इसी तरह के ख़र्चों को रोकने का रास्ता खुल गया है।
सरकारी क्षेत्र की प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय दशा को देखते हुए जरूरी हो गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें अब उन अनुदानों और मुफ्तखोरी को बंद कर उस राशि के सही उपयोग की तरफ  कदम बढाएं। तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के चलते देश का काफी नुकसान हो चुका है। जिस तरह से नई-नई मांगें और अनुचित दबाव आने लगे हैं उनके मदद्देनजऱ कभी न कभी तो कड़े और अलोकप्रिय निर्णय लेने ही पड़ेंगे। प्रधानमंत्री की कार्यशैली इस बारे में आश्वस्त करती रही है। यदि वे आगे भी इस तरह के फैसले करते रहे तो भले ही कुछ लोगों को ये नागवार गुजरे लेकिन देश का भला सोचने वाले उनका स्वागत ही करेंगे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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