Friday 12 January 2018

अफसरों और नेताओं की गर्दन भी दबोचें मोदी

अफसरों और नेताओं की गर्दन भी दबोचें मोदी

देश भर में आयकर विभाग की छापेमारी के जरिये 3500 करोड़ की बेनामी सम्पत्ति जप्त किये जाने की खबर शुभ संकेत है। सोने-चांदी के जेवरात और लॉकरों में छिपाकर रखी करोड़ों की नगदी भी जप्त हो रही है। बेनामी संपत्ति को जप्त करने के साथ ही दोषी को सजा और जुर्माने का भागीदार भी बनना पड़ेगा। इस सम्बंध में बने नए कानून के तहत आयकर विभाग को पहले से ज्यादा अधिकार मिलने से जप्ती की कार्रवाई तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कालेधन के विरुद्ध अपनी सरकार की प्रतिबद्धता तो पहले दिन ही प्रगट कर दी थी किन्तु अब तक उसके अपेक्षित परिणाम न मिलने से सरकार को चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ रही है। विदेशों में जमा काला धन वापिस लाने के तमाम दावे भी हवा-हवाई होकर रह गए। नोटबन्दी को कालेधन पर बड़े हमले के तौर पर पेश किया गया था लेकिन नीतिगत ढुलमुलपने की वजह से उसका घोषित उद्देश्य पूरा नहीं हो सका। जीएसटी लागू करने के पीछे भी टेक्स चोरी रोककर काले धन का प्रवाह अवरुद्ध करने का मकसद ही है। प्रधानमंत्री इस मिशन में अब तक अपेक्षित सफलता न मिलने से निराश नहीं हैं और प्रयत्नों की पराकाष्ठा के जरिये ये साबित करने पर तुले हैं कि काले धन को बाहर लाने और उसके रखवालों को दण्डित करवाने में वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। बेनामी संपत्ति काले धन को सहेजकर रखने का सबसे बड़ा माध्यम  है। शासकीय अधिकारी और नेताओं के बीच इसका काफी चलन है। इसकी वजह से जमीन-जायजाद के दाम भी अकारण आसमान छूने लग गए थे। इस बारे में श्री मोदी की तारीफ  की जानी चाहिए कि वे चुनावी जीत हार की चिंता किये बिना इस तरह के कदम उठाने का जोखिम उठाते हैं। नोटबन्दी के बाद उप्र के चुनाव हुए थे। कहा जा रहा था कि नोटबन्दी के दौरान हुई परेशानियों के कारण लोग भाजपा को समर्थन नहीं देंगे लेकिन हुआ इसके विपरीत। इसी तरह जीएसटी के बाद गुजरात के चुनाव हुए जहां व्यवसायी वर्ग काफी नाराज था लेकिन तमाम आशंकाओं को झुठलाते हुए शहरी और व्यापारिक क्षेत्रों में भाजपा को निर्णायक बढ़त मिल गई। इससे ये साबित हो गया कि यदि शासक की नीयत साफ  हो तो जनता कड़े कदमों को भी समर्थन देती है। अगले डेढ़ वर्ष तक देश में चुनाव ही चुनाव होने हैं। प्रधानमंत्री के लिए भी ये समय काफी चुनौती भरा रहेगा क्योंकि एक बड़ी हार उनके मिशन 2019 को धक्का पहुंचा सकती है। ऐसे में बेनामी सम्पत्तियों के विरुद्ध छेड़ा गया अभियान बर्र के छत्ते को छेडऩे जैसा भी हो सकता है किंतु श्री मोदी ऐसे मामलों में चूँकि धुन के पक्के हैं इसलिए माना जा सकता है कि ये मुहिम जारी रहेगी क्योंकि अब हर किसी के खाते में 15 लाख आने जैसी बात आगे करना सम्भव नहीं होगा। प्रधानमंत्री ये समझते हैं कि उन्हें अपनी गरीब हितैषी छवि बरकरार रखनी होगी। और इसके लिए जरूरी है कालेधन और बेनामी सम्पत्तियों के विरोध में आक्रामक कार्यशौली जारी रखी जाए लेकिन श्री मोदी को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब तक नौकरशाहों और नेताओं की गर्दन नहीं दबोची जाती तब तक इस अभियान का असली उद्देश्य पूरा नहीं होगा। आम जनता में अमीरों की घेराबन्दी पर प्रसन्नता तो है किंतु नौकरशाहों और नेताओं के बचे रहने का रंज भी है  जबकि कालेधन और बेनामी सम्पत्तियों के मामले में ये ही सबसे आगे माने जाते हैं। यदि प्रधानमंत्री थोड़ा सा लिहाज छोड़कर इस तबके पर निशाने साधें तो उसकी जबर्दस्त अनुकूल प्रतिक्रिया होगी और देश में विश्वास क़ायम हो सकेगा। फिलहाल तो हर कोई मानता है कि अफसर और नेता चाहे कितना लूट लें लेकिन उनके गिरेबाँ पर हाथ डालने का साहस किसी में नहीं है। गुजरात चनाव में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे की समृद्धि में रातों-रात वृद्धि का मामला जोरशोर से उठा किन्तु चुनाव बाद ठंडा हो गया। इसी तरह से देश भर में फैले सरकारी अफसरों की सम्पत्ति की ईमानदारी से जांच हो जाए तो लोग टाटा,बिरला , अंबानी और अडानी को गरियाना छोड़ देंगे। बेनामी सम्पत्ति के विरुद्ध प्रधानमंत्री द्वारा छेड़े गए अभियान को यदि विश्वसनीय और पारदर्शी बनाकर असली उद्देश्य को पूरा करना है तो इसका दायरा केवल उद्योगपति और व्यापारी वर्ग तक सीमित न रखकर नौकरशाहों और नेताओं द्वारा बटोरी गई अकूत सम्पत्ति तक बढ़ाना होगा। नरेंद्र मोदी देश के सबसे विवादास्पद प्रधानमंत्री हैं। विपक्ष उन पर हमला करने में कोई संकोच नहीं कर रहा। समाचार माध्यमों में बैठा भाजपा विरोधी तबका भी हाथ धोकर उनके पीछे पड़ा रहता है। बावजूद इसके उनकी छवि एक सक्रिय और ईमानदार प्रधानमंत्री के तौर पर बनी हुई है। यदि वे नौकरशाहों और नेताओं की काली कमाई और बेशुमार बेनामी सम्पत्ति का पर्दाफाश करते हुए उन्हें कठघरे में खड़ा करने का साहस दिखाएं तो इससे उन्हें और उनकी पार्टी को जो राजनीतिक लाभ होगा वह तो अलग है लेकिन देश का बहुत बड़ा फायदा होगा। सबसे बड़ी जरूरत इस विश्वास की पुनर्स्थापना करना है कि गलत काम करने वाले को बख्शा नहीं जाएगा चाहे वह अफसर हो या नेता ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment