Monday 15 January 2018

सीमा पर तनाव के बीच नेतन्याहू की यात्रा महत्वपूर्ण


एक बड़ा रक्षा सौदा रद्द करने और संरासंघ में येरुशलम को इसराइल की राजधानी  घोषित करने सम्बन्धी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की इकतरफा घोषणा के विरुद्ध मतदान करने के आधार पर ये माना जा रहा था कि इसराइल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा  कायम किये गए दोस्ताना रिश्तों में दरार आ जावेगी। प्रधानमंत्री नेतन्याहू का प्रस्तावित भारत दौरा भी झमेले में फंसने की आशंका उत्पन्न हो गई थी किन्तु गत दिवस इसराइली नेता के भारत आगमन और श्री मोदी द्वारा शिष्टाचार तोड़कर उनकी गर्मजोशी के साथ की गई अगवानी से उक्त आशंकाएं दूर हो गईं। भारत-इसराइल संबंधों में अरब देशों से हमारे रिश्ते सदैव आड़े आते रहे हैं। इस देश से बोलचाल का पहला प्रयास जनता पार्टी की सरकार ने किया था। चूंकि तबके प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई और विदेश मंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को दक्षिणपंथी और अमेरिका समर्थक माना जाता था इसलिए कांग्रेस सहित पूरे वामपंथी दलों ने सरकार पर ऐसी चढ़ाई की कि वह अपराध बोध से ग्रसित हो गई। दरअसल इसराइली नेता मोशे दायान गुप्त रूप से भारत आए थे जिसे पहले तो सरकार ने नकारा किन्तु बाद में उसे स्वीकारना पड़ा। यद्यपि कालांतर में  इसराइल से भारत के कूटनीतिक रिश्ते कायम हो गए किन्तु संयुक्त मोर्चा एवं कांग्रेस की सरकारें अरब देशों की नाराजगी से बचने इस यहूदी देश से दूरी बनाकर चलती रहीं जिसकी एक वजह भारत का विशाल मुस्लिम वोट बैंक भी कहा जा सकता है। रक्षा उत्पादन और कृषि क्षेत्र में इसराइल ने जो उपलब्धियां अर्जित कीं वे पूरी दुनिया के लिए चौंकाने वाली हैं। आतंकवाद से निबटने की उसकी तकनीक और प्रबल इच्छाशक्ति का लोहा तो वे बड़ी शक्तियां भी मानती हैं जो इस्लाम की आड़ में चल रही दहशतगर्दी से त्रस्त हैं। केंद्र में मोदी सरकार बनते ही इसराइल से रक्षा सौदों के अलावा आतंकवाद से निबटने के तौर-तरीके एवं तकनीक हासिल करने की दिशा में भी बीते तीन साल में काफी प्रयास हुए जिनके अनुकूल परिणाम भी सामने आने लगे हैं। चीन और पाकिस्तान की तरफ  से होने वाले किसी बड़े सम्भावित हमले का समय रहते पूर्वानुमान लगाने एवं उसे बेअसर करने वाली रक्षा प्रणाली हासिल करने में मिली सफलता से हमारे दोनों पड़ोसी शत्रु देश चिंतित हैं। ये भी सुना गया है कि सीमा से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए की जा रही व्यवस्थाएं भी इसराइली विशेषज्ञों के निर्देशन में ही हो रही हैं। श्री मोदी की पिछली इसराइल यात्रा के दौरान श्री नेतन्याहू ने जिस अंदाज में उनका स्वागत करते हुए भारत को अपना स्वाभाविक मित्र बताया उससे दोनों देशों के बीच रिश्तों की एक नई इमारत खड़ी होने की प्रक्रिया  शुरू हो चुकी थी। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है इस्लामिक आतंकवाद जिससे इसराइल और भारत शुरू से ही जूझ रहे हैं। भारत के आज़ाद होते ही पाकिस्तान ने हमला कर दिया था वहीं 1949 में इसराइल के अस्तित्व में आते ही उस पर पड़ोसी अरब देशों ने चढ़ाई कर दी। तबसे दोनों ही देशों को अपने पड़ोसियों से कई युद्ध लडऩे पड़े और फिलहाल आतंकवाद रूपी संकट का सामना दोनों को करना पड़ रहा है। इस माहौल में श्री नेतन्याहू की भारत यात्रा  कूटनीतिक शिष्टाचार के निर्वहन से बढ़कर आपसी सहयोग को चरमोत्कर्ष तक पहुंचाने में सहायक होगी ये विश्वास करना गलत नहीं होगा। इसराइल को भी एशिया में अमेरिकी लॉबी से बाहर के राष्ट्र के रूप में भारत का समर्थन और सहयोग काफी मायने रखता है। श्री मोदी ने प्रधानमंत्री नेतन्याहू से निजी स्तर के जो सम्बंध बना लिए हैं वह उनके कूटनीतिक कौशल को उजागर करने के साथ ही देश की सुरक्षा व्यवस्था  को सुदृढ़ करने में काफी मददगार रहेगा। जिन रक्षा सौदों को लेकर हाल ही में गतिरोध उत्पन्न हो गया था उन पर भी निर्णय होने की उम्मीद है। अरब देशों से सम्बन्धों का सन्तुलन बनाए रखते हुए भारत के रिश्ते इसराइल से भी मज़बूत होते  जाना देश के दूरगामी हितों के लिहाज से काफी बेहतर होगा। श्री नेतन्याहू की यात्रा ऐसे वक्त हो रही है जब पाकिस्तान और चीन दोनों ही सीमा पर तनाव बनाने में जुटे हुए हैं। यद्यपि किसी बड़े युद्ध की आशंका तो नहीं है किंतु कब क्या हो जाए कहना कठिन है। ऐसी स्थिति में महाशक्तियों की बजाय इसराइल जैसे देश से भारत की सामरिक, आर्थिक और कूटनीतिक नजदीकी न सिर्फ  एशिया वरन समूचे विश्व में हलचल मचा सकती है। गत दिवस दिल्ली के ऐतिहासिक तीनमूर्ति चौक के नाम में इसराइल के ऐतिहासिक नगर हाइपा का नाम जोड़कर श्री मोदी ने देश के भीतर इसराइल का विरोध करने वाली लॉबी को भी अपने तरीके से सन्देश दे दिया। बीते कुछ दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के विरुद्ध जो कड़ा रुख अख्तियार किया है उसे देखते हुए इसराइल के साथ सम्बन्ध और मज़बूत करने से पाकिस्तान और उसके सरपरस्त चीन दोनों पर दबाव बढ़ेगा। भारतीय कूटनीति को नेहरू युग की भावनात्मकता से हटकर व्यवहारिकता के धरातल पर खड़ा करने के मोदी सरकार के प्रयास काफी कारगर होते दिख रहे हैं। श्री नेतन्याहू की मौजूदा यात्रा दक्षिण एशिया की वर्तमान परिस्थितियों में भारत के दबदबे को बढ़ाने में मददगार होगी ये सोचा जा सकता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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