Wednesday 24 January 2018

दावोस : अवसर को भुनाने की सार्थक पहल

स्विट्जरलैंड के दावोस शहर में वल्र्ड इकानॉमिक फोरम में लंबे अरसे बाद पहुंचे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरुवाती सत्र को 50 मिनिटों तक हिन्दी में सम्बोधित करते हुए भारत के बढ़ते आत्मविश्वास का जो प्रस्तुतिकरण किया उसकी दलीय सीमाओं से उठकर प्रशंसा होनी चाहिए। राहुल गांधी द्वारा आर्थिक विषमता पर किये कटाक्ष और सागरिका घोष सदृश ऐलानिया भाजपा विरोधी पत्रकार द्वारा दावोस में प्रधान मंत्री द्वारा की जा रही भारत की मार्केटिंग के साथ करणी सेना द्वारा किये जा रहे उपद्रव को सन्दर्भित करना घरेलू राजनीति के लिहाज से भले उचित हो किन्तु श्री मोदी  जिस अंदाज में बड़ा दल साथ लेकर गए हैं उससे लगता है वे इस महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का लाभ उठाने की पूरी तैयारी में हैं। गत दिवस दिए गए प्रभावशाली संबोधन से उन्होंने ये छाप एक बार फिर छोड़ दी कि विश्व के आर्थिक परिदृष्य में भारत महज एक दर्शक नहीं अपितु रंगमंच पर आकर मुख्य भूमिका निभाने के लिए संकल्पित है। दावोस का ये फोरम कूटनीतिक दांव पेंचों के समानांतर आर्थिक विकास और व्यवसायिक मसलों पर केंद्रित रहता है। प्रधान मंत्री के साथ गए भारी भरकम प्रतिनिधिमंडल में विभिन्न वर्गों के समावेश का भी सांकेतिक महत्व है। सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है जब बीते दो वर्षों की उथल पुथल और अनिश्चितता के बाद भारत का आर्थिक माहौल एक बार फिर विश्वास पैदा करता दिख रहा है। लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान कह रहे हैं कि 2018-19 का कारोबारी साल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सफलता भरा होगा। आर्थिक विकास की सम्भावनाएँ जिस तरह चीन से खिसककर भारत की तरफ  आ रहीं हैं उनको देखते हुए दावोस में श्री मोदी का जाना पूरी तरह सार्थक और फायदेमंद होने की उम्मीद की जा सकती है। निवेश के लिए दुनिया भर में इस समय भारत को सबसे अनुकूल राष्ट्र माना जा रहा है। विदेशी पूंजी जिस तेजी से आ रही है वह कारोबार में आए ठहराव को दूर करने में मददगार तो होगी ही उससे रोजगार के रास्ते में आने वाले अवरोधों का भी खात्मा होने से इंकार नहीं किया जा सकता । वल्र्ड इकानॉमिक फोरम के जरिये आर्थिक विकास की नई सम्भावनाओं को भारत की तरफ  मोडऩे में सफलता मिल सकती है। दक्षिण एशिया में भारत की उपस्थिति दिन ब दिन प्रभावशाली होते जाने से महाशक्तियों को भी चीन की बजाय भारत में सम्भावनाएँ नजऱ आने लगी हैं। आतंकवाद को पालने-पोसने में पाकिस्तान की सक्रिय भूमिका और उसकी पीठ पर चीन का हाथ होने की बात से पूरा विश्व परिचित हो चुका है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जापान, मलेशिया, सिंगापुर, विएतनाम और द.कोरिया सदृश चीन विरोधी देशों से प्रगाढ़ सम्बन्ध बनाने में जो सफलता हासिल की उसने पूरे महाद्वीप का संतुलन बदलते हुए चीन के इकतरफा दबदबे को खत्म कर दिया। डोकलाम विवाद पर जिस तरह का कड़ा रवैया भारत ने दिखाया उससे भी विश्व बिरादरी आश्वस्त हुई है। इन सबका असर ये हुआ कि अब अमेरिकी लॉबी के तमाम देश भी भारत की बात सुनने और समझने के साथ उसका समर्थन करते दिख रहे हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान को लेकर जो रुख अख्तियार किया उसे भी भारत के प्रभाव में वृद्धि के तौर पर देखा जा रहा है। कुल मिलाकर अनुकूल परिस्थितियों का भरपूर लाभ उठाने में सिद्धहस्त श्री मोदी ने दावोस सम्मेलन के रूप में मिले अवसर को भुनाने की जो पहल की उसके समुचित परिणाम मिलने की उम्मीद करना गलत नहीं होगा। चूंकि 2018 और 19 दोनों राजनीतिक दृष्टि से श्री मोदी के लिए जीवन मरण का प्रश्न होंगे इसलिये उनके लिए भी जरूरी है कि वे उन उम्मीदों को पूरा करने की दिशा में परिणाममूलक कदम उठाएं जो उन्होंने 2014 के पहले जगाईं थीं। तमाम विरोधाभासों और विसंगतियों के बावजूद अभी भी देश में प्रधान मंत्री के प्रति भरोसा कायम है। घरेलू एवम अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में ये बात साबित भी होती रहती है किंतु अब चीजों को ज़मीन पर उतारने का समय आ गया है। मोदी जी में क्षमता और उत्साह की कमी नहीं है। समय का नियोजन भी वे सही-सही करते हैं और विपरीत स्थितियों में बजाय धैर्य खोने के आगे आकर सामना करने की हिम्मत दिखाते हैं। नोटबन्दी और जीएसटी जैसे जटिल निर्णय क्रमश: उप्र और गुजरात चुनाव के पहले लेना उनके अंतर्निहित साहस का बेहतरीन उदाहरण है। उनके गैर राजनीतिक आलोचक भी मानते हैं कि फिलहाल देश में कोई दूसरा नेता विकल्प बनता नहीं दिख रहा वहीं वैश्विक स्तर पर भी विकासशील देशों का अन्य कोई राजप्रमुख श्री मोदी की तरह सक्रिय,मुखर और आगे बढ़कर अवसर को लपकने की कला में पारंगत नहीं है। गणतंत्र दिवस पर सभी आसियान देशों के राजप्रमुखों को एक साथ बतौर अतिथि बुलाना प्रधानमंत्री के कूटनीतिक कौशल का परिचायक है। उसके तुरन्त बाद बजट पेश होगा। उस लिहाज से दावोस में उनकी उपस्थिति किसी महत्वपूर्ण घटनाक्रम की शुरुवात हो सकती है। यूँ भी चौकाने में श्री मोदी काफी माहिर माने जाते हैं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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