Friday 5 January 2018

काँग्रेस फिर वही गलती दोहरा रही

हर पार्टी की अपनी नीति होती है। समय की मांग पर  रणनीति के तहत उसमें थोड़ा लचीलापन भी लाना होता है लेकिन तीन तलाक़ विधेयक पर कांग्रेस की अस्पष्ट रणनीति समझ से परे है। बीते सप्ताह लोकसभा में उक्त  विधेयक को पारित कराने में उसने केंद्र सरकार का साथ दिया था। यद्यपि विधेयक को प्रवर समिति के विचारार्थ भेजने की मांग वहां भी उसकी ओर से की गई और तीन तलाक़ देने वाले को जमानत का अधिकार देने की बात भी उठाई किन्तु सिद्धांत: पार्टी ने विधेयक का समर्थन किया। उस वजह से उसके विरोध में केवल दो वोट पड़े। मुस्लिम महिलाओं की दशा सुधारने की दिशा में सर्वोच्च न्यायालय की पहल पर उठाए गए इस कदम की मुस्लिम महिलाओं ने दिल खोलकर सराहना की लेकिन धार्मिक नेताओं ने आसमान सिर पर उठाने में कोई संकोच नहीं किया और विधेयक को शरीया के खिलाफ  बताते हुए इस्लाम विरोधी निरूपित करने में पूरी ताकत झोंक दी। हालांकि मुस्लिम पुरुषों ने खुलकर कुछ नहीं कहा क्योंकि उनका पक्ष तो मुल्ला मौलवियों ने जोरदारी से रख दिया था। लोकसभा में कांग्रेस ने चूंकि बिना विरोध के विधेयक पारित करवा दिया इसलिये उम्मीद बनी थी कि राज्यसभा में भी वह समर्थन दे देगी जिससे तीन तलाक़ को दंडनीय अपराध बनाने वाला नया कानून अस्तित्व में आकर मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक स्थिति को सुधारने का जरिया बन सकेगा। 2018 की शुरुवात एक बड़े सामाजिक सुधार से होने से अन्य धर्मों से जुड़ी कुरीतियों को खत्म करने का रास्ता खुलने की उम्मीद भी जागने लगी थी। लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस ने जिस तरह से कदम पीछे खींचे उसके कारण संसद के मौजूदा सत्र में विधेयक का पारित होना असम्भव हो गया। चूंकि उच्च सदन में भाजपा अल्पमत में है इस वजह से बिना विपक्ष के सहयोग के वह लाचार होकर रह गई है। पहले तो कांग्रेस ने विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की जिद पकड़ी जिसे तकनीकी आधार पर सरकार ने नहीं माना। उसके बाद अब कांग्रेस और शेष विपक्ष कतिपय संशोधनों को लेकर अड़ गया है। इस वजह से गत दो दिनों से राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा नहीं हो सकी। आज सत्र का आखिरी दिन है जिसमें कोई निर्णय हो पाना नामुमकिन लगता है। इस तरह अगले सत्र में ही इस पर विचार हो सकेगा किन्तु राज्यसभा की जो स्थिति है उसमें सरकार के पास बहुमत आने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही। यहां तक कि  भाजपा की सहयोगी तेलुगु देशम तक इस मसले पर विपक्ष के साथ खड़ी हो गई। अब प्रश्न ये है कि आखिर लोकसभा में समर्थन के बाद कांग्रेस ने राज्यसभा में अपने रवैये में परिवर्तन क्यों किया और इसका उत्तर है मुस्लिम वोट बैंक। कांग्रेस को लग रहा है कि यदि विधेयक पारित हो गया तो उससे मुस्लिम महिलाएं भाजपा समर्थक बन जाएंगीं वहीं पुरुष भाजपा से नाराज बने रहने के साथ-साथ कांग्रेस से भी दूर हो सकते हैं। मुस्लिम धर्मगुरुओं की इकतरफा नाराजगी देखते हुए कांग्रेस को लगा कि वह विधेयक को पारित होने से रोककर मुस्लिम वोट बैंक को पूरी तरह बिखरने से रोक सकेगी। विधेयक को प्रवर समिति भेजने का सीधा -सीधा अर्थ उसे ठंडे बस्ते में डालना होगा। महिला आरक्षण विधेयक का हश्र इस संदर्भ में  उल्लेखनीय है। अन्य विपक्षी दल भी केवल मुस्लिम धर्मगुरुओं को खुश करने के लिए विधेयक को टांगने के पक्षधर हैं, उनको भी यही डर सताने लगा है कि मुस्लिम महिलाओं के मत थोक के भाव भाजपा के हिस्से में न चले जाएं। कुल मिलाकर विपक्ष द्वारा मुस्लिम समाज के भीतर एक बड़े सुधार की प्रक्रिया को पलीता लगाने का चिर- परिचित खेल फिर चल पड़ा है जिसका नेतृत्व वही कांग्रेस कर रही है जिसके हाथ तीन दशक से भी पहले शाहबानो प्रकरण में झुलस चुके थे। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा गुजरात चुनाव के दौरान मन्दिरों के दर्शन से ये एहसास हुआ था कि पार्टी को मुस्लिम तुष्टीकरण के नुकसान महसूस होने लगे हैं। 2014 की ऐतिहासिक पराजय के बाद एंटोनी समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस की हिन्दू विरोधी छवि को हार की वजह बताया था। ऐसा लगा मानों राहुल को हिंदुत्व का महत्व समझ में आने लगा है। उप्र में अखिलेश यादव से हुए गठबंधन का कोई लाभ न मिलना भी वे भूले नहीं होंगे किन्तु तीन तलाक़ विधेयक पर लोकसभा और राज्यसभा में अलग-अलग नीति अपनाकर पार्टी ने अपनी निर्णय शून्यता को फिर उजागर कर दिया। यदि वह इस विधेयक पर सरकार के साथ हर तरह से खड़ी हो जाती तब भाजपा को उसका राजनीतिक लाभ पूरा-पूरा नहीं मिल पाता। लेकिन कांग्रेस की ढुलमुल रणनीति ने एक बार फिर उसकी स्थिति दयनीय बना दी है। राहुल गांधी किसी भी अभियान की अच्छी शुरुवात के बाद दिशाहीन क्यों हो जाते हैं ये राजनीतिक विश्लेषकों के लिए बड़ा और विचारणीय मुद्दा है। तीन तलाक़ विधेयक लोकसभा में पारित करवाकर भाजपा ने अपने खाते में मुस्लिम महिलाओं के रूप में अतिरिक्त मत अर्जित कर लिए लेकिन कांग्रेस और शेष विपक्ष ने हाथ आया अवसर गंवाकर भाजपा के मन की मुराद को पूरा कर दिया।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment