Monday 8 January 2018

इंदौर हादसा : राजसत्ता का संरक्षण असली वजह

इंदौर में बीते सप्ताह हुए सड़क हादसे में एक नामी-गिरामी निजी विद्यालय के कुछ नन्हें बच्चे मौत के मुंह में समा गए। घटना पर हल्ला मचा तो पता चला कि विद्यालय की बस काफी पुरानी थी लेकिन अपनी ईमानदारी के लिए विश्वविख्यात परिवहन विभाग ने उक्त बस को गुणवत्ता के सारे प्रमाणपत्र देते हुए तकनीकी खराबी को दुर्घटना का कारण बताकर विद्यालय प्रबंधन का बचाव करने में कोई संकोच नहीं किया। गत दिवस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शोक संतप्त परिवारों से मिलने गए तो मृतक बच्चों के माता-पिता का गुस्सा फूट पड़ा। अभिभावकों ने शिवराज सिंह को खूब खरी-खोटी सुनाई और ये उलाहना भी दिया कि ऐसा हादसा किसी बड़े व्यक्ति के संग घटा होता तो पूरा शहर हिला दिया जाता। मुख्यमंत्री पीडि़त परिवारों से मिलकर खुद भी भाव विव्हल हो गए और ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए परिवहन अधिकारी को हटा दिया। लगे हाथ पूरे राज्य में विद्यालयों की पुरानी बसों को बंद करने और प्रशासनिक चौकसी का आश्वासन भी दे डाला। उनकी जगह दूसरा शासक होता तो वह भी इसी तरह का कर्मकांड करते हुए शोक में डूबे परिवारों के गुस्से पर पानी डालता। परिवहन विभाग केवल मप्र ही नहीं अपितु पूरे देश में भ्रष्टाचार का प्रतीक माना जाता है। इसकी एक वजह राजनीतिक संरक्षण भी है। सत्ताधारी दल की रैलियों के लिए मुफ्त के वाहन जुटाने में इस विभाग का जिस तरह उपयोग होता है उसके कारण उसके अधिकारी बेलगाम होकर भ्रष्टाचार करते हैं। निजी शिक्षण संस्थानों की कंडम बसों को सुरक्षित और चलने योग्य प्रमाणित करने के एवज में मिलने वाली सौजन्य राशि के दबाव में पूरी व्यवस्था का मुंह बंद होकर रह जाता है। शिवराज जी ने जिस परिवहन अधिकारी को हटा दिया वह भी किसी न किसी बड़े भाजपा नेता या मंत्री का कृपापात्र रहा होगा। इंदौर जैसे शहर में परिवहन विभाग का मुखिया होना नोट छापने की मशीन हाथ में आने जैसा है। ये विभाग मोटी मलाई के लिए जाना जाता है। मुख्यमंत्री ने मौके की नजाकत के अनुरूप तत्काल कार्रवाई करते हुए जो सम्वेदनशीलता दिखाई वह मजबूरी का नतीजा था। यदि दर्दनाक हादसे में मासूमों की जान न गई होती तो उनकी सरकार 15 साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी बसों पर रोक लगाने जैसी बात सोचती भी नहीं। तीन महीनों में पूरी व्यवस्था चाक चौबंद करने की जो घोषणा शिवराज जी ने की वह कितनी कारगर होगी ये बताने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि चुनाव वर्ष में परिवहन विभाग चंदे का बड़ा जरिया रहेगा। दरअसल बसों और ट्रकों के धंधे में राजनीतिक नेताओं की हिस्सेदारी सर्वविदित है। महंगे निजी शिक्षण संस्थानों का संचालन भी नेताओं और प्रभावशाली लोगों द्वारा किया जाने से उनके द्वारा फीस की लूटपाट सहित अन्य अनियमितताओं पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता। छात्रों को लाने-छोडऩे के लिए बसें जिन निजी संचालकों से अनुबंध पर ली जाती हैं वे भी राजनेताओं के भागीदार या कृपापात्र होते हैं। यात्री बसों के व्यवसाय में तो नेताओं की मौजूदगी किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में इंदौर हादसे के बाद भी व्यवस्था में व्याप्त गड़बडिय़ां खत्म हो सकेंगी ये मान लेना कोरा आशावाद होगा। शिवराज सिंह निश्चित रूप से ऐसे अवसरों पर आम जनता की भावनाओं के अनुरूप व्यवहार करते हैं किंतु उनके मातहत जो सरकारी महकमा है वह चूंकि पूरी तरह भ्रष्ट और स्वछंद है इसलिए मुख्यमंत्री के कहे अनुसार तीन महीने में सब कुछ ठीक हो जाएगा ये विश्वास नहीं होता। अतीत में हुई अनेक बस दुर्घटनाओं के बाद भी राज्य सरकार ने परिवहन व्यवस्था को नियमानुसार संचालित करने के लिए हाथ पांव चलाए। कुछ दिनों तक लगा कि रामराज्य धरती पर उतर आया लेकिन फिर से रात गई, बात गई वाली स्थिति लौट आई। इंदौर में जो हुआ वह हृदयद्रावक था। जिस तरह छोटे-छोटे बच्चे काल के गाल में समाए उसकी कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो  जाते हैं लेकिन किसी एक विद्यालय या परिवहन अधिकारी को इसके लिए पूरी  तरह जिम्मेदार मानना सच से मुंह छिपाने जैसा होगा। जब पूरी व्यवस्था ही आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हो तब किसी एक या दो को कठघरे में खड़ा करने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। शिवराज सिंह की निजी सम्वेदनशीलता पर बिना सन्देह किये भी ये कहना गलत नहीं होगा कि भले ही वे सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बनने का कीर्तिमान बना चुके हों किन्तु दिग्विजय सिंह के राज को अलीबाबा चालीस चोर कहकर बदनाम करने वाली भाजपा की रामनामी सरकार भी भ्रष्टाचार के मोर्चे पर पूर्ववर्ती सत्ता से पीछे नहीं बल्कि दो कदम आगे ही है। आजकल निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों में भी बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का चलन बढ़ चला है। अपना पेट काटकर संतान का भविष्य संवारने वाले अभिभावक निजी शिक्षण संस्थानों के नाज नखरे उठाकर परेशान होने के बाद भी चुप बने रहते हैं क्योंकि उनके घर के पास वाले सरकारी विद्यालय की हालत दयनीयता की चरम अवस्था को भी पार कर चुकी है। जन कल्याण की अनेक योजनाएं चलाकर प्रशंसित होने वाले श्री चौहान सरकारी विद्यालयों को प्रतिस्पर्धा में खड़ा करने में नाकामयाब रहे जिस वजह से निजी क्षेत्र की शिक्षा दुकानों को दोनों हाथों से लूटने की छूट मिल गई। इंदौर हादसे के उपरांत हुई चौतरफा आलोचना के परिप्रेक्ष्य में भले ही मुख्यमंत्री ने त्वरित कार्रवाई का दिखावा कर दिया किन्तु जब तक भ्रष्ट व्यवस्था से  सत्ताधारियों की स्वार्थ सिद्धि का सिलसिला नहीं रुकता तब तक इस तरह के दर्दनाक हादसे दोहराए जाते रहेंगे।

-रवींद्र वाजपेयी

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