Saturday 27 January 2018

पत्थरबाजों पर रहम देशहित में नहीं

गणतंत्र दिवस पर जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने वाले हज़ारों युवकों पर चल रहे मुकदमे वापिस लेने की घोषणा कर दी । राज्य के डीजीपी द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर की गई इस कार्रवाई ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है । घाटी के भीतर आतंक प्रभावित कुछ जिलों में सुरक्षा बलों की सख्ती से पत्थरबाजी में कमी आई थी । पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने गहराई से खोजबीन करते हुए बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां करने के बाद अपराधिक प्रकरण दर्ज किए थे । पत्थरबाजी के लिए भुगतान करने वाले आतंकवादियों के मददगारों पर छापेमारी की गई । हुर्रियत नेताओं पर भी शिकंजा कसा गया । इन सबका सुपरिणाम ये हुआ कि एक तरफ  जहां पत्थरबाजी की घटनाएं तकरीबन रुक गईं वहीं बड़ी संख्या में युवक आतंकवाद की राह छोड़कर मुख्यधारा में लौटने लगे । पुलिस की भर्ती में  जिस तरह से भीड़ उमड़ी उससे भी सुरक्षा बलों की कार्रवाई का अनुकूल असर महसूस हुआ । लेकिन दूसरी तरफ ये दबाव भी आने लगा कि पत्थरबाजी में पकड़े गए युवकों पर मुकदमे लगे रहने से उनके मन में गुस्सा और पनपेगा जिससे शांति प्रक्रिया बहाल करने में रुकावट आएगी । डीजीपी द्वारा की गई सिफारिशों को स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री ने गणतंत्र दिवस पर हजारों पत्थरबाजों से मुक़दमे वापिस लेने का ऐलान करते हुए उम्मीद जताई कि इससे विश्वास का माहौल बनेगा लेकिन इस फैसले की राष्ट्रीय स्तर पर जो प्रतिक्रिया हुई उसके आधार पर कहा जा सकता है कि हजारों पत्थरबाजों को थोक के भाव माफ कर देना लोगों को रास नहीं आया । अधिकतर लोगों का मानना है कि इससे सुरक्षा बलों का मनोबल घटेगा वहीं इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अपराधमुक्त कर देने के बाद ये युवक दोबारा आतंकवाद के रास्ते पर नहीं लौटेंगे। हुर्रियत के जो नेता नजरबंद हैं या उनकी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है उनका मन बदल गया हो ऐसी बात भी नहीं हैं। ये जरूर हुआ कि नोटबन्दी और उसके बाद मारे गए छापों में आतंकवादियों की वित्तीय मदद करने वाले चेहरे सामने आने से पत्थरबाजों को भुगतान मिलना बंद हो गया । लेकिन इतने मात्र से वे आतंकवादियों की मदद करना बंद कर देंगे ये सोच लेना सच्चाई से मुंह मोडऩे जैसा होगा । यही वजह है कि महबूबा मुफ्ती की उक्त घोषणा से राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा बगलें झांकने  मजबूर हो गई।  उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि वह इस पर क्या कहे और क्या करे क्योंकि हज़ारों पत्थरबाजों से एकमुश्त मुकदमे हटाने के फैसले का समर्थन करने पर केंद्र सरकार की कश्मीर नीति पर उठ रहे सवाल और भी पैने हो जाएंगे  वहीं वह विरोध करती है तब राज्य सरकार में उसकी  बराबरी से चल रही हिस्सेदारी पर नए सिरे से उंगलियां उठने लगेंगी। कुल मिलाकर भाजपा के लिए ये उगलत निगल पीर घनेरी वाली स्थिति है । लेकिन मौन या निर्विकार  रहना भविष्य के खतरों को अग्रिम आमंत्रण देने जैसा होगा । महबूबा मुफ्ती दरअसल इस तरह के निर्णय लेकर अगले चुनाव की तैयारियों में जुट गईं हैं। ये कहने में कुछ भी अटपटा नहीं है कि कश्मीर घाटी में आज भी अलगाववाद की जड़ें बहुत गहरी हैं । पीडीपी और नेशनल कांफ्रेस ऊपर से कितना भी दिखावा करें किन्तु असलियत में दोनों के मन काली हैं । यही वजह है कि कश्मीर की विशेष स्थिति और धारा 370 को हटाने की चर्चा मात्र से अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार भनभनाने लगते हैं । मजबूरी ये है कि कांफ्रेंस और भाजपा दोनों घाटी के भीतर अप्रासंगिक हैं जिससे कश्मीर को मुख्य धारा में लाकर अलगाववाद की जड़ों में मठा डालने का काम शुरू ही नहीं हो पाता । यही वजह है कि कांग्रेस कभी अब्दुल्ला तो कभी मुफ्ती परिवार की दुमछल्ला बनने मजबूर होती रही और अब उसी स्थिति को भाजपा झेलने बाध्य है । यद्यपि पीडीपी से हाथ मिलाने का उसका फैसला  दूरगामी रणनीति के लिहाज से ठीक था और उससे राज्य  के प्रशासन में पहली बार उसकी घुसपैठ हो सकी जिस वजह से आतंकवाद से सख्ती से निपटने में भी आसानी हुई वरना पत्थरबाजी रोकना असम्भव लगने लगा था । मेहबूबा भी अपने पिता के चले जाने के बाद खुद को असुरक्षित महसूस करने की वजह से भाजपा का साथ छोडऩे का साहस नहीं कर पा रहीं किन्तु मौका पाते ही वे ज़हरीला डंक मारने से भी नहीं बाज आतीं। अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि पत्थरबाजों से प्रकरण वापिस लेने में भाजपा की कितनी सहमति थी किन्तु इस फैसले ने पार्टी के लचरपन को उजागर कर दिया है । विरोधियों को तो चलो छोड़ भी दें किंतु भाजपाई भी मानते हैं कि अब उसे महबूबा से गठबंधन तोड़ देना चाहिए क्योंकि इससे कश्मीर को लेकर अब तक अपनाई गई उसकी नीतियों की धज्जियां उड़ रही हैं । महबूबा इस समय कमजोर गोटी हैं ।  भाजपा अलग हो जाए तो उनकी गद्दी खतरे में आ जाएगी, जो वे नहीं चाहेंगीं । ये सब देखते हुए जरूरी हो गया है कि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व कोई ठोस फैसला करते हुए जम्मू कश्मीर के सम्बंध में अपनी मूल नीतियों को लागू करने की दिशा में कदम उठाए वरना ये आरोप सच माना जाएगा कि सत्ता के लिए सिद्धांतो से समझौता करने में भाजपा भी बाकी दलों की तरह ही है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment