Monday 22 January 2018

थोड़ा रुक जाते तो क्या बिगड़ जाता


चुनाव आयोग द्वारा की गई सिफारिश को मानने की बाध्यता के चलते सम्भवत: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य ठहराने का निर्णय किया किन्तु इसमें जिस तरह की तत्परता बरती गई उससे महामहिम पर बरबस ऊंगलियाँ उठ गईं। रविवार को निर्णय करने की जल्दबाजी समझ से परे है। आयोग द्वारा अयोग्य ठहराए विधायकों ने राष्ट्रपति से मिलकर अपना पक्ष रखने का समय मांगा था। आज दिल्ली न्यायालय में भी सुनवाई तय थी। ऐसे में आनन फानन किये गये फैसले से राजनैतिक पक्षपात की बू आने की बात सतही तौर पर गलत नहीं लगती। राष्ट्रपति चूंकि स्वयं सर्वो'च न्यायालय में वकालत करते रहे इसलिये उनके संवैधानिक ज्ञान पर संदेह न करते हुए भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि उन्हें विधायकों का पक्ष तो सुनना ही था जो न्याय की मूलभूत आवश्यकता थी। आप आदमी पार्टी की झल्लाहट चुनाव आयोग के बाद अब महामहिम पर स्थानान्तरित हो जाना भी स्वाभाविक है। उ'च न्यायालय में राहत न मिलने पर आम आदमी पार्टी सर्वो'च न्यायालय जाने की बात कह रही है। राष्ट्रपति के फैसले के बाद हो सकता है न्यायपालिका भी राहत न दे लेकिन इससे महामहिम पर सत्तारूढ़ पार्टी की तरफदारी का आरोप लग गया जो उनके पद की गरिमा के अनुरूप ठीक नहीं है। हो सकता है श्री कोविंद का निर्णय पूर्णत: विधि सम्मत और विवेकपूर्ण हो किन्तु सर्वो'च न्यायालय में अभी हाल में हुए विवाद में ये बात काफी तेजी से उभरी थी कि न्याय होना ही नहीं, होते हुए दिखना भी चाहिए। राष्ट्रपति विधायकों का पक्ष सुनकर निर्णय लेते तब न्याय होते हुए दिखने की अपेक्षा पूरी हो जाती। आम आदमी पार्टी दिल्ली में पहले जैसी लोकप्रिय और सम्मानीय भले  न रही हो लेकिन उसे व्यर्थ में सहानुभूति का अवसर दे देना भी बुद्धिमत्ता नहीं है। चुनाव आयोग की सिफारिश को अक्षरश: मंजूर करने में यदि महामहिम एक-दो दिन और लगा देते तो कुछ बिगडऩे वाला नहीं था ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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