शिवसेना यदि ऐंठ न दिखाए तो ठाकरे परिवार को भोजन हजम नहीं होता। हिंदुत्व के नाम पर 1995 से भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल स्व. बाल ठाकरे द्वारा स्थापित यह पार्टी महाराष्ट्र में भाजपा से पीछे होने का झटका सहन नहीं कर पा रही। पिछले विधान सभा और फिर मुंबई महानगर पालिका का चुनाव दोनों अलग अलग लड़े किन्तु सत्ता मिलकर बना ली। इसके बाद भी तकरार बनी रही। भाजपा तो खैर कुछ बोलती नहीं किन्तु शिवसेना उसे उकसाने का कोई अवसर नहीं छोड़ती। गत दिवस उसका निर्णय आ गया कि 2019 का लोकसभा चुनाव वह अलग से लड़ेगी लेकिन केंद्र और राज्य की सत्ता में भागीदारी छोडऩे फिलहाल वह तैयार नहीं है। यही रवैया उसकी नाराजगी की गम्भीरता खत्म कर देता है। यदि उद्धव ठाकरे वाकई भाजपा से अलगाव चाहते हैं उन्हें सत्ता का मोह छोडऩा पड़ेगा। वैसे शिवसेना की मुसीबत ये है कि कट्टर हिन्दुत्व की छवि के चलते उसके साथ खड़े होने अन्य कोई पार्टी शायद ही राजी हो भले ही उद्धव चाहे राहुल गांधी की प्रशंसा करें या ममता बैनर्जी से मुलाकात करें।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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