Thursday 11 January 2018

100 प्रतिशत विदेशी पूंजी : भाजपा तब गलत थी या अब


मोदी सरकार ने गत दिवस कई नीतिगत निर्णय लिए जिनमें सर्वाधिक चर्चा सिंगल ब्राण्ड खुदरा व्यापार में 100ज् विदेशी निवेश की अनुमति को लेकर हो रही है क्योंकि विपक्ष में रहते हुए स्वयं नरेंद्र मोदी और भाजपा ने ऐसा किये जाने को देशहित के विरोध में बताया था। विपक्ष इसे यू टर्न कह रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता ने भाजपा की कथनी और करनी पर प्रश्न उठाए तो यशवंत सिन्हा सरीखे असंतुष्ट  इसे नीतिगत भटकाव बता रहे हैं। अभी तक रास्वसंघ के अनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच की प्रतिक्रिया नहीं सुनाई दी। शायद उसे ये तय करने में परेशानी महसूस हो रही होगी कि वह सरकार के इस निर्णय को निगले या थूके? सिंगल ब्रांड खुदरा व्यापार में कतिपय शर्तों के साथ 100ज् विदेशी निवेश से यद्यपि भारतीय उपभोक्ताओं को बेहतर क्वालिटी के उत्पाद आसानी से उपलब्ध होने लगेंगे लेकिन इससे जो सबसे बड़ा नुकसान आशंकित है वह देश के छोटे फुटकर व्यापारियों के व्यवसाय पर चोट और कई भारतीय चीजों के प्रतिस्पर्धा में न टिक पाने से बाज़ार से बाहर हो जाना। हालाँकि अभी भी विदेशी ब्रांड धड़ल्ले से भारत के बाजारों में जगह बना चुके हैं किंतु अब जबकि खुदरा व्यापार में 100ज् पूंजी की छूट दी जा रही है तब भारतीय व्यापारियों और उत्पादों के लिए नया खतरा उत्पन्न होने से इंकार नहीं किया जा सकता। उस लिहाज से मोदी सरकार का उक्त कदम पूरी तरह जनविरोधी कहा जा सकता है। चूंकि विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने तत्कालीन मनमोहन सरकार को इसके लिए कठघरे में खड़ा कर दिया था इसीलिए अब उस पर अपनी घोषित नीतियों के उलट काम करने का आरोप लगना गलत नहीं है। सबसे बड़ी देखने वाली बात ये होगी कि क्या पार्टी ने 2014 के चुनाव घोषणापत्र में खुदरा व्यापार में 100ज् विदेशी पूंजी निवेश की छूट का वायदा किया था? यदि हां तो फिर पहले वह किस आधार पर उसका विरोध करती थी और नहीं तो फिर उसे साढ़े तीन साल बाद कहाँ से ऐसा करने की सूझ गई जिसके औचित्य और आवश्यकता को साबित करने का उसके पास कोई ठोस आधार नहीं है। यद्यपि उदारीकरण और वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप हम अपने चारों तरफ  लोहे की दीवार नहीं खड़ी कर सकते। साम्यवादी चीन तक विदेशी पूंजी से परहेज की नीति पर कायम नहीं रह सका किन्तु भारत की परिस्थितियाँ अलग हटकर हैं। स्वदेशी जागरण मंच सहित अन्य जो भी संगठन विदेशी पूंजी का विरोध करते आए हैं उनको भाजपा का सहयोग और संरक्षण मिलता रहा है। बाबा रामदेव जैसे स्वदेशी के प्रवर्तक इसीलिए भाजपा के करीब आये। अब जब रास्वसंघ के प्रचारक रहे प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार ने अपनी आर्थिक नीतियों में पूरी तरह परिवर्तन करने का निर्णय लिया तो उसे अपने समर्थकों सहित पूरे देश को बताना चाहिए कि पार्टी तब गलत थी या अब? यदि उसके नीति निर्धारकों को लगता है कि उनका ताजा निर्णय समयानुकूल और देशहित में है तो उसे इसको तथ्य सहित साबित करना चाहिए वरना उस पर थूक कर चाटने जैसे आरोप लगने से नहीं रोके जा सकेंगे। विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सबसे बड़ा अंतर आर्थिक नीतियों को लेकर ही होता है किंतु अब सब गड्डमगड्ड होकर रह गया है। हर मुख्यमंत्री निवेश की तलाश में विदेशों का सैर सपाटा करने निकल पड़ता है। इससे स्पष्ट होता है कि आर्थिक नीतियों में न तो कोई स्थायित्व बचा और न ही सैद्धान्तिक पहिचान। मोदी सरकार ने गत दिवस  एयर इंडिया में 49ज् विदेशी निवेश सहित और भी कई महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले लिए लेकिन सिंगल ब्रांड खुदरा व्यापार में 100ज् विदेशी पूंजी के लिए द्वार खोल देने से उत्पन्न होने वाली परिस्थिति को लेकर सर्वाधिक चिंता देखी जा रही है जो किसी भी दृष्टिकोण से गलत नहीं लगती। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ऐसे फैसलों पर भाजपा पर पलटी मारने का आरोप तो लगा सकती है किंतु उसकी मजबूरी ये है कि वह अपनी बनाई नीतियों के लागू होने का विरोध करे भी तो किस मुंह से? यही वजह है कि जनता के पास अपनी बात कहने का कोई सक्षम माध्यम नहीं बचा। तीसरी शक्ति के रूप में जो राजनीतिक पार्टियां हैं भी वे जाति अथवा क्षेत्रीयता की संकीर्ण सोच में उलझकर रह गईं हैं। व्यापारियों के बड़े संगठनों पर धन्ना सेठों के काबिज होने से छोटे व्यापारी का दर्द सुनने वाला कोई नहीं है। इस कारण भी खुदरा व्यापार में 100ज् विदेशी निवेश को लेकर अदृश्य भय सता रहा है। भाजपा के लिये भी ये निर्णय गले की फांस बन गया है। मन ही मन वह इसे स्वीकार नहीं कर पा रही किन्तु अपनी सरकार से पंगा लेना भी उसके लिए सम्भव नहीं रहा। देखें, रास्वसंघ और स्वदेशी जागरण मंच क्या रवैया अपनाते हैं? और स्वदेशी के स्वयम्भू ब्रांड एम्बेसडर बाबा रामदेव भी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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