Monday 29 January 2018

देखें कितने सांसद मानते हैं वरुण की सलाह ------------------------------------


भाजपा में वरुण गांधी की हैसियत राहुल गांधी जैसी न थी, न है। उप्र विधानसभा के पिछले चुनाव में पार्टी ने उन्हें स्टार प्रचारक तक नहीं बनाया था। बीच में खबर उड़ गई कि वे राहुल गांधी के संपर्क में हैं और लोकसभा चुनाव के पहले काँग्रेस में चले जायेंगे। फिलहाल तो ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा क्योंकि वरुण की माँ मेनका गांधी मोदी सरकार में मंत्री बनी हुई हैं और उनके हटने की भी कोई सम्भवना नजर नहीं आ रही। वरुण वतर्मान में उप्र की जिस सुल्तानपुर सीट के लोकसभा सदस्य हैं वह राहुल के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी और सोनिया गांधी की लोकसभा सीट रायबरेली से सटी होने से काफी महत्वपूर्ण है। वरुण की गिनती तेजतर्रार युवाओं में होती रही है जो अपने तीखे बयानों और भाषणों के कारण चर्चा और विवाद दोनों में बने रहते थे। उन्हें लगता था कि भाजपा उन्हें उप्र में पार्टी का चेहरा बनाकर गांधी के मुकाबले गांधी उतारने की नीति पर चलेगी लेकिन वरुण को निराशा मिली। बीते काफी समय से वे खबरों में भी नहीं रहे इसलिये भाजपा से उनकी नाराजगी की खबरों को सच भी माना जाने लगा लेकिन गत दिवस एक बयान आया जिसने एक बार फिर वरुण को चर्चा के केन्द्र में ला दिया। सम्पन्न सांसदों से वेतन छोडऩे की उनकी अपील निश्चित रूप से  जनभावनाओं की अभिव्यक्ति ही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर देश के कई करोड़ लोगों ने जब रसोई गैस पर मिलने वाली सब्सिडी त्यागी तब भी ये उलाहना काफी उछला था कि जनता से ही त्याग की अपेक्षा क्यों? उसी संदर्भ में लोगों ने संसद भवन की कैंटीन में मिलने वाले सस्ते भोजन पर सवाल उठाते हुए कहा था कि लाखों रु. प्रतिमाह कमाने वाले सांसद यदि अपने वेतन-भत्तों और अन्य सुविधाओं में से कुछ का परित्याग करें तो आम जनता भी उससे प्रेरित होगी। वरुण गांधी ने बढ़ती आर्थिक विषमता का प्रश्न उठाते हुए कहा कि संसद में करोड़पति सदस्यों की संख्या में हुए इजाफे के मद्देनजऱ ये अपेक्षा है कि बचे हुए कार्यकाल में वे अपना वेतन छोड़ दें। पता नहीं वरुण की अपील पर उनकी पूज्य माता जी भी ध्यान देंगीं या नहीं लेकिन देश के करोड़ों लोग अपेक्षा करते हैं कि आर्थिक तौर पर हर तरह से सम्पन्न साँसदों को वेतन का त्याग करना चाहिए। इससे भी बढ़कर तो जनअपेक्षा है कि जो संसद सदस्य वाकई करोड़पति हैं उन्हें बतौर सांसद मिलने वाली अन्य सुविधाओं का भी परित्याग करना चाहिए। वैसे ये मान लेना सही नहीं है कि 50-100 सांसद अगर वरुण की अपील का संज्ञान लेते हुए वेतन-भत्ते सहित कुछ सुविधाएं और रियायतें छोड़ भी देते हैं तो उससे देश की आर्थिक बदहाली पलक झपकते दूर हो जाएगी लेकिन इसका प्रतीकात्मक असर जरूर होगा और वह भी बेहद सकारात्मक, क्योंकि कोई माने या न माने किन्तु जनप्रतिनिधियों को लेकर आम जनता के मन में पहले जैसा सम्मान नहीं बचा तो उसकी प्रमुख वजह उनकी छवि लोकतन्त्र के सामन्त सरीखी बन जाना है। यद्यपि कुछ सांसद और विधायक ऐसे भी होंगे जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है किंतु जो जानकारी आई उसके  मुताबिक तो अधिकतर लोकसभा सदस्य ऐलानिया तौर पर करोड़पति हैं। वरुण ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया है कि वे आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न सांसदों से वेतन का परित्याग करने की अपील करें। पता नहीं सुमित्रा जी उसका कितना संज्ञान लेंगी किन्तु यदि वे ऐसा करें तो इससे सांसदों की छवि तो सुधरेगी ही, लोकतंत्र में लोगों की आस्था भी बढ़ेगी तथा शासक और शासित के बीच का अंतर मिटने की प्रक्रिया शुरू होगी। कहते हैं वामपंथी दलों के सांसदों को अपना वेतन पार्टी में जमा कराना होता है। पार्टी उन्हें घर खर्च चलाने हेतु एक निश्चित राशि लौटा देती है। ये एक आदर्श व्यवस्था है जिसमें कि जनप्रतिनिधि को सदैव ये एहसास होता रहता है कि वह एक विचारधारा से निर्देशित और नियंत्रित होता तथा जनता का सेवक है, मालिक नहीं। वरुण गांधी का सुझाव ऐसे समय आया है जब सांसदों के प्रति आम जन में ये धारणा गहराई तक समा गई है कि उनको जनता की तकलीफों से लेशमात्र भी लेना-देना नहीं है और वे केवल अपनी सुख-सुविधाएं बढ़ाने के बारे में सोचा करते हैं। बतौर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह मात्र एक रूपया वेतन लेते थे। कई जनप्रतिनिधि ऐसे भी हैं जो वेतन की राशि अपने निर्वाचन क्षेत्र में गरीब लड़कियों के विवाह अथवा निर्धन छात्रों की शिक्षा पर खर्च करते हैं लेकिन ये पुण्य कार्य करने वाले सांसद-विधायक मु_ी भर भी नहीं होंगे। उस दृष्टि से वरुण ने जो बात कही वह सामयिक और सही है। कह सकते हैं कि मात्र इतने से ही आर्थिक विषमता दूर नहीं की जा सकेगी किन्तु इसका अच्छा असर पड़ेगा ये मानने में कुछ भी गलत नहीं है। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से लौटकर जब अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई का निर्णय किया तो सबसे पहले बैरिस्टर वाली वेशभूषा त्यागकर साधारण लोगों जैसे वस्त्र और जीवन शैली को अपनाया जिसका जबरदस्त असर हुआ। दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद गांधी जी के अनुयायी ही उनके बताए रास्ते से भटकते चले गए। ऐसा ही हुआ जनसंघ और अब भाजपा के साथ जो दीनदयाल उपाध्याय को आदर्श मानने का दिखावा चाहे जितना करे किन्तु उनके आदर्शों के प्रति पार्टी के सांसद - विधायकों की अनदेखी किसी से छिपी नहीं है। पता नहीं वरुण गांधी के अनुरोध और अपील को कितनी तवज्जो मिलती है किन्तु यदि भाजपा के ही दस - बीस सम्पन्न सांसद वरुण की अपेक्षानुरूप वेतन और अन्य सुविधाएं छोड़ दें तो बाकी पर भी दबाव बनेगा। सब्सिडी के नाम पर सरकारी खजाने की जो लुटाई हो रही है उसे रोकने के लिए प्रधान मन्त्री ने कई ऐसे कदम उठाए जिनकी वजह से उन्हें आलोचना और अलोकप्रियता झेलनी पड़ी किन्तु यदि वे भाजपा सांसदों और विधायकों को वरुण गांधी की अपील पर अमल करने राजी कर सकें तो उनके कड़े कदमों की भी सराहना होने लगेगी। करोड़ों लोगों द्वारा प्रधान मंत्री की अपील पर रसोई गैस सब्सिडी छोड़ दी गई थी। देखना है कि यदि वे अपील करें तब बाकी तो छोडिय़े भाजपा के ही कितने सांसद वेतन सहित अन्य सुविधाएं त्यागने का साहस जुटा पाते हैं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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