Saturday 10 February 2018

दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिये

आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर द्वारा राममन्दिर विवाद में मुस्लिम समुदाय के साथ की जा रही सुलह वार्ता कल फिर विफल हो गई। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जो शर्तें रख दीं उनके आधार पर तो समझौता नामुमकिन लगता है ।यदि हिन्दू समाज की रहनुमाई करने वालों को ये सब मंजूर होता तो झगड़ा न जाने कब का सुलझ गया होता। यद्यपि बोर्ड के कतिपय सदस्य कुछ ज्यादा उदार दिखे किन्तु कुल मिलाकर ज़िद यथावत है । मस्ज़िद की ज़मीन को खुदा की मानकर उसे किसी अन्य को न देने जैसा तर्क किसी भी समझौते के रास्ते में रोड़ा बन जाएगा । लेकिन दूसरी तरफ कुछ नर्म दिल मुस्लिम नेता भी सामने आए हैं जो ले देकर मामला निबटाने के पक्षधर हैं । सुना है प्रधानमंत्री के साथ भी मुसलमानों के प्रतिनिधि बैठक करने वाले हैं जिसके लिए एक मुस्लिम पत्रकार मध्यस्थता में जुटे हैं। क्या होगा ये कहना कठिन है । यद्यपि दोनों पक्ष सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को स्वीकार करने पर राजी हैं किंतु वह एक पक्ष की नाराजगी का कारण तो बनेगा ही। दोनों उससे सन्तुष्ट हो जाएं ये कहना कठिन है किन्तु अदालत के बाहर यदि किसी फार्मूले पर सहमति बन जाए तो न तुम हारे , न हम हारे वाली स्थिति बन जाएगी । प्रधानमंत्री यदि व्यक्तिगत रुचि लें तो आपसी सहमति से इस विवाद को हल किया जाना सम्भव हो सकता है लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को कुछ न कुछ तो पीछे हटना पड़ेगा । श्री श्री की कोशिशें कितनी सफल होंगी ये बता पाना मुश्किल है किन्तु दिल मिले न मिले , हाथ मिलाते रहिये की तर्ज पर मेल-मुलाकात भी कुछ बुरी नहीं है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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