Friday 16 February 2018

घोटालेबाजों को सींखचों के पीछे भेजना जरूरी

पंजाब नेशनल बैंक में हुए घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा नीरव मोदी के प्रतिष्ठानों पर मारे गये छापों में 5100 करोड़ के हीरे, जवाहरात जप्त होने से बैंक को हुए घाटे की आधी भरपाई तो हो गई। जैसी खबरें हैं उनके मुताबिक नीरव ने बैंक को आश्वस्त किया है कि शेष राशि भी छह माह में अदा कर दी जाएगी। घोटालेबाज की अचल संपत्ति की कीमत निकाली जाए तो पूरी रकम वसूल होने की उम्मीद है। उससे भी बड़ी बात ये है कि नीरव के परिवार का सीधा रिश्ता अम्बानी परिवार से है। कारोबारी जगत के जानकार मान रहे हैं कि अम्बानी परिवार अप्रत्यक्ष तौर पर इस मामले को बीच में आकर रफा-दफा करवा देगा। चूँकि आरोपी मोदी परिवार का गुजरात से सम्बन्ध है इसलिए  छींटे प्रधानमंत्री पर भी आ रहे हैं। दावोस में हुए अंतरराष्ट्रीय  आर्थिक सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने दुनिया भर की जिन दिग्गज आर्थिक हस्तियों को बुलाया था उनमें नीरव मोदी भी थे जिसके चित्र भी प्रसारित हो चुके हैं। ये बात भी उठ रही है कि वर्ष 2016 में अलाहाबाद बैंक द्वारा आरोपी प्रतिष्ठान को  नियम विरुद्ध दी जा रही छूट का एक निदेशक द्वारा विरोध किये जाने पर मामला रिजर्व  बैंक और भारत सरकार की जानकारी में आने के बाद भी कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी शुरू हो गया है। काँग्रेस भाजपा को कठघरे में खड़ा कर रही है वही भाजपा पलटवार करते हुए कांग्रेस को सारे पापों की जड़ बता रही है। इस खींचातानी में एक बार फिर असली मुद्दा दबने का खतरा उत्पन्न हो रहा है। हर्षद मेहता के घोटाले ने एक जमाने में पूरे देश को हिला दिया था लेकिन उसके बाद उससे भी बड़े न जाने कितने घपले हो गए लेकिन दो चार दिन की सनसनी मचने के बाद बात ठंडी होकर रह गई। नीरव मोदी ने जो भी किया उसमें राजनीतिक हस्तक्षेप कितना था ये तो पता नहीं है किंतु बैंक प्रबंधन की संलिप्तता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बैंक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। मुक्त अर्थव्यवस्था के दौर में बैंकों की कार्यप्रणाली भी काफी लचीली हो चली है। अपार जमा राशि को खपाने के लिए ऋण वितरण के मामले में बरती जा रही उदारता लापरवाही की हद तक बढ़ गई। बैकों के उच्च प्रबंधन द्वारा भी शाखा स्तर के अधिकारियों पर ऋण के लक्ष्य पूरे करने का दबाव डाला जाता है जिसकी वजह से ऋण वितरण में भ्रष्टाचार की गाजर घास फैलती जा रही है। ताजा मामले में बैंक की डूबन्त रकम यदि वसूल हो गई तब फिर बात आई गई कर दी जाएगी। जरूरत है बैंकों की कार्यपद्धति को निर्धारित नियमों के दायरे में रखा जाए। राष्ट्रीयकृत बैंकों को प्रतिस्पर्धा में खड़ा करना जरूरी है किन्तु वे निजी बैंकों की तरह शार्टकट अपनाएं ये अवांछनीय है। बैंक घोटाले तो विकसित देशों में भी होते हैं किंतु भारत की अर्थव्यवस्था अभी इतनी सुदृढ़ नहीं है जो हजारों करोड़ के घपले बर्दाश्त कर सके। और फिर ऐसे मामलों से लोगों को बेईमान होने की प्रेरणा मिलती है। मोदी सरकार का ये दावा कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुए घपले उनके शासन में पकड़े जा रहे हैं तब सही लगेगा जब वह आरोपियों को समय पर सजा दिलवाने में कामयाब होगी वरना जिस तरह अभी तक रॉबर्ट वाड्रा वगैरह पर कोई कार्रवाई न होने से भाजपा पर व्यंग्य बाण चल रहे हैं ठीक वैसा ही और मामलों में भी होगा। बैंकिंग व्यवस्था को चाक-चौबंद करने के लिये जरूरी है उसको पूरी तरह से नियमानुसार संचालित किया जाए। मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जो प्रयास कर रही है वह तभी सफलीभूत होगी जब इस तरह के घोटालों के दोषियों को सींखचों के पीछे भेजा जाए वरना ये सिलसिला यूँ ही जारी रहेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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