Tuesday 13 February 2018

शिवराज ने घोषणाएं तो अच्छी कीं बशर्ते अमल हो सके

शिवराज सिंह चौहान मूलत: ग्रामीण परिवेश से निकले होने के कारण किसान वर्ग के जबरदस्त हितचिंतक माने जाते हैं और जब भी मौका आता है उनके लिए अपनी सरकार का खजाना खोल देते हैं। प्राकृतिक विपदाओं के समय भी दरियादिली दिखाने में वे कभी पीछे नहीं रहते। गत दिवस उन्होनें प्रदेश भर से किसानों को बुलाकर भोपाल में जंगी जलसा किया जिसमें सौगातों और राहतों की जोरदार बरसात कर डाली। किसानों की फसल का दाम समर्थन मूल्य से भी ज्यादा देना तो चलो ठीक है लेकिन गत वर्ष खरीदे गए अनाज पर भी अतिरिक्त बोनस देने जैसा कदम निश्चित रूप से चुनावी पैंतरा है। गोदामों का 25 प्रतिशत खर्च और किसानों पर चढ़े कर्ज का ब्याज सरकार द्वारा वहन किये जाने जैसी घोषणाएं इस समुदाय की नाराजगी दूर कर आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को चौथी पारी खेलने का अवसर प्रदान करने के लिए बनाई गई रणनीति का हिस्सा ही है। इसमें दो मत नहीं है कि शिवराज सिंह की सरकार के दौरान किसानों की बेहतरी के लिये किये गए उपायों के परिणामस्वरूप ही मप्र को लगातार कृषि कर्मणा पुरस्कार मिल रहा है। सबसे अधिक खरीद मूल्य देकर मुख्यमंत्री ने मप्र को गेंहू उत्पादन में पंजाब और हरियाणा से भी आगे लाकर खड़ा कर दिया। अन्य कृषि उत्पादनों में भी पर्याप्त वृद्धि के लिए राज्य सरकार की कृषक समर्थक नीतियां ही श्रेय का हकदार हैं किन्तु इसी के साथ ये कहना भी गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री ने जितनी सदाशयता कृषि क्षेत्र के लिए दिखाई उसका पूरा-पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल सका जिसके कारण अन्नदाता कहलाने वाले इस महत्वपूर्ण वर्ग का असन्तोष बढ़ते-बढ़ते गुस्से का रूप ले बैठा। गत वर्ष मन्दसौर में हुई हिंसक घटनाओं के बाद तो शिवराज सरकार को किसानों के बीच अलोकप्रिय माना जाने लगा। चुनावी साल में कोई भी मुख्यमंत्री किसानों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेगा और यही वजह है गत दिवस शिवराज सिंह ने राजधानी भोपाल में किसान पंचायत का आयोजन कर जो मांगोगे वही मिलेगा का नज़ारा पेश करते हुए किसानों के रूप में फैले विशाल मतदाता वर्ग को सम्मोहित करने का दांव खेल दिया। मुख्यमंत्री ने जो घोषणाएं कीं उनसे शायद ही कोई असहमत होगा क्योंकि कृषि क्षेत्र और किसानों की उन्नति के बिना कोई भी राज्य विकसित नहीं हो सकता। मप्र को औद्योगिक विकास की राह पर आगे ले जाने के लिए अथक परिश्रम कर रहे मुख्यमंत्री के लिए किसानों की नाराजगी सारे किये कराए पर पानी फेरने का काम कर रही थी। हाल ही में सम्पन्न चुनावों के जो नतीजे आए उनमें भी शिवराज सिंह की लोकप्रियता में ह्रास परिलक्षित हुआ। मुंगावली और कोलारस के आगामी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की संभावनाएं धूमिल होने की आशंका ने भी पार्टी के रणनीतिकारों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। विधानसभा चुनाव के आठ महीने पहले यदि भाजपा उक्त दोनों उपचुनाव हार जाती है तो इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरना सुनिश्चित है जिनका हौसला गुजरात और राजस्थान के झटकों से पहले ही कमजोर है। हाल ही में सम्पन्न स्थानीय निकाय चुनाव परिणाम से भी पार्टी की लोकप्रियता में गिरावट उभरकर सामने आ गई। किसानों की झोली को सौगातों से भर देने का ताजा प्रयास यदि मुंगावली और कोलारस के उपचुनाव में कारगर साबित हो गया तो उससे मुख्यमंत्री के आभामंडल में आ रही कमी दूर हो सकेगी वहीं कार्यकर्ताओं में भी नए सिरे से उत्साह का संचार हो सकेगा लेकिन किसानों के लिए की गई घोषणाओं का लाभ भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में तभी मिल सकेगा जब प्रदेश की भ्रष्ट नौकरशाही मुख्यमंत्री की मंशानुरूप किसानों की हमदर्द बनकर काम करे। अब तक के अनुभव इस बारे में बेहद कड़वे रहे हैं। एक तरफ  शिवराज सिंह ने फसलों के दाम देश भर में सबसे अधिक देने का रिकॉर्ड बनाया वहीं दूसरी तरफ  प्राकृतिक आपदा के समय भी मुख्यमंत्री ने अन्नदाता के आंसू पोंछकर उसके नुकसान की भरपाई का हरसम्भव इंतज़ाम किया किन्तु सरकारी अमले के गैर जिम्मेदाराना आचरण और भ्रष्टाचारी प्रवृत्ति के कारण सरकार की तरफ  से दी गई राहत उन तक नहीं पहुंच सकी। शिवराज सरकार की छवि खराब करने  में पहले डंपर कांड और फिर व्यापमं घोटाले ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की किंतु सत्ता में भाजपा की वापसी पर संदेह के बादल मंडराने के पीछे किसान लॉबी की नाराजगी सबसे बड़ा कारण मानी जा रही है। मुख्यमंत्री ने गत दिवस जो सौगातें किसानों को दीं वे उन तक कैसे पहुंचेंगी ये देखने वाली बात होगी क्योंकि अब तक के अनुभव यही बताते हैं कि किसानों  के लिए सरकार के खजाने से निकली अपार धनराशि में बेईमान सरकारी कर्मचारी और अधिकारी बंदरबांट कर ले जाते हैं। मुख्यमंत्री ही नहीं भाजपा के विधायकों और संगठन को भी ये देखना होगा कि किसानों के हक़ पर कोई डाका न डाल सके वरना शिवराज सिंह की समूची मेहनत मिट्टी में मिलते देर नहीं लगेगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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