Monday 5 February 2018

करोड़पतियों का पलायन चिंता का विषय


काम की तलाश में लोगों का परदेस जाना तो सामान्य बात है। अच्छी शिक्षा, शोध और बेहतर अवसरों की तलाश में भी बहुत लोग अपना वतन छोड़कर चले जाते हैं। उनमें से कुछ की घर वापिसी भी होती है और कुछ वहीं बसकर रह जाते हैं। इसी कारण ब्रिटिश राज के दौरान पानी के जहाजों में भरकर मॉरीशस, फिजी और कैरिबियन द्वीप समूह में मजदूर बनाकर ले जाए गए भारतीय अब वहां के नागरिक हैं और कुछ तो राष्ट्रप्रमुख तक बन गए। आजादी के बाद से वह परिपाटी तो खत्म हो गई किन्तु बेहतर शिक्षा, ज्यादा कमाई और बेहतर जीवन की तलाश में लाखों भारतीय विदेश जा बसे। खाड़ी देशों में पेट्रो डॉलर से आई समृद्धि के चलते शुरू हुई विकास की होड़ ने भारतीय श्रमिकों और तकनीशियनों को रोजगार का अच्छा अवसर दिया। दुबई में तो भारतीयों की भरपूर उपस्थिति है। कई अफ्रीकी देशों में गुजराती मूल के अप्रवासी कई पीढिय़ों से रह रहे हैं। ब्रिटेन - अमेरिका में बसे भारतीय न सिर्फ  सेवाओं और उद्योग-व्यवसाय अपितु राजनीति में भी जमकर दखलन्दाजी करते हुए अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। कैनेडा तो दूसरा पंजाब बन गया है। इन्हीं सबके कारण भारतीय अब विश्व समुदाय (ग्लोबल कम्युनिटी) के रूप में जाने जाते हैं। पृथ्वी के हर हिस्से में कहीं कम तो कहीं ज्यादा उनकी मौजूदगी ने विश्व में भारत को पहिचान और सम्मान दोनों दिलवाए तथा सपेरों और मदारियों के देश की बजाय भारत ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में बराबरी से बैठने की स्थिति में आ गया। शिक्षा, प्रबंधन, विज्ञान, तकनीकी और कम्प्यूटर सहित किसी भी क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर भारतवंशियों की प्रभावशाली उपस्थिति गौरवान्वित तो करती है किंतु प्रतिभा पलायन से होने वाले नुकसान को भी उजागर कर रही है। पहले केवल विदेशी कम्पनियों के भारत में आकर पाँव जमाने जैसी स्थिति हुआ करती थी लेकिन मुक्त अर्थव्यवस्था और वैश्वीकरण के कारण अनेक भारतीय उद्योगपतियों ने विदेशी कम्पनियों का अधिग्रहण कर अपनी धाक जमाई। देश में विदेशी पूंजी के बढ़ते प्रवाह के साथ-साथ भारत से भी धन विदेशों में निवेशित होने लगा। इसमें स्विस एवं अन्य विदेश बैंकों में छुपाकर रखा गया काला धन शामिल नहीं है। बीते कुछ वर्षों में भारत के भीतर अरबपतियों की संख्या में तेजी से वृद्धि होने को आर्थिक मोर्चे पर आ रही समृद्धि के तौर पर देखा जा रहा है। धनकुबेरों का सर्वेक्षण कऱने वाली संस्थाएं अब भारत के अरबपतियों को भी अपनी सूची में स्थान देने लगी हैं।  देश में पूंजी लगाने हेतु भारतीय अप्रवासी और विदेशी निवेशकों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लाल कालीन बिछाए जाने के कारण भी बड़ी संख्या में निवेशक भारत में कारोबार जमाने आ रहे हैं। शेयर बाजार विदेशी पूंजी से लबालब होता जा रहा है। लेकिन इस सबके बावजूद एक खबर ने ध्यान खींचा कि 2017 में 7 हज़ार करोड़पति देश से जाकर अन्य देशों में स्थायी रूप से बस गए। उसके पहले के 2 सालों में भी क्रमश: 6 और 5 हज़ार करोड़पति परदेस जा बसे। ये केवल भारत में होता हो ऐसा नहीं है। पड़ोसी चीन इस मामले में भारत से आगे है। विकसित देशों से भी सम्पन्न लोग दूसरे देशों में जाकर बसते हैं लेकिन संभावनाओं का देश माने जा रहे भारत से हज़ारों की सँख्या में करोड़पतियों का बाहर चला जाना चौंकाता है। यद्यपि इसके पीछे निजी कारण भी होते हैं किंतु ऐसे लोगों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है जिन्हें भारत में कारोबार करना झंझटों से भरा लगने लगा है। प्रधानमंत्री ने नव उद्यमियों के लिए चाहे जितने अवसर उत्पन्न किये हों लेकिन नौकरशाही की बेढंगी चाल के कारण अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करने वालों को दौड़ा-दौड़ाकर थका देने का चिर-परिचित खेल जारी है। विदेशों में पढ़-लिखकर स्वदेश प्रेम से प्रेरित होकर लौटे अनेक उद्यमी भी निराश होकर लौटते देखे जाते हैं। कई अप्रवासी भारतीय अपने परिजनों को विदेश आकर बस जाने हेतु भी प्रेरित कर लेते हैं। लेकिन भारत जैसे विकासशील देश से यदि हजारों करोड़पति प्रतिवर्ष विदेश जाकर बसते जा रहे हैं तो इसे हवा में उड़ाना ठीक नहीं होगा। भारत सरकार को इसकी वास्तविक वजह पता करनी चाहिए। हालांकि ये किसी व्यक्ति का अधिकार है कि वह किस देश में जाकर रहे या बसे लेकिन काम की तलाश में बाहर गया भारतीय तो कमाई कर यहां भेजता है वहीं किसी सम्पन्न व्यक्ति द्वारा अपना समूचा कारोबार समेटकर चले जाना देश का नुकसान है और उस लिहाज से हजारों करोड़पतियों का पलायन राष्ट्रीय चिंता का विषय होना चाहिए। नरेंद्र मोदी ने वैश्विक स्तर पर भारत की छवि और प्रतिष्ठा में जिस तरह वृद्धि की उसे देखते हुए करोड़पतियों का देश छोडऩा शुभ संकेत कतई नहीं है। ये कह देना सही नहीं होगा कि अमेरिका से भी धनकुबेर दूसरे मुल्कों में जाकर बसते रहे हैं क्योंकि भारत अभी विकास के उस स्तर तक नहीं पहुंचा है। अप्रवासी भारतीयों में अपने वतन के प्रति अनुराग उत्पन्न करने के लिए सरकारी स्तर पर नियमित प्रयास होते हैं। उन्हें तरह-तरह की सुविधाएं एवं प्रलोभन दिए जाते हैं तब भारत में रहकर करोड़ों कमाने वाले अपनी मातृभूमि त्यागकर क्यों जा रहे हैं उनके कारणों का गम्भीरता से अध्ययन कर इस चलन को रोकने का सार्थक प्रयास होना चाहिए। आजकल बड़ी कंपनियों में नौकरी छोड़कर जाने वाले से अत्यंत विनम्रता से पूछा जाता है कि उसे प्रतिष्ठान में क्या कमी महसूस हुई जिससे वह जा रहा है। इसे एग्जि़ट इंटरव्यू कहा जाता है। देश छोड़कर जा रहे करोड़पति देशवासी से भी इस तरह की पूछताछ की जानी चाहिए जिससे पता तो चले कि वह किस वजह से अपनी जन्मभूमि को अलविदा कहने मजबूर होता है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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