कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब एक सार्वजनिक कार्यक्रम में आरोप लगा रहे थे कि मनमोहन सरकार के राज में बैंकों द्वारा ऋण बांटने में भारी अनियमितताएं की जाती रहीं तथा टेलीफोन पर अपने चहेतों को कर्ज बंटवाए गए तब ये माना गया कि विपक्ष द्वारा बैंकों में बढ़ते जा रहे एनपीए (नॉन परफार्मिंग असेट्स) पर मचाए जा रहे हल्ले की सफाई में श्री मोदी अपनी सरकार का बचाव कर रहे थे। लेकिन यूपीए सरकार द्वारा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गर्वनर नियुक्त किए गए रघुराम राजन ने हाल ही में संसद की प्राक्कलन समिति को भेजे लिखित बयान में बैंकिंग व्यवस्था में उत्पन्न छिद्रों को उजागर करते हुए कहा कि 2006 से 2008 के बीच यूपीए सरकार के कार्यकाल में बांटे गए अंधाधुंध ऋणों में से ही अधिकतर डूबन्त की श्रेणी में आ गए जिनकी वजह से बैंकों के सामने एनपीए रूपी पहाड़ खड़ा हो गया। रघुराम को कांगेे्रस समर्थक माना जाता था। ऐसे मेें उनका डा. मनमोहन सिंह की सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान बैंकों द्वारा वितरित बड़े ऋणों में की गई लापरवाही पर सवाल उठाना मोदी सरकार के लिए राहत देने वाला है जो विजय माल्या और नीरव मोदी के विदेश भाग जाने को लेकर सवालों और संदेहों के घेरे में है। रघुराम ने बड़े बकायादारों की सूची प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजने की बात भी अपने पत्र में लिखते हुए कहा कि उस पर क्या कार्रवाई हुई उसकी जानकारी उनके पास नहीं है। हालांकि ये डा. सिंह को दी गई या श्री मोदी को ये फिलहाल स्पष्ट नहीं है परन्तु रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर द्वारा 2006 से 2008 के दौरान बांटे गए बड़े कर्जों के डूबने से एनपीए की समस्या विकराल होने की जो बात कही उसके बाद न सिर्फ तत्कालीन प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री अपितु राष्ट्रीयकृत बैंकों के उच्च प्रबंधन से जुड़े लोगों पर भी उंगलियां उठना स्वाभाविक है। अरबों रुपये का कर्ज डकारकर विदेश भाग जाने वाले कुछ बड़े लोगों के कारण शर्मसार हो रही केन्द्र सरकार अपने बचाव में शुरू से ही दलील देती आई है कि विजय माल्या, नीरव मोदी तथा मेहुल चौकसी जैसे भगोड़ों को कर्ज काँगे्रस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कार्यकाल में दिलवाए गए। जब वसूली के लिये सख्ती हुई तब वे भाग निकले। हालांकि उक्त तीनों के चुपचाप विदेश खिसक जाने के लिए मोदी सरकार लापरवाही के आरोप से नहीं बच सकती परन्तु श्री राजन ने बैंकिंग प्रणाली पर जो उंगली उठाई है वह तमाम राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर विचारणीय है। विपक्ष ये आरोप लगाता रहा है कि नरेन्द्र मोदी के पास डूबन्त बड़े ऋणों की पूरी जानकारी आने के बाद भी उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की जिससे एनपीए बढ़ता गया। ये आरोप वाकई गंभीर है। यदि रघुराम द्वारा अथवा अन्य किसी स्रोत से तत्संबंधी जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच चुकी थी तब उस पर क्या कार्रवाई हुई इसका खुलासा होना जरूरी है और यदि नहीं हुई तो उसका कारण भी सार्वजनिक होना चाहिए क्योंकि श्री मोदी पर उद्योगपतियों को सहायता और संरक्षण देने का आरोप विपक्ष लगातार लगाता रहा है। बीते दिनों लखनऊ में श्री मोदी ने स्वीकार भी किया था कि उनके उद्योगपतियों से अच्छे संबंध हैं किन्तु वे उनसे छिपकर नहीं अपितु खुलेआम मिलते हैं। 2014 के बाद अंबानी और अडानी परिवार को फायदा पहुंचाने का आरोप भी प्रधानमंत्री पर लगता रहा है। यद्यपि जिस तरह डा. मनमोहन सिंह को तमाम घोटालों के बावजूद भी व्यक्तिगत तौर पर उनके विरोधी भी बेईमान नहीं मानते उसी तरह श्री मोदी को भी भ्रष्ट मानने की मानसिकता नहीं है परन्तु इतना तो कहना ही पड़ेगा कि यदि मनमोहन सरकार ने गलत तरीके से कर्जों की बंदरबांट की तो मोदी सरकार ने समय रहते उनकी वसूली में लापरवाही बरती। कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी को विदेश भागने से रोकने में मौजूदा सरकार पूरी तरह विफल रही। रघुराम राजन चूंकि अब सेवा में नहीं हैं इसलिए वे खुलकर पिछली सरकार के दौरान बांटे गए कर्जों के फर्जीबाड़ेे से परदा उठा सके लेकिन एनपीए की समस्या से देश को परिचित कराने वाले विश्वस्तर के अर्थशास्त्री डा. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में यदि बैंकिंग क्षेत्र में अनियमितताओं का सिलसिला शुरू हो चुका था तो इसे अव्वल दर्जे की चूक कहा जाएगा। स्मरणीय है कि डा. सिंह स्वयं भी रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके थे। स्व. पी.वी. नरसिम्हाराव ने उन्हें वित्तमंत्री बनाकर देश में उदारवादी आर्थिक नीतियों की नींव रखी थी। एनपीए नामक व्यवस्था उन्हीं ने बैंकिंग प्रणाली में लागू करवाई थी। ऐसे में जैसा रघुराम ने पत्र में लिखा है कि 2006-08 के दौरान जब अर्थव्यवस्था बहुत ही मजबूत स्थिति में थी तब कर्ज बांटने में हुई अनियमितता ने पूरे बैंक उद्योग को मुसीबत में डाल दिया। उनके पत्र पर संसदीय समिति क्या कदम उठाती है ये अभी स्पष्ट नहीं है किन्तु उन्होंने यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों को कठघरे में खड़ा करते हुए जो सवाल उठाए उन्हें राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में उलझाकर उपेक्षित करना देश के लिए घातक होगा। भाजपा निश्चित रूप से रघुराम के पत्र से राहत महसूस कर रही होगी परन्तु उसे ये ध्यान रखना होगा कि गलत कर्ज बांटने के लिए न सही किन्तु उनकी वसूली में लापरवाही बरतने का दोष तो उस पर भी आ रहा है जो तीन बड़े बकायादारों के विदेश भाग जाने से और भी गंभीर हो गया है।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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