Monday 17 September 2018

महागठबंधन में गांठ


इसमें अप्रत्याशित कुछ भी नहीं है। बसपा और सपा दोनों ने कांग्रेस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। मायावती सम्मानजनक सीटें नहीं मिलने पर अकेले लोकसभा और विधानसभा चुनाव लडऩे का दम भर रही हैं तो अखिलेश यादव कांग्रेस को दिल बड़ा करने की समझाईश देने लगे हैं। आज खबर आ गई शरद पवॉर की एनसीपी राजस्थान में भी कांग्रेस से सीटें मांग रही है। भाजपा के विरुद्ध महागठबंधन बनाकर मोदी मैजिक को बेअसर करने की रणनीति आकार लेने के पहले ही बिखरने लगी है। 10 सितम्बर के भारत बंद में मायावती, ममता बैनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया। अखिलेश यादव भी अनमने से रहे। इससे ये धारणा मजबूत हो रही है कि कांग्रेस की अगुआई को पूरा विपक्ष आंख मूंदकर स्वीकार नहीं कर पा रहा। विशेष रूप से राहुल गांधी को नरेन्द्र मोदी के मुकाबले खड़ा करने मेें एक-दो को छोड़कर अन्य विपक्षी दल रजामंद नहीं लगते। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चुनाव के बाद मानसून सत्र में मोदी सरकार के विरुद्ध प्रस्तुत अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान में विपक्ष का बिखराव खुलकर सामने आ गया। बीजू जनता दल और तेलंगाना राज्य समिति भले ही भाजपा का विरोध करती हों परन्तु वे खुलकर कांग्रेस के साथ भी नहीं हैं। म.प्र., छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा के चुनाव में बसपा और सपा की सौदेबाजी कांग्रेस की उम्मीदों पर भारी पड़ सकती है। इन दोनों पार्टियों का उ.प्र. में काफी प्रभाव है। इसलिए कांग्रेस उनकी उपेक्षा नहीं कर पा रही। लेकिन यदि यही हाल रहा तब राहुल गांधी का रास्ता कठिन होता जाएगा। भाजपा ने बड़ी चतुराई से मुकाबले को भाजपा विरुद्ध महागठबंधन की बजाय मोदी विरुद्ध राहुल प्रचारित कर विपक्ष के महत्वाकांक्षी नेताओं को सावधान कर दिया है। इसका परिणाम महागठबंधन होने के पहले ही उसमें आ रही दरारों के रूप में सामने आने लगा है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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